Tuesday 12 July 2016

म्यार मुल्कै तीन भैंण मिठ्ठी-मयाली अर प्यारी नौ गढ़वाळी-कुमौनी-जौनसारी Garhwali Poem Garhwali Poem By Pardeep Singh Rawat

लोकभाषा बचाणा कू आन्दोलन का हवन मा एक आहुति मेरी तरफ बटे भी:::---




म्यार मुल्कै तीन भैंण
मिठ्ठी-मयाली अर प्यारी
नौ गढ़वाळी-कुमौनी-जौनसारी

यों दगड़ी बोलण-बच्याण
उत्तराखण्डी की छै या पच्छाण
यों की दगड़्या भी कम नि छाय
भोटिया-राठी-सलाणी।
जन्न माँ की मयळि पराणी।

कभी सर्या उत्तराखण्ड मा
यूं को राज छौ।
शब्द भण्डार भी खूब छौ।
आणा-पखाणां, गीत-कविता
साहित्य भी कम नई छौ।

आज यों गौ-गल्याउँद
घुन्जा घाळीक रुणां छन,
अपणा आख़री सांस लीणा छन,
यूका घौर-गौ मा परदेशी
खूब फळणा-फुलणा छन।
ऊखुणी अकादमी भी बण्यां छन।
यो अपणू का बीच अनाथ ह्वयां छन।

अब बक्त ऐ गै अपणी दुधबोली-भाषा बचाणा कू
अपणो दगड़ी अपणी बोलि-भाषा मा बच्याणा कू।
यख लिखदरो अर सुणदरों की क्वी कमि नीच।
कमि बस पढ़दरों अर बोलदरो की।

हे म्यारा मुल्कै फुन्यानाथौ
हथ्थ जोड़दू तुम कू यूं ‘साथी’
लोकभाषा अकादमी बणै की
बचै द्या तुम गढवाळी-कुमौनी-जौनसारी।
बचै द्या तुम गढवाळी-कुमौनी-जौनसारी।




रचना: गोविन्दराम पोखरियाल ‘साथी’
ग्राम-डुलमोट, पट्टी ढौंडियाल स्यू,
पौड़ी गढ़वाल

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