गढ़वाली भाषा की शब्द सम्पदा से ‘आम’ पर व्यंग्य की आठ - दस पंक्तियां - ‘आम’ Mostpopular Hindi blog Uttarakhand
वुन त आम क्वी बड़ी चीज नी। आम, आम होंदू। आमौ सबसि नजीकौ रिस्तादार बि आम हि होंदू। बकि आमा ओर-पोर खास कुछ नि होंदू। आमै किस्मत मा सुरु बिटि आखिरि तक तड़तुड़ू घाम हि रौंदू। जु जरा फुंडै च अर कुछ दैण लैक च वू बि घाम हि होंदू। घाम जथगा तड़तुड़ू होंदू आम दुन्यादारि मा उथगी पकणू रौंदू। हौंर्यू कु तैं मिट्ठू होणू आम पाल मा अन्ध्यरा कूणा प्वड़यू रौंदू।
फिर्बि झणी किलै, एक आम हैंका आमा काम नी औंदू। एक आम चुस्येणू रोंदू हैंकू बेकूब सि वेकि दुर्दसा दिखणू रौंदू। पर आम होणूू बि क्वी कम बात नी। आम त आम आमै हडेली बि कामै होंदन। पर आमौ दाम वे आमा काम कबि नि औंदू जु चुस्ये जांदू। वे आमौ दाम क्वी हौरी चट कर जांदू।
आम घूस नि खांदू। आम वी खांदू जु सदानि आम खांदू। आम खाण वळौं कु बि ना नि ब्वल्दू। किलैकि ना बोली बि क्वी आम खाण नी छोड़दू। कयि बार आम खाण वळौं तैं आम खै-खै कि हैजा ह्वे जांदू। आम खै कि कै तैं हैजा ह्वे जाणू, आमौ कसूर मण्ये जांदू। फिर्बि आम कुछ नी ब्वल्दू, वू चुपचाप सौब कुछ सौंणू रौंदू।
छुटू-बड़ू क्वी बि काम बणू य बिगड़ू , आम हि खाँम-खा बदनाम होंदू। आम हि नुकसान उठौंदू। आम हि खुलाआम चुस्ये जांदू। आम हि खुलाआम पिस्ये जांदू। आमौ अमचूर बि खुलाआम बणये जांदू। आम काचू होवु चा पाकू, खुलाआम काटि-काटी, सुखै-सखैकि अचार बि वेकु हि डळै जांदू। आम जथगा मिट्ठू होंदू , वाँ सि जादा वू आम ह्वे जांदू। पर दिख्ण मा यू औंदू कि आम्वा बीच जु जथगा मिट्ठू च वू उथगी पिड़ा बि पचाौंणू रौंदू।
लोग आम तैं पुछदन - तू यिं मिठास कख बिटि लौंदू?
आम जबाब देंदू - हमारा सभौ मा मिठास च कि खटास तांकि परमेसुर हि जाणू। हमारु काम च आम अर आमै खलड़ी मा रौणू। बस हमतैं जरासि कमर टिकौण लैक जगा चहेणी च । ताँसि सि बकि हमतैं कुछ नी चहेणू।
पर या बि परमेसुरै किरपा च कि आम पर चा ध्यान द्या नि द्या, आम रै बि जांदू अर ह्वे हि जांदू। आम मुसीबतू देखी नी घबड़ोदू । न आम दुख तकलीफ मा अपड़ा हथ-खुट्टा छोड़दू।
इन बि नी कि आम सदानि निरोगी रौंदू य आम तैं क्वी रोग नी होंदू। आमौ रोग बि आम होंदू। पर आम तैं क्वी राज रोग नि होंदू। आम तैं बलड परेसर, सुगर बि नी होंदू। आम तैं उंद-उब, टै-फै बि नि होंदू। न आम क्वी काम रोक्दू। आम बुखार मा बि खड़ू रोंदू। आम जु कुछ बि कर्दू खुला हाथन कर्दू। आम कै पर्बि डाम नी धर्दू। आम अपड़ि किस्मत देखी भुयां मा अपड़ू कपाल बि नी थेड़दू ।
जख आम च वख तोता होंदू यिं बात तैं हर क्वी ढूंगै सि लकीर मणदू। आमौ सभौ मिट्ठू होंदू पर आम चापलूस नी होंदू। तोता मिट्ठू बि ब्वल्दू अर चापलूस बि होंदू। चापलूस्या बल पर तोतन आमौ फैदा उठै। आम बिचारु जख छौ वू वक्खि रै। तोता आम तैं खै बि जादूं अर वे पर छेद बि कर जांदू। आम सदानी अपड़ा घौ दिखदि रै जांदू। आमौ खै प्येकि बि तोता न कबि आमौ क्वी गुण ऐसान मणदू न वेकु गुण गान कर्दू। कुछ लोग ब्वल्दन कि आम इथगा लाटू-कालू नि होंदू त क्वी बि तोता एक बेळी बि नि खै सक्दू। यिं दुन्या बिटि सबि तोता - तातौं कु नौ निसाण हि मिट जांदू। पर हमारि समझ मा त यि नी औणू कि ध्वखा खै-खै कि बि आम अपड़ा दिमाम मा यिं बात किलै नी बैठाणू कि चुनौ त सदानि आम्वा बीच होणू पर बार-बार तोतै किलै छंटै जाणू?
जरा हौर गौर करा, वूं तैं पांच गौं चहेणा छा अर वे तैं सरु हस्तीनापुर छौ चहेणू। पर मा भारत मा जु सबसि जादा कटे-म्वरे वू आम झणी कै नौ कु छौ ? वू आम झणी कैं मौ कु छौ? वू आम झणी कै गौं कु छौ? बस्स, आमै भीड़ मा वू आम छौ। वे आमन जबारि माभारत भिड़ी वू तबारि बि आम छौ। आज बि वू आम च। आज बि वे आमै पिड़ा आम च। आज बि वे आमै बिमारि आम च।
फिर्बि झणी किलै, एक आम हैंका आमा काम नी औंदू। एक आम चुस्येणू रोंदू हैंकू बेकूब सि वेकि दुर्दसा दिखणू रौंदू। पर आम होणूू बि क्वी कम बात नी। आम त आम आमै हडेली बि कामै होंदन। पर आमौ दाम वे आमा काम कबि नि औंदू जु चुस्ये जांदू। वे आमौ दाम क्वी हौरी चट कर जांदू।
आम घूस नि खांदू। आम वी खांदू जु सदानि आम खांदू। आम खाण वळौं कु बि ना नि ब्वल्दू। किलैकि ना बोली बि क्वी आम खाण नी छोड़दू। कयि बार आम खाण वळौं तैं आम खै-खै कि हैजा ह्वे जांदू। आम खै कि कै तैं हैजा ह्वे जाणू, आमौ कसूर मण्ये जांदू। फिर्बि आम कुछ नी ब्वल्दू, वू चुपचाप सौब कुछ सौंणू रौंदू।
छुटू-बड़ू क्वी बि काम बणू य बिगड़ू , आम हि खाँम-खा बदनाम होंदू। आम हि नुकसान उठौंदू। आम हि खुलाआम चुस्ये जांदू। आम हि खुलाआम पिस्ये जांदू। आमौ अमचूर बि खुलाआम बणये जांदू। आम काचू होवु चा पाकू, खुलाआम काटि-काटी, सुखै-सखैकि अचार बि वेकु हि डळै जांदू। आम जथगा मिट्ठू होंदू , वाँ सि जादा वू आम ह्वे जांदू। पर दिख्ण मा यू औंदू कि आम्वा बीच जु जथगा मिट्ठू च वू उथगी पिड़ा बि पचाौंणू रौंदू।
लोग आम तैं पुछदन - तू यिं मिठास कख बिटि लौंदू?
आम जबाब देंदू - हमारा सभौ मा मिठास च कि खटास तांकि परमेसुर हि जाणू। हमारु काम च आम अर आमै खलड़ी मा रौणू। बस हमतैं जरासि कमर टिकौण लैक जगा चहेणी च । ताँसि सि बकि हमतैं कुछ नी चहेणू।
पर या बि परमेसुरै किरपा च कि आम पर चा ध्यान द्या नि द्या, आम रै बि जांदू अर ह्वे हि जांदू। आम मुसीबतू देखी नी घबड़ोदू । न आम दुख तकलीफ मा अपड़ा हथ-खुट्टा छोड़दू।
इन बि नी कि आम सदानि निरोगी रौंदू य आम तैं क्वी रोग नी होंदू। आमौ रोग बि आम होंदू। पर आम तैं क्वी राज रोग नि होंदू। आम तैं बलड परेसर, सुगर बि नी होंदू। आम तैं उंद-उब, टै-फै बि नि होंदू। न आम क्वी काम रोक्दू। आम बुखार मा बि खड़ू रोंदू। आम जु कुछ बि कर्दू खुला हाथन कर्दू। आम कै पर्बि डाम नी धर्दू। आम अपड़ि किस्मत देखी भुयां मा अपड़ू कपाल बि नी थेड़दू ।
जख आम च वख तोता होंदू यिं बात तैं हर क्वी ढूंगै सि लकीर मणदू। आमौ सभौ मिट्ठू होंदू पर आम चापलूस नी होंदू। तोता मिट्ठू बि ब्वल्दू अर चापलूस बि होंदू। चापलूस्या बल पर तोतन आमौ फैदा उठै। आम बिचारु जख छौ वू वक्खि रै। तोता आम तैं खै बि जादूं अर वे पर छेद बि कर जांदू। आम सदानी अपड़ा घौ दिखदि रै जांदू। आमौ खै प्येकि बि तोता न कबि आमौ क्वी गुण ऐसान मणदू न वेकु गुण गान कर्दू। कुछ लोग ब्वल्दन कि आम इथगा लाटू-कालू नि होंदू त क्वी बि तोता एक बेळी बि नि खै सक्दू। यिं दुन्या बिटि सबि तोता - तातौं कु नौ निसाण हि मिट जांदू। पर हमारि समझ मा त यि नी औणू कि ध्वखा खै-खै कि बि आम अपड़ा दिमाम मा यिं बात किलै नी बैठाणू कि चुनौ त सदानि आम्वा बीच होणू पर बार-बार तोतै किलै छंटै जाणू?
जरा हौर गौर करा, वूं तैं पांच गौं चहेणा छा अर वे तैं सरु हस्तीनापुर छौ चहेणू। पर मा भारत मा जु सबसि जादा कटे-म्वरे वू आम झणी कै नौ कु छौ ? वू आम झणी कैं मौ कु छौ? वू आम झणी कै गौं कु छौ? बस्स, आमै भीड़ मा वू आम छौ। वे आमन जबारि माभारत भिड़ी वू तबारि बि आम छौ। आज बि वू आम च। आज बि वे आमै पिड़ा आम च। आज बि वे आमै बिमारि आम च।
ब्यंग्यकार सुरेन्द्र कठैत जी
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आम आम हि रैंद, खास नि हुवे पांदू
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ji sahi kaa apne, narendra katait ji bahut bade byangykar hai garhwali ke 12 kitabe nikal chuke hai
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