Friday 17 November 2017

क्यों डूबना चाहते हो ? पंचेश्वर बाँध


क्यों डूबना चाहते हो मेरे शहर मेरे गाँव को,
क्यों मिटना चाहते हो सर से पेड़ की छावं को।
क्यों अँधेरे में धकेलते हो शहर के उजाले के लिए,
क्यों माटी से खदेड़ते हो शहर के निवाले के लिए।

मेरी पीढ़ियों ने इस पिथौरागढ़ को बनते देखा है,
दो देशो की संस्कृति के रंगों को यहाँ मिलते देखा है।
क्यों इन रंगों को पानी में घोलने पर तुम यूँ अड़े हो,
क्यों इस हिमालय को यूँ तहस नहस करने चले हो।

इस सूर्य से ऊर्जा लो तुम श्रोत है ये अखंड ताप का,
क्यों डुबोकर जीवों के घरों को भागी बनते हो पाप का।
इस बांध की बिजली की एक सीमा है ये तुम्हे भी ज्ञात है,
प्रतिनिधि कहते हो खुद को कहाँ आज तुम्हारा साथ है,

सोचो एक सौ चौंतीस गाँव के पर क्या होगा असर,
अपना गाँव अपने लोग कहाँ आयेंगे तब साथ नजर।
कौन कहाँ बसेगा पता नहीं एक संस्कृति क्षीण हो जायेगी,
पंचेश्वर विशाल बाँध में एक पूरी सभ्यता लीन हो जाएगी।

टिहरी सक्षात गवाह है क्या वहां कोई विकास हुआ है,
पर्यावरण को बिगाड़ कर वहाँ बस सर्वनाश हुआ है।
भले कुछ लोगों को वह झील बड़ी सुवाहानी लगती है,
जिन्होंने खोया अपने घरों को उन्हें वह डरावनी लगती है।

मत लो अब और तुम इस हिमपुत्र की धर्य की परिक्षा,
नींद को छोड़कर है अब माटी के लिए लड़ने की इच्छा।
जो खामोश रहेगा आज, कल उसके घर की बारी है,
अपने वजूद को बचाने के लिए संघर्ष हमारा जारी है।


प्रदीप रावत "खुदेड़"
18/11/2017

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