रुमुक सतपुळि नयरि छाल की
****************************
थड़्या-चौंफळा सि लगाणि च रुमुक ।****************************
जन जून भ्यटणा को जाणि च रुमुक ॥
मेळु-पंया-सकिन्या का पल्वस्यां फूल ।
अफु पिंग्ळि पोतळ चिताणि च रुमुक ॥
कुबरण्यां-डुबरण्यां कळचुण्ड़्या आंखि।
फर्र-फर्र ड्यब्ळि फरकाणि च रुमुक ॥
समळ्यौण्यां खुद थैं बटि-बाटा लगैकि ।
बिंदरि गौड़ि सि कन रमाणि च रुमुक ॥
पिंग्ळु दुसला कु मुण्ड्यड़ू बांधिकि ।
कणट करदा-करदा जाणि च रुमुक ॥
दिनमनि की हैंसि ठट्ठा छोडि-छाडिक ।
यखुल्या यखुलि रुफणाणि च रुमुक ॥
झणि कै का सोचुम पोड़िक "पयाश" ।
खुट्यूं ऐथर-ऐथर सरकाणि च रुमुक ॥
@पयाश पोखड़ा ।
Garhwali poem garhwali kavita Garhwali poem garhwali kavita Garhwali poem garhwali kavita
Garhwali poem garhwali kavita Garhwali poem garhwali kavita Garhwali poem garhwali kavita
रुमुक पर इतका सुन्दर कविता पैले कभी नि पाढी। ..
ReplyDeletepayash pokhra ji ki hai bahut sundar gajal likhte hai didi
Delete