मेरा गाँव, मेरे प्राण,

तमलाग गाँव, पटटी गगवाड़स्यूं जिला पौड़ी गढ़वाल 
























 सुदूर पहाड़ की थाती पर है मेरा गाँव

 सुदूर गगवाड़स्यूं घाटी पर है मेरा गाँव

कुंजेठा गुमाई पड़ता है इसके पश्चिम में 
गंगोटी पड़ता है मेरे गाँव के दक्षिण में 

पूर्व दिशा में पड़ती है पाबौं की धार
उत्तर दिशा मे पड़ती है पुन्डोरी की सार
सुदूर पहाड़ की थाती पर है मेरा गाँव
सुदूर गगवाड़स्यूं घाटी पर है मेरा गाँव

हर बारह वर्ष में मौरी का मेला यहाँ लगता है
छः महीने तक संस्कृति का पर्व यहाँ चलता है
छोटी सी एक नदी कुछ दूरी पर बहती है
कभी इसमें अति पानी था अब खाली खाली रहती है
सुदूर पहाड़ की थाती पर है मेरा गाँव
सुदूर गगवाड़स्यूं घाटी पर है मेरा गाँव

आधुनिकता की दौड़ में मेरा गाँव सरपट दौड़ रहा है
ईंट के मकान बनाता पत्थर के मकान तोड़ रहा है
गाँव के ऊपर स्कूल में शिक्षा का स्तर नहीं पहले जैसा
गुरु अब गुरु नहीं रहा, अब तो उसे चये बस पैंसा
सुदूर पहाड़ की थाती पर है मेरा गाँव
सुदूर गगवाड़स्यूं घाटी पर है मेरा गाँव

न अब गाय है न भैंस, न हल जोतते अब बैल से
अन्न अनाज अब दुकान से, दूध भी आता अब शहर से
प्यार मोहब्बत तो है पर अपनापन नहीं है
बच्चे तो है पर उनमे अब बचपन नहीं है
सुदूर पहाड़ की थाती पर है मेरा गाँव
सुदूर गगवाड़स्यूं घाटी पर है मेरा गाँव

इसी गाँव में मेरा भी छोटा सा रैन बसेरा है
यही कोने पर मैंने अपने बचपन को उकेरा है
मुझे नहीं मालूम अब यहाँ कब लौट पाउँगा
क्या अपनी ज़िन्दगी के बचे लम्हे यहाँ काट पाउँगा ?
सुदूर पहाड़ की थाती पर है मेरा गाँव
सुदूर गगवाड़स्यूं घाटी पर है मेरा गाँव



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