Tuesday 12 July 2016

क्वी अचरज न कर्यां, बुरु न मन्यां, न अपुड़ से मुंड रेच्यां । garhwali kavita blog best blog uttrkhnad


















क्वी अचरज न कर्यां, बुरु न मन्यां, न अपुड़ से मुंड रेच्यां ।
कलजुगा कि छुवीं छों लगाणु, भा-रे क्वी ढंडी न पोड्यां ।।
कि छुछों बल अजगर करे न चाकरी, अर् पंछी करे न काम ।
क्वी लूँण-रोटि को तरसे, अर् क्वी पोड़ि-पोड़ि खाये बदाम ।।
घुगुति खुदेंणि च अपड़ा हि मैत मा, ऐश करे कांणा-गरुड़ ।
नैनसिंग लगाणु जपगणि, अर् शेरसिंग लुक्युं खटुला मूड ।।
बुबा अमांणु च भितरा कूँण, ब्वै नि सम्भालि सकणि च तीग ।
अर् सौरसि लि जयां छि टूर फर्, कभि केरल कभि कश्मीर ।।
जैथैं क्वी घूंण खैं न उप्पन तड़कैंइ, इनु हमरु नेता ह्वै जाणु च ।
मि मोर्रि ग्युं ध्याड़ि कैकि, अर् वु 7 पुश्तों तक जोड़ि जाणु च ।।
स्याल त उड़ाणु च गुलछर्रा, अर् बाघा कि हुयिं च भाजम-भाज ।
कोठि-बंगला बण्यां छि, पर पचणू च सिर्फ BPL कु हि अनाज ।।
गढ़वाल रूंणु च गढ़वल्युं खुणे, नेपाल-बंगाल का ह्वैगि पहाड़ि ।
जलम भूमि जने ढुंगु ढोल्यालि, पर स्यकुण्द कनू च बल ध्याड़ि ।।
........ जारी है.....
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©® सर्वाधिकार: धर्मपाल रावत,
ग्राम- सुन्दरखाल,
ब्लॉक- बीरोंखाल,
जिला- पौड़ी गढ़वाल।
31.08.2015

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