कख हर्ची होलि वा ज्वानि की भूख,
कख हर्ची होलि वा ज्वानि की तीस।
जब लोणे की गारी मा चुने की रोटी खयेन्दी छै,
जब खटटी छांछ भी बिना सांस लिया पियेन्दी छै।
जब पयो छन्छेंडू देखी की कंठ खुली जान्दू छौ,
लिम्बै की कछमोली देखी की मुखमा पाणी आन्दू छौ।
कख हर्ची होलि वा ज्वानि की भूख,
कख हर्ची होलि वा ज्वानि की तीस।
जब घसेरी बिसोणी बिशान्दी छै,
जब डाळी छैल घरऽऽ निंद आन्दी छै।
क्या होन्दी छै फैशन हमन कतै नि जाणी,
सुप्न्यो मा होन्दी छै बस हमारि स्याणी गाणी।
कख हर्ची होली वा घनाघोर नीद,
कख हर्ची होली वी डाळी कू छैल।
ख्वेंडी दाथी रैंदी छै रोसलू का बोण,
बाली उमर छै हमारि वुनि स्वीली होण।
चिपलू बाटू वुनी मुंड मा घास कू बोझ,
बरामैनो कू दुःख रैन्दू छो हमारू हर रोज।
कख हर्ची होलि वु डांडी कंट्यूँ कू साथ,
कबलट प्राणमा हमारा लगी तीस जेठ की,
ब्यौ बरत्यु मा बुजदी छै भूख हमारि पेट की।
सुबेर शाम बस हमूतै राहि काम ही काम,
क्या बसग्याल क्या ह्यूंद क्य रूड़ी का घाम।
कख हर्ची होलि वा ज्वानि की भूख,
कख हर्ची होलि वा ज्वानि की तीस।
Garhwali poem garhwali kavita Garhwali poem garhwali kavita Garhwali poem garhwali kavita
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें