दिव्या रावत – दशोलीगढ़ की बेटी ने मशरूम मिशन के जरिये लहराया परचम --- ( २२ वीं क़िस्त) ग्राउंड जीरो से -- संजय चौहान – बहुरास्ट्रीय कंपनियों की अच्छी खासी नौकरी को ठुकराकर खुद का ब्यवसाय शुरू करने की सोची, पिताजी से मिली प्रेरणा ने इस और प्रेरित किया, ग्रामीण किसान को धनी बनाना है और पलायन, बेरोजगारी जैसे दुश्मनो से लडना हैं, चमोली का परचम पूरे विश्व में फहराना है, मैंने कभी भी हारना नहीं सिखा है, बचपन से ही गौरा देवी से प्रभावित रही, और एक और मशरूम के जरिये एक और चिपको, इस प्रकार की सोच, जज्बा और होंसला है मशरूम लेडी के रूप में बिख्यात हो चुकी दिब्या रावत की, तो लीजिये आज अपनी (लोकसंस्कृति / लोकभाषा और लोक के लिए मिशाल) की २२ वीं क़िस्त में बात कर रहा हूँ देहरादून में पली बढ़ी और सीमांत जनपद चमोली के ५२ गढ़ो में एक दशोली गढ़ की बिटिया दिब्या रावत के बारे में ---
५२ गढ़ों में से एक प्रसिद्ध गढ़ दशोली गढ़ जो की पराक्रमी राजा मानवर का गढ़ था, उक्त गढ़ सीमांत जनपद चमोली के कोट कंडारा के पास मौजूद है इसी गांव के रावत परिवार जो वर्तमान में द्रोण नगरी देहरादून के मथोरावाला में निवासरत है, ३ नवम्बर १९८९ को भवानी देवी रावत और तेज सिंह रावत जी के घर उनकी सबसे छोटी बिटिया का जन्म हुआ, माता पिता ने अपनी इस प्यारी सी लाडली का नाम दिब्या रखा, माता-पिता को उम्मीद थी की उनकी ये बेटी जरुर एक दिन उनका नाम रोशन करेगी, २ बड़े भाई और ३ बहिनों में दिब्या सबसे छोटी थी जिस कारण से देहरादून से लेकर दशोलिगढ़ तक हर कोई इसको बेहद लाड करता था, बचपन से ही दिब्या के मन में कुछ अलग करने का जूनून था, जिस कारण कई बार दिब्या को उसकी हरकतों के लिए घर में बहुत डांट पड़ती थी,लेकिन कुछ ही देर में सब दिब्या को मना लेते थे, प्राथमिक से लेकर १२ वीं तक की शिक्षा दिब्या ने देहरादून से ही ग्रहण की, जिसके बाद दिल्ली से सोसीयल वर्क में स्नातक और फिर सोसीयल वर्क में मास्टर डिग्री हाशिल की, जिसके बाद २ साल तक दिल्ली में नौकरी भी की, लेकिन कभी भी मन नौकरी में नहीं लगा, मन ही मन कुछ अलग करने की ठानी, इसी बीच एक घटना ने दिब्या को झकझोर कर रख दिया, दिल्ली में उनके कमरे के पास ही एक कुरियर का कार्य करने वाला ब्यक्ति रहता था, जो गढ़वाल का रहने वाला था, दिब्या उससे हमेशा गढ़वाली में ही बातें किया करती थी, एक दिन दिब्या ने उनकी सैलरी और परिवार के बारे में जानना चाहा तो पता चला की उसे महज ५ हजार रूपये ही तनख्वाह मिलती है और वह अपने परिवार को छोड़कर यहाँ आया हुआ है तो बहुत दुःख हुआ की गढ़वाल से दिल्ली सिर्फ ५ हजार के लिए अपने परिवार को छोड़कर आये है इतनी दू ऐसे में वो कितना अपने परिवार के लिए बचा पाते होंगे खुद उन्हें मालूम होगा, इस घटना ने दिब्या को बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया, गढ़वाल में रहकर भी तो इससे ज्यादा कमाया जा सकता है, रोजगार के आभाव में लोग पहाड़ से पलायन कर रहें है, जो की दुखद है, बस उस दिन दिब्या ने ठान लिया था की अब वो वापस जाकर ऐसे लोगों के रोजगार के लिए कुछ अलग करेगी और दिब्या ने दिल्ली को
अलविदा कह दिया, दिल्ली में रहते हुये दिब्या को कई मर्तबा नामी गिनामी बहुरास्ट्रीय कंपनी से नौकरी का प्रस्ताव आया लेकिन दिब्या को तो कुछ और ही करना था, सोसीयल वर्क में मास्टर डिग्री करते हुये एक बार दिब्या को मशरूम उत्पादन का विचार आया था, लेकिन उस समय उद्द्यान विभाग डिफेन्स कॉलोनी, देहरादून से १ हफ्ते का मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लिया, हिमांचल से भी उन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त किया और फिर २०१३ सौम्या फ़ूड एंड प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की नीवं रखी, शुरुआत १०० बैगों में मशरूम उत्पादन से की और आज महज ४ साल में दिव्या की सौम्या फ़ूड ने देश के फ़ूड बाजार में मशरूम का परचम लहराया, और दिब्या को मशरूम लेडी के रूप में बिख्यात कर दिया, उत्तराखंड की निरंजपुर मंडी से लेकर दिल्ली की आजादपुर की मंडी में सप्लाई होता है दिब्या का मशरूम, आज दिब्या कंपनी की मैनेजिंग डाइरेक्टर है, साथ ही दिब्या के घर में सीए. सिविल इंजिनियर, फैशन डिजाइनर बिजिनस मैनेजर, मेकनिक मौजूद हैं जो दिब्या को सहयोग प्रदान करतें हैं और सोशल वर्कर के रूप में में खुद दिब्या है, जो अपने मिशन को आगे बढ़ा रही है, आज दिब्या लाखों युवाओं के लिए किसी रोल मॉडल से कम नहीं है, दिब्या की कामयाबी ने दिखाया है की बेटियाँ भी किसी से कम नहीं है, दिब्या का मशरूम प्लांट एक साल में तीन प्रकार का मशरूम उत्पादन करता है, इसके लिए तापमान सामान्य तौर पर १६ से २४ डिग्री सेंटीग्रेड का होना चाहिए, पहले वर्ष भर में मशरूम उत्पादन करने की बातें कही जाती थी लेकिन दिब्या ने वह करके दिखाया, सर्दियों में बटन मशरूम जो एक महीने में तैयार होता है, मिड सीजन में ओंएस्टर जो १५ दिन और गर्मियों में मिल्की मशरूम का उत्पादन जो ४५ दिन में तैयार होता है, मशरूम के एक बैग की कुल लागत ६० रूपये के लगभग आती है, जबकि बाजार में बेचने के बाद मुनाफा ३ गुना तक हो जाता है,
दिब्या रावत से मशरूम मिशन के संदर्भ में लम्बी गुफ्तगू करने पर दिब्या कहती हैं की मेरी जिन्दगी बेहद शांत रही है कभी भी अतिनाटकीय नहीं रही है, जो मास्टर डिग्री में सीखा और पढ़ा उसी काम को कर रही हूँ, मशरूम उत्पादन भी कृषि का ही हिस्सा है, में चाहती हूँ की देश का ग्रामीण किसान धनी हो, कर्मभूमि के लिए उत्तराखंड को इसलिए चुना ताकि मेरे यहाँ के लोगों को इसका फायदा मिल सके, खासतौर पर पहाड़ के ग्रामीण इलाके के लोगों को इसका फायदा मिले, जिससे रोजगार के लिए पहाड़ से हो रहे बदस्तूर पलायन को रोका जा सके और लोगों को अपने ही घर में रोजगार मिल सके, ग्रामीण इलाकों के हिसाब और १२ महीनों रोजगार उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से मशरूम मुफीद लगा, मुझे ख़ुशी है की मेरी मेहनत रंग लाई और लोगों ने मेरे कार्य को सराहा है, भले ही पढाई में औसत थी लेकिन मन में कुछ अलग करने की चाहत जो थी, कुछ देर रुकने के बाद जब दिब्या से पूछा की उनकी इस कामयाबी में सबसे बड़ा योगदान किसका है तो थोड़ी देर चुप रहने के बाद दिब्या कहती हैं की मेरे पापा ने देश की सरहदों की रक्षा करते हुये हमेशा हमारा होंसला बढ़ाया है – रुंधी हुई आवाज में कहती है की भले ही मेरे पापा आज हमारे बीच न हो लेकिन उनकी दी हुई शिक्षा आज भी मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है, पापा हमसे कहा करते थे की -- हमारे देश में बेटी के जीवन का अर्थ बड़ी होकर उसकी शादी कर देने तक ही सिमित होकर रह गया है लेकिन मेरी बेटियां वही करेगी जो उन्हें अच्छा लगेगा, वे पूरी तरह से स्वतंत्र है अपने सपने पूरे करने के लिए, हमारी और से कभी कोई बंदिश नहीं होगी – मुझे ख़ुशी है की में और मेरी दोनों बहने उनके सपनों पूरा होते देख रहें है,इस और ज्यादा ध्यान नहीं दिया, लेकिन दिल्ली से वापस देहरादून आने पर दिब्या ने मशरूम उत्पादन करने का फैसला किया, जिसके लिए उन्होंने सर्वप्रथम
शुरुआत में कितनी दिक्कतें आई के बारे में कहती हैं की जब मैंने मशरूम उत्पादन का आइडिया घर वालों के सामने रखा तो सब लोग एक बार के लिए चुप हो गए लेकिन जब मैंने उन्हें इसके बारे में विस्तार से बताया और भरोषा दिलाया तो सब सहयोग के लिए राजी हो गए, मगर जब मेरे आस पास के लोगों को इस बारे में पता चला तो वो मेरे काम से खुश नहीं थे, पता थोड़े न था की कोई भी मशरूम उगा सकता है, शुरू में खुद आशंकित थी की काम चलेगा की नहीं, लेकिन मन ही मन विश्वास था की जरुर सफल होऊँगी, ६ महीने के बाद जब सफलता मिली तो लोगों ने भी सहयोग देना शुरु कर दिया, इस दौरान मेरे पूरे परिवार ने आर्थिक रूप से लेकर हर तरह से मुझे सपोर्ट किया, परिवार के सहयोग के बिना यह संभव नहीं था, आज बहुत बड़ी धनराशी में अपने मशरूम उत्पादन प्लांट पर लगा चुकी हूँ, कहती है की मैं राजपूत हूँ, और राजपूत जो ठान लेते हैं वो करके दिखातें है मैंने कभी भी हारना नहीं सिखा है, खुद सशक्त हूँ और लोगों को भी सशक्त बनाने का माद्दा रखती हूँ, कहती हैं की बेटियों को लिखाओ पढाओ और उनके सपने पूरे करने में उनकी मदद करो,
अपने गृह जनपद चमोली के बारे में क्या सोचती हैं पर बेबाकी से कहती है की भले ही मैने कभी भी गौरा देवी को नहीं देखा है लेकिन गौरा देवी और चिपको आन्दोलन ने मुझे बचपन से बहुत प्रभावित किया है, मुझे आज भी गौरा देवी की फोटो कुछ करने के लिए प्रेरित करती है, आज पहाड़ से पलायन और बेरोजगारी जैसे दुश्मनों को भगाने के लिए एक और चिपको की जरुरत है, मुझे गर्व है की मैं चमोली की बेटी हूँ और चमोली की बेटी बनकर चमोली का नाम पूरे विश्व में रोशन करुँगी, मेरे चमोली की मात्र्श्कती मुझे प्रेरणा देती है, यहाँ के लोगों का दर्द मुझे शक्ति देता है और कुछ नया करने की प्रेरणा, माँ भगवती नंदा, कालीमठ माँ, और भगवान् बद्री विशाल का आश्रीवाद सदैव मेरे ऊपर है,
सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने की जगह मशरूम उत्पादन को भविष्य बनाने पर कहती है की घर वाले चाहते थे की में सामजिक क्षेत्र में कार्य कर नाम कमाऊ और अपनी विशेष पहचान बनाऊ, लेकिन मैंने मशरूम को चुना, इसके जरये समाज सेवा ही तो कर रही हूँ, खुद कमा रही हूँ और लोगों को सिखा रही हूँ, मशरूम के बारे में बता रही हूँ, गांव में जाकर मैंने महिलाओं को मशरूम उत्पादन करने के लिए प्रेरित किया, मैंने पिछले साल ८ महीने अपने गांव में ही बिताये, गांव के खाली और खंडर पड़े मकानों में मशरूम उत्पादन कर स्थानीय बाजार में उपलब्ध करवाया जिससे लोग बेहद आश्चर्य चकित हुये, अब तक अपने गांव कंडारा, चमोली, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी की यमुना घाटी के दर्जनों गांव में मशरूम उत्पादन शुरू किया जा चूका है, दिब्या का मथोरेवाला में एक तीन मंजिला मकान है जिसके प्रथम और दूसरी मंजिल में मशरूम उत्त्पदन प्लांट लगा हुआ है, जो किसी प्रयोगशाला से कम नहीं है, दिब्या यहाँ लोगों को सीखने के लिए न केवल कागजी ज्ञान देती है अपितु ब्यावाह्रिक प्रशिक्षण भी देती है, आजकल वह अपने इस उच्च कोटि के संस्थान में १०० से अधिक लोगों के लिए ट्रेनिंग दे रही है, जिसमे पौड़ी, चमोली, टिहरी से लेकर उत्तरकाशी से आये लोग शामिल है, इस इस बार बड़ी टीम बनाकर पूरे गढ़वाल में मशरूम उगाने की योजना है सितम्बर महीने से इसको अमलीजामा पहनाने की योजना है, में चाहती हूँ की उत्तराखंड को पूरे विश्व में लोग मशरूम उत्पादन के लिए जाने और लोग यहाँ पर मशरूम के बारे में जानकारी प्राप्त करने आये,
उत्तराखंड में लोक की सेवा करने वाले बहुत ही कम लोग हैं, यदि हम उनके कार्यों को लोक तक नहीं पंहुचा पाएंगे तो नई पीढ़ी कैसे उनके बारे में जान पायेगी, पेश है २२ वीं क़िस्त के रूप में दशोली गढ़ की बेटी दिब्या रावत की परी कथा की कहानी, दिब्या ने दिखा दिया की बेटियां भी अपना मुकाम खुद बना सकती है, इस लेख के जरिये दिब्या को उनके बुलंद होंसले, जज्बे, ऊँची सोच, अपनी माटी के लिए कुछ करने का जूनून, पहाड़ से बेरोजगारी और पलायन जैसे दुश्मनों को भागने की उनकी दूरदर्शिता को एक छोटी सी भेंट--------
ग्राउंड जीरो से---------- संजय चौहान/ बंड पट्टी/ किरुली/पीपलकोटी/ चमोली
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