Monday 18 July 2016

ममता की छांव में लहलहा रही हरियाली Most Popular Hindi Blog Uttarakhand

ममता की छांव में लहलहा रही हरियाली

चमोली से जिला मुख्यालय गोपेश्वर स्थानांतरित होने के बाद काट दिया गया था गोपेश्वर गांव का सारा जंगल

1972 में पार्वती देवी, श्यामा देवी व सुदामा देवी के प्रयासों से अस्तित्व में आया था बंज्याणी का जंगल


हरीश बिष्ट, गोपेश्वर,
धरा को हरा-भरा रखने के लिए हर साल भारी मात्र पौधे रोपे जाते हैं और फिर लोग आदतानुसार उनकी देखरेख करना भूल जाते हैं। मगर हिमालय के आंचल में बसे गोपेश्वर गांव की महिलाओं ने गांव के निकट बंज्याणी में पौधे रोपने के बाद उन्हें अपनी ममता की छांव भी प्रदान की। और..फिर सख्त होते हुए पेड़ काटने वालों पर जुर्माना लगाने का प्राविधान भी कर दिया। तब से अब तक 44 बरस हो गए हैं और फैलता ही जा रहा है मातृशक्ति का लगाया यह बांज का जंगल। जो उत्तराखंड ही नहीं अन्य प्रदेशों के लिए भी अनुकरणीय उदाहरण है।1जिस जगह आज गोपेश्वर नगर है, वहां कभी बांज-बुरांश समेत अन्य प्रजातियों का घना जंगल हुआ था। गांव के लोग इस जंगल का उपयोग चारापत्ती, जलौनी व इमारती लकड़ियों के लिए किया करते थे। 1971-72 में जब जिले का मुख्यालय चमोली कस्बे से गोपेश्वर स्थानांतरित हुआ, तब सड़क व भवनों के निर्माण के लिए पूरा का पूरा जंगल साफ कर दिया गया। लेकिन, मातृशक्ति को मालूम था कि जंगल तो जीवन का पर्याय है, इसलिए उसने नए सिरे से जंगल लगाने का संकल्प लिया। 1972 में गोपेश्वर गांव की महिलाओं पार्वती देवी, श्यामा देवी व सुदामा देवी ने फिर से गोपेश्वर के निकट जंगल बनाने की ठानी। 

इन महिलाओं ने गांव में बैठक कर इस कार्य में अन्य महिलाओं को भी साथ लिया। गांव के पदम सिंह ने पौड़ी से लाए गए बांज के बीजों से नई पौध तैयार की और फिर इन पौधों को गोपेश्वर गांव के निकट की बंजर भूमि पर रोपा गया। इसके साथ ही पौधों की देखरेख की शपथ भी महिलाओं ने उठाई।1धीरे-धीरे बांज के ये पौधे पेड़ के रूप में तब्दील होने लगे और बसता चला गया बांज का घना जंगल। मातृशक्ति को इतने पर ही संतोष नहीं हुआ, सो बैठक बुलाकर निर्णय लिया कि चारापत्ती व जलौनी लकड़ी समेत अन्य किसी भी उपयोग में इस जंगल को नहीं लाया जाएगा। यह भी तय हुआ कि बांज के जंगल में कोई पेड़ों को नुकसान पहुंचाएगा तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा। नतीजा, बीते छह दशक से यह जंगल लगातार समृद्ध होता जा रहा है।1गांव के वन पंचायत सरपंच सुनील कुमार भट्ट बताते हैं, बंज्याणी के जंगल का संरक्षण सारे गांव वाले करते हैं। इस जंगल के कारण ही वैतरणी नदी का स्नोत वर्षभर जीवित रहता है। गांव के ही धन सिंह नेगी का कहना है कि बांज के जंगल के इर्द-गिर्द हमेशा ठंडा व स्वच्छ पानी बहता रहता है। जंगल के निकट वर्षो पहले जो भूस्खलन हो रहा था, अब वह भी थम गया है।गोपेश्वर गांव के पास बांज का जंगल।
 जागरण

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