photo Amit Sah
ये पहाड़, ये पर्वत, ये झरने, मेरी रुहु-रुहु में बसते है 
इनकी कठोर  पतरिली डगर पर ही मेरी ज़िन्दगी के रस्ते है  

मै इनकी चोटी पर चढ़कर चाँद और आसमान को छूना चाहता हूँ 
मै इन स्वर्ग समान घाटियों में ऐसा गीत गुनगुनाना चाहता हूँ 
जो हर हमेशा इन वार्फिली वादियों में गुंज्यमान रहे 
मेरी कलम और मेरी इस आवाज़ की पहचान रहे 
ये पहाड़ ये पर्वत मेरी रुहु रुहु में बसते है 


इनकी कठोर पतरिली डगर पर ही मेरी ज़िन्दगी के रस्ते है 
इन पहाड़ो की जो ये बारिश है ये मेरे चित को भावभिबोर करती है 
ये पत्तों पर पड़कर जब जमीन पर गिरती है तो संगीत की लय में शोर करती है 
यही लय मुझमे एक नयी उमंग भरती है
मेरी स्याई में नया रंग भरती है 
और कहती है काट तू टहनी बना अपनी कलम 
लिख अपनी मन की पीड़ा निभा अपना धर्म 
ये पहाड़ ये पर्वत मेरी रुहु रुहु में बसते है 
इनकी कठोर पतरिली डगर पर ही मेरी ज़िन्दगी के रस्ते है 

प्रदीप सिंह रावत "खुदेड"




 Garhwali poem garhwali kavita  Garhwali poem garhwali kavita  Garhwali poem garhwali kavita