Wednesday 13 July 2016

रुमुक सतपुळि नयरि छाल की Garhwali Poem

रुमुक सतपुळि नयरि छाल की
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थड़्या-चौंफळा सि लगाणि च रुमुक ।
जन जून भ्यटणा को जाणि च रुमुक ॥

मेळु-पंया-सकिन्या का पल्वस्यां फूल ।
अफु पिंग्ळि पोतळ चिताणि च रुमुक ॥

कुबरण्यां-डुबरण्यां कळचुण्ड़्या आंखि।
फर्र-फर्र ड्यब्ळि फरकाणि च रुमुक ॥

समळ्यौण्यां खुद थैं बटि-बाटा लगैकि ।
बिंदरि गौड़ि सि कन रमाणि च रुमुक ॥

पिंग्ळु दुसला कु मुण्ड्यड़ू बांधिकि ।
कणट करदा-करदा जाणि च रुमुक ॥

दिनमनि की हैंसि ठट्ठा छोडि-छाडिक ।
यखुल्या यखुलि रुफणाणि च रुमुक ॥

झणि कै का सोचुम पोड़िक "पयाश" ।
खुट्यूं ऐथर-ऐथर सरकाणि च रुमुक ॥

@पयाश पोखड़ा ।

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2 comments:

  1. रुमुक पर इतका सुन्दर कविता पैले कभी नि पाढी। ..

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    1. payash pokhra ji ki hai bahut sundar gajal likhte hai didi

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