प्रभाकर मीणा भास्कर' पंत द्वारा लिखी और निदेशित फिल्म "बरसात की रात" शार्ट हिंदी फिल्म जो सत्य घटना के बहुत करीब हैजिसे देखने बाद मन में दर पैदा हो जाता है,
Saturday, 18 November 2017
Friday, 17 November 2017
क्यों डूबना चाहते हो ? पंचेश्वर बाँध
क्यों मिटना चाहते हो सर से पेड़ की छावं को।
क्यों अँधेरे में धकेलते हो शहर के उजाले के लिए,
क्यों माटी से खदेड़ते हो शहर के निवाले के लिए।
मेरी पीढ़ियों ने इस पिथौरागढ़ को बनते देखा है,
दो देशो की संस्कृति के रंगों को यहाँ मिलते देखा है।
क्यों इन रंगों को पानी में घोलने पर तुम यूँ अड़े हो,
क्यों इस हिमालय को यूँ तहस नहस करने चले हो।
इस सूर्य से ऊर्जा लो तुम श्रोत है ये अखंड ताप का,
क्यों डुबोकर जीवों के घरों को भागी बनते हो पाप का।
इस बांध की बिजली की एक सीमा है ये तुम्हे भी ज्ञात है,
प्रतिनिधि कहते हो खुद को कहाँ आज तुम्हारा साथ है,
सोचो एक सौ चौंतीस गाँव के पर क्या होगा असर,
अपना गाँव अपने लोग कहाँ आयेंगे तब साथ नजर।
कौन कहाँ बसेगा पता नहीं एक संस्कृति क्षीण हो जायेगी,
पंचेश्वर विशाल बाँध में एक पूरी सभ्यता लीन हो जाएगी।
टिहरी सक्षात गवाह है क्या वहां कोई विकास हुआ है,
पर्यावरण को बिगाड़ कर वहाँ बस सर्वनाश हुआ है।
भले कुछ लोगों को वह झील बड़ी सुवाहानी लगती है,
जिन्होंने खोया अपने घरों को उन्हें वह डरावनी लगती है।
मत लो अब और तुम इस हिमपुत्र की धर्य की परिक्षा,
नींद को छोड़कर है अब माटी के लिए लड़ने की इच्छा।
जो खामोश रहेगा आज, कल उसके घर की बारी है,
अपने वजूद को बचाने के लिए संघर्ष हमारा जारी है।
प्रदीप रावत "खुदेड़"
18/11/2017
Wednesday, 15 November 2017
उमार कटेगी मेरि गौ का ओडा धारूँ मा,
उमार कटेगी मेरि गौ का ओडा धारूँ मा,
म्येसणी तू अपड़ी दगड़ा शैर सरकाणे छ्वीं न कैर।
मि खूब छौ ईख, एखि होड़ पोडयूं ,
म्येसणी तू हैका होड़ फ़रक़ाणे छ्वीं न कैर।
अटगवू छौ मि, जब बटि तू शैर क्या गये,
जब बटि तू भैर क्या गये,
तब बटि तू द्वी लपक पैदल नई चल सकणी छै।
म्येसणी भी तू लम्बी ठंडी कार मा बैठाणे छवि न कैर।
इखी ई थाती मोरी अमर व्हे जौलू मी,
म्येसणी तू यी धरती बटि उठाणे छवी न कैर।
जब बटि तिन स्यू लदोडू (पिज्जा) सी चबाण क्या सीखी,
अटगवू छौ मि,
त्वे घरया कल्यो देखी उक्ये आणी च,
मेते भी तू चम्चोन खालणे छ्वी न कैर।
मि खूब जाली जंदों डांडा बोण मा,
मेसाणी बी सैणा दोंपाल चलाणे छ्वीं न कैर।
हाँ अगर त्वे मेरि फिकर च, ए
साल छै मैना मा पितृ ते याद कैदे।
म्येरू आश्रीवाद त्वे दगड़ी रालू ,
गोवा शिमला घुमणा बाद,
चार दिनों अपड़ा मुल्क भी एैजे।
Monday, 13 November 2017
आखिर क्यों नहीं मिल पाते कभी भी अच्छे गीतों को व्यूअर
दर्शन फर्स्वाण सुन्दर आवाज का धनी है, वैसे तो दर्शन फर्स्वाण गीत रिलीज हो चुके है, और इसमें कोई शक नहीं है की उनके हर गीत अच्छे है, पर अगर दादू गोरिया गीत की बात करें तो यह बहुत ही सुंदर लोक गीत है और दर्शन इस गीत को बहुत सुंदर गया है, संगीत के जानकार इनकी तारीफ करहै पर इतने सुंदर गीत को व्यूअर नहीं मिल पा रहे है, क्या इसका कारण गायक का नया होना है या फिर गीत की अच्छे से पब्लिसिटी नहीं होना है, आप भी सुनिए दर्शन फर्स्वाण की आवाज में ये खूबसुरत गीत
Friday, 10 November 2017
जोशीमठ विकासखंड में कीवी की पैदावार उत्साहित करने वाली है। Now Kiwi is born in Uttarakhand उत्तरावणी के सौजन्य से
दुनिया मे सुपर फ्रुट के नाम से मशहूर न्यूजीलैंड के राष्ट्रीय फल कीवी का उत्पादन अब चमोली जिले के सीमांत विकासखंड जोशीमठ में भी हो रहा है। विकासखंड के पैनी व बड़ागांव में कीवी के उत्पादन से काश्तकारों की उम्मीदों को पंख लग रहे हैं।
उद्यान निरीक्षक सोमेश भंडारी के मुताबिक सीमांत जोशीमठ विकासखंड में कीवी की पैदावार उत्साहित करने वाली है। अन्य किसानों को भी कीवी उगाने के लिए प्रेरित किया जाएगा। कीवी के फल की मांग बहुत है। खासकर यह पर्यटकों को खूब पसंद आ रहा है।
कीवी का पेड़ झाड़ीनुमा होता है। जिसमे कीवी लगता है यह पेड़ जोड़े (नर व मादा) में होते हैं। समुद्रतल से 600 से 1800 मीटर की ऊंचाई पर पैदा होने वाला कीवी औषधीय गुणों के साथ सभी प्रकार के पोषक तत्वों का भी भंडार है।
यह फल न्यूजीलैंड के अलावा चीन, फ्रांस, चिली, ब्राजील आदि देशों में भी प्रचुर मात्रा मे उगाया जाता है। अब इसकी खेती उत्तराखंड में चमोली जिले के सीमांत जोशीमठ प्रखंड में भी होने लगी है। प्रखंड के पैनी व बड़ागांव में कीवी की पैदावार ने किसानों के लिए संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। खासकर उस स्थिति में, जब जलवायु परिवर्तन के चलते निचले क्षेत्रों में सेब की पैदावार सिमट रही है।
कीवी फल के गुण
कीवी (एक्टीनिडिया डेलीसिओसा) बहुत ही गुणकारी फल है। सौ ग्राम के कीवी में 61 कैलोरी 14.66 ग्राम कॉर्बोहाइड्रेट और नींबू से दोगुना विटामिन-सी पाया जाता है। इसके अलावा विटामिन-बी, प्रोटीन, एसिड, सोडियम, कैल्शियम, पोटेशियम सहित अन्य तत्व भी इसमें पाए जाते हैं।
पावर हाउस ऑफ एंटीऑक्सिडेंट कहा जाने वाला कीवी रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाता है। गैस, पेट के रोग, खून की कमी व प्लेटलेट्स बढ़ाने में यह बहुत उपयोगी है। दुनिया मे इसकी 50 से अधिक वैरायटी पाई जाती हैं। औसतन 40 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान में पैदा होने वाले कीवी को कम से कम आठ महीने तक ठंड का वातावरण चाहिए।
Thursday, 9 November 2017
अनामिका चौहान ने टूरिस्ट गाइड बनकर उत्तराखंड के युवाओं को रोजगार की नई राह दिखाई है। By श्रीनगर ’ मनमोहन हिन्दुस्तान
सिंधवाल चमोली के पुलना गांव निवासी अनामिका चौहान ने टूरिस्ट गाइड बनकर उत्तराखंड के युवाओं को रोजगार की नई राह दिखाई है। बीएससी करने के बाद गाइड का काम कर रही अनामिका हर महीने दो सौ अधिक पर्यटकों को उच्च हिमालय की सैर करा रही हैं। गढ़वाल विवि में बीएससी बॉटनी की छात्र रही अनामिका चमोली जिले के भ्यूंडार गांव की रहने वाली हैं। 2013 की आपदा में उनका गांव तबाह हो गया। अब उनका परिवार पुलना गांव में रहता है। अनामिका के पिता विनोद चौहान घांघरिया में यात्र सीजन में होटल चलाते हैं। अनामिका एक साल से घांघरिया से गाइ¨डग का काम कर रही हैं। अनामिका इस क्षेत्र की पहली छात्र है, जो बीएसससी करने के बाद टूरिस्ट गाइ¨डग का काम कर उच्च हिमालयी क्षेत्र की सैर करा रही हैं।
अनामिका ने बताया कि वह देसी, विदेशी पर्यटकों को फूलों की घाटी, हेमकुंड, काग भुसंडी ताल आदि उच्च हिमालयी क्षेत्रों की ट्रेकिंग कराती हैं। हर महीने वह 200 से अधिक पर्यटकों को उच्च हिमालय की सैर कराती हैं।
उनके क्षेत्र के कई पुरुष गाइड का काम करते हैं, इसलिए मैंने सोचा, यह काम मैं भी कर सकती हूं। वे बांली, अब तक वे आस्ट्रेलिया, जापान, बंगाली, दक्षिण भारत, भारत देश के विभिन्न हिस्सों आने वाले पर्यटकों को हिमालय की सैर करा चुकी है। वे पर्यटकों के एक से तीन लोगों के ग्रुप से एक हजार और इससे ज्यादा के ग्रुप से दो हजार रुपए लेती हैं। अनामिका बताती हैं कि पिछले एक साल से वह यह काम कर रही हैं। बीएससी बॉटनी से करने और स्थानीय होने के कारण हिमालय की वनस्पतियों के बारे में बताने में उन्हें आसानी होती है। वे बताती हैं उसकी गाइडिंग से खुश पर्यटक उसे अब क्वीन ऑफ वैली के नाम से पुकारते हैं।
अनामिका ने बताया कि वह देसी, विदेशी पर्यटकों को फूलों की घाटी, हेमकुंड, काग भुसंडी ताल आदि उच्च हिमालयी क्षेत्रों की ट्रेकिंग कराती हैं। हर महीने वह 200 से अधिक पर्यटकों को उच्च हिमालय की सैर कराती हैं। उनके क्षेत्र के कई पुरुष गाइड का काम करते हैं, इसलिए मैंने सोचा, यह काम मैं भी कर सकती हूं। वे बांली, अब तक वे आस्ट्रेलिया, जापान, बंगाली, दक्षिण भारत, भारत देश के विभिन्न हिस्सों आने वाले पर्यटकों को हिमालय की सैर करा चुकी है। वे पर्यटकों के एक से तीन लोगों के ग्रुप से एक हजार और इससे ज्यादा के ग्रुप से दो हजार रुपए लेती हैं। अनामिका बताती हैं कि पिछले एक साल से वह यह काम कर रही हैं। बीएससी बॉटनी से करने और स्थानीय होने के कारण हिमालय की वनस्पतियों के बारे में बताने में उन्हें आसानी होती है। वे बताती हैं उसकी गाइडिंग से खुश पर्यटक उसे अब क्वीन ऑफ वैली के नाम से पुकारते हैं।
फूलों की घाटी में पर्यटकों को जानकारी देते अनामिका।
Tuesday, 7 November 2017
क्या आपने देखे जाकिर हुसैन और पहाड़ ढोल दमाऊ की जुगलबंदी -गौं गुठ्यार
जी हाँ अगर यकिन नहीं हो रहा है तो उत्तराखंड के प्रशिद्ध हस्य कलाकार किशना बगोट जी द्वारा चलायी जा रही गौं गुठ्यार की इस सीरीज में उन्होंने पहाड़ के ढोल दमाऊ के साथ, प्रसिद्ध तबला बादक जाकिर हुसैन की जुगलबंदी को बड़े ही अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है और यह सन्देश लोगों तक पहुंचाया है कि अगर कोई हमारे पहाड़ के ढोलसागर को लिपिबद कर दे तो आने वाली पीढ़ियां इस सिख सकती है, और केवल ढोलबादक के बच्चे ही क्यों इसको सीखे क्यों न अन्य समाज के बच्चे भी इस आत्मसात करें ,
Monday, 6 November 2017
B MOHAN NEGE JI हे चित्रकला के हुनरबंद।
स्कैच - अतुल गुसाईं "जाखी" |
हे चित्रकला के हुनरबंद।
एक चित्र बैकुंठ का रंग भरकर सजा देना।
एक चित्र पर मृत्यु लोक का हाल बता देना
मिलकर शहीद आन्दोलनकारियों से एक बार
उत्तराखंड का चित्र बनाकर दिखाना जरुर हाल
ज्ञान हो जायेगा उन्हें कलवन्ति हाथों से भरे रंगो से
उत्तराखंड की दशा पर नाराज हो जायेंगे अपनों से
जगह जगह मदिरालय का एक चित्र भी बना देना
गाँव में बंद बिद्यालय को तुम एक कृति से बता देना
गाँव से शहर जाते लोगों की चित्र में उकेरना कतार
संशाधनो की लुट पर नेताओं को बनाना एक सूत्रधार
गैरसैण को चित्र में गेंद रूप में उकेरकर जरुर दिखाना
अभी भी देहरादून में मौज कर रहे है ये जरुर बताना
कन्हैयालाल, गिरदा,राही जी, कुंवर से करना मुलाक़ात।
कोई रचना रांची होगी तो कुची से बना देना उनके जज्बात
प्रदीप रावत "खुदेड़"
27/10/2017
मेरी गगवाड़स्यूं घाटी My Gagawadsein Valley By Pardeep Singh Rawat #Khuded
शत शत वंदन करता हूँ मै!! तुझे हे पितृ थाती!!
सर पर कंडोलिया, नागदेव, विराजकर देते है, देव छावं
मुखपटल विराजे ननकोट बौंसरी नौटियाल थपलियाल गाँव
बलोड़ी बुडौली डांग पयाल गण्यगाँव सुशोभित है तक्षुपटल
तेरे भुजाबल उज्याड़ी गहड़ गगवाड़ा,ल्वाली है केंद्र स्थल
जन के मुख पर हस्य बिखेरता "घनानंद" की ये जन्मथाती
माथे पर लगाता हर कोई श्रदालु देवलेश्वर की पवित्र माटी
कई वीर सपूत तेरे सीमा पर तत्पर प्राण करने को अर्पण
बलदेव प्रसाद नौटियाल अशीष नैथानी तेरे साहित्य दर्पण
ल्वाली कालेश्वर है यहाँ बिद्या के बहुत पुराने पवित्र स्थान
बिद्यार्थियों के उज्जवल भबिष्य का मिलता है यहाँ ज्ञान
मेजवानी करता फुटवॉल कुम्भ की यहाँ हर वर्ष उज्याड़ी
देश में चमक विखेरते है आज इस घाटी के कई खिलाडी
नेगाणा पाबौ सुमेरपुर ग्राम है, सुख सम्पदा से धनवान
चमल्याखाल निनारा कड़ाकोट बढ़ाते तेरा मान सम्मान
मौरी कौथिग,पांडव नृत्य, विख्यात तमलाग कुंजेठा गाँव
मुझ तुच्छ कलमकार की जन्मभूमि यहीं लेखता जो मन भाव
कबल्ठी के भैरव बाबा का जंगल में तरुवर नीचे यहाँ थान
पूरी घाटी के भक्त दर्शन पाकर करते है बाबा के गुणगान
पेड़ों की छावं हरसुड़ में बसे है महादेव, बैल देते यहाँ दान
पग पग पर भोले बसे यहाँ,महादेव की घाटी देता मै इसे नाम
एक ओर रोंतेली पुंडोरी श्यामपुर, दूजा ओर शीतल गुमाई
धनाऊँ बणगाँव ने पशुधन और मेहनत से प्रसिद्ध यहाँ पायी
गुमाई जैविक अरबी में तो बणगाँव यहाँ प्याज में अब्बल
घाटी की शोभा बढ़ाते है बांज बुरांश देवद्वार और काफल
सुंदर रमणीय ग्राम नागोली खपरोली बसे है वनों के तले
गाँव अंतिम हैं क्वली मंजेडा इस घाटी के लोग है बड़े भले
आवाहन करता "खुदेड़" जो बहार बस गए छोड़कर घाटी
विकास करें मिलकर यहाँ लौटकर आ जाओ अपनी माटी
सुन्दर रमणीय समृद्ध है मेरी गगवाड़स्यूं घाटी।
शत शत वंदन करता हूँ मै तुझे हे पितृ थाती।।
प्रदीप रावत "खुदेड़"
06/11/2017
Thursday, 2 November 2017
अलग व्हेगेन Garhwali Poem By Pardeep Singh Rawat Khuded
जड़ड़ू गोळू एक छौ फौंगा अलग व्हेगेन।
सुण मा आणी पल्या मौ का बी अलग व्हेगेन।।
ज्यू लाट निसड़ू एक च डांगा अलग व्हेगेन।
बाब दादा एक छन पर फंगा अलग व्हेगेन।।
द्यौ देब्ता एक छन द्यीव धूपोणू अलग व्हेगेन।
अब त दुख बिपदा मा बी उचेणू अलग व्हेगेन।।
खोळ एक च पर पैणू पातू अलग व्हेगेन।
डिंडाळी एक च पर अब बाटू अलग व्हेगेन।।
लुहार एक च पर अब पयार अलग व्हेगेन।
औजी एक च पर अब डडवार अलग व्हेगेन।।
धारू पंदेरू एक च पर अब बंठा अलग व्हेगेन।
छौ एक जू सोनो टूकड़ा वू कंठा अलग व्हेगेन।।
खातु खतोनी एक च पर हिसाब अलग व्हेगेन।
डाक डाकनू एक च पर किताब अलग व्हेगेन।।
हाँ अगर अलग नि व्हे त,
बाबा जी कि छाया माँ जी कू दुलार।
दै दादों की ओट दिशा ध्याण्यू प्यार।।
प्रदीप सिंह रावत ”खुदेड़“
Wednesday, 1 November 2017
गढ़वाली कुमाउनी भाषा को एक ही गाने में प्रयोग करके इतना सुन्दर गीत बनाया है गुंजन डंगवाल ने
गुंजन डंगवाल उत्तराखंड संगीत में एक स्थापित नाम है जिन्होंने पहाड़ी संगीत में बहुत से प्रयोग किये और वह उन सब में सफल रहे , इस बार वह एक नया प्रयोग करके दर्शक के बीच आये है , उन्होंने उत्तराखंड की दो प्रमुख भाषाओं के शब्दों को बारी बरी करके एक ही गाने में प्रयोग किया है और वाकई में यह गीत बहुत सुंदर बना है, "मै तै पता ना" के इस गीत में आवाज गुंजन डंगवाल और मोहित तिवारी की है और गढ़वाली लिरिक्स कैलाश डंगवाल ने लिखे है तथा कुमाउनी लिरिक्स आशा तिवारी और राजेंद्र कांडपाल ने लिखा है, संगीत में उनका साथ दिया है सुमंत पंवार प्रत्युष मनराल ने. इस प्रकार के प्रयोग से वह दोनों भाषाओँ के दर्शको को अपने गाने सुनने का मौक़ा दे रहे है और उनके दर्शक बढ़ रहे है, गौरतलब है कि गुंजन डंगवाल के संगीत ने चैते की चैतळी को नए अंदाज में अमित सागर की आवाज में दर्शकों के सामने रखा था और यह उत्तराखंड के संगीत में मील का पत्थर साबित हुआ,
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गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली
गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली गढ़वाली भाषा का प्रारम्भ कब से हुआ इसके प्रमाण नहीं मिलते हैं। गढ़वाली का बोलचाल या मौखिक रूप तब स...
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