Wednesday, 29 June 2016

मेकू लाण दादू, Most Hindi popular blog Uttarakhand Garhwali Poem

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मेकू लाण दादू
जैंकि होली नौगज धौंपेली 
नौगज धौंपेली दादू
मुखड़ी रौन्तेली

गाड़ गदनी जैकी दगडी दादू बच्यांदी होली
डाली बौटी जैंकी दगडी दादू छवी लगान्दी होली
जै देखी की दादू सुबेरदा फूल खिल्दा होला
फूल खिल्दा होला दादू भौरा जल्दा होला

मेरी आंख्यूं की तीस ज्वा बांद  बुजली
मेरा रजोड़े की तिवारी ज्वा बांद सजली
चाँद सुरज से ज्यादा ज्वा बांद होली प्यारी
चाँद सुरज से प्यारी दादू गैणो से न्यारी

बसंत दादू जैं बांदे की अन्देली लग्दू होलू
कामदेव भी जैं मा रूप पैन्छू मंगदू होलू
शोभनिया होली दादू जैंकी दन्तु की छपाक
दन्तु की छपाक दादू खुट्यू की लपाक

खेल्दी होली ज्वा बांद चंद्रवटिका मा
हैंसदीहोली ज्वा बांद फुलू की घाटी मा
सेवा कैर ज्वा बांद दादू दाना सयेणो की
दाना सयेणो की दादू नया पुरुणो

जैंकी ह्त्युं मा होलू स्वाद छत्तीस प्रकार कू
रूप सज्दू होलू जैंकू बिना सोलह श्रृंगार कू
बोली हो दादू वीकी इनि की संगीत बणी जा

संगीत बणी जा दादू गीत बणी जा

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माँ आ गयी, बसंत आ गया Most Hindi popular blog Uttarakhand Garhwali


सर्दियों के आँगन में खुशियों के फूल मुरझा रहे थे,
ज़िन्दगी के धागों को जितना हम सुलझाते,
वर्फिली हवा उन्हें और उलझा रहे थे

कम्बल के अंदर से छुपकर ज़िन्दगी झांक रही थी
कभी तो मिलेगा सकून, इसी आस में
कच्ची धुप को तांक रही  थी

कहासे की दीवारें रास्ता रोककर खडी थी
भीगी हुयी लकड़ियाँ चूल्हे पर वीरान पड़ी थी

बस कट जाएँ लम्बी -लम्बी ये रातें
बस फंट जाएँ सूरज से रोशनी की सौगातें
पतझड़ ऐसा कि ज़िन्दगी के पत्ते वृक्षो से टूट रहें है
हवाओं में इस कदर नमी थी
 कि एक दूसरे के हाथों से हाथ छूट रहें है

बसंत आएगा  कब आयेगा ? कैसे आयेगा
सब राह देख रहें है
एक दिन अचानक घर में ख़ुशी छा गयी, हर्ष छा गया
माँ गयी, बसंत गया
लीजिये गर्मियों के सीजन में सर्दियों की कविता आनंद  Most Hindi popular blog Uttarakhand


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माँ का आँचल Most Hindi popular blog Uttarakhand Garhwali Poem


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पलायन क्या ? Most Hindi popular blog Uttarakhand Garhwali Poem









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पलायन क्या ?
अपड़ी जड़ू कू तिरस्कार
जीती, जाती तै बी हार।

पलायन क्या ?
माटे गंध बटि सैंटे गंध,
खुला मोर संगरंदू बटि सैरे असंध।

पलायन क्या ?
अपड़ी हैरी जड़ू मा विकासै कील घैंटण,
जमदी अपड़ी बिज्वाड़ बटि पाड़ तै छंटण।

पलायन क्या ?
शिक्षित व्हेकि अशिक्षित होण,
असीमित व्हेकि सीमित होण।

Tuesday, 28 June 2016

मेरी कविताओं को पढ़ने के लिए मेरा ब्लॉग देखें और फॉलो कीजिये मुझे मेरे ब्लॉग पर, फॉलो कीजिये

Singer/Songwriter : Vinod Rawat | Music Producer : Ishaan Dobhal | Rhythm Arrangement : Subhash Pandey Most Hindi popular blog Uttarakhand



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Thursday, 23 June 2016

दिव्या रावत – दशोलीगढ़ की बेटी ने मशरूम मिशन के जरिये लहराया परचम Most Hindi popular blog Uttarakhand divya rawat

दिव्या रावत – दशोलीगढ़ की बेटी ने मशरूम मिशन के जरिये लहराया परचम --- ( २२ वीं क़िस्त) ग्राउंड जीरो से -- संजय चौहान – बहुरास्ट्रीय कंपनियों की अच्छी खासी नौकरी को ठुकराकर खुद का ब्यवसाय शुरू करने की सोची, पिताजी से मिली प्रेरणा ने इस और प्रेरित किया, ग्रामीण किसान को धनी बनाना है और पलायन, बेरोजगारी जैसे दुश्मनो से लडना हैं, चमोली का परचम पूरे विश्व में फहराना है, मैंने कभी भी हारना नहीं सिखा है, बचपन से ही गौरा देवी से प्रभावित रही, और एक और मशरूम के जरिये एक और चिपको, इस प्रकार की सोच, जज्बा और होंसला है मशरूम लेडी के रूप में बिख्यात हो चुकी दिब्या रावत की, तो लीजिये आज अपनी (लोकसंस्कृति / लोकभाषा और लोक के लिए मिशाल) की २२ वीं क़िस्त में बात कर रहा हूँ देहरादून में पली बढ़ी और सीमांत जनपद चमोली के ५२ गढ़ो में एक दशोली गढ़ की बिटिया दिब्या रावत के बारे में ---
५२ गढ़ों में से एक प्रसिद्ध गढ़ दशोली गढ़ जो की पराक्रमी राजा मानवर का गढ़ था, उक्त गढ़ सीमांत जनपद चमोली के कोट कंडारा के पास मौजूद है इसी गांव के रावत परिवार जो वर्तमान में द्रोण नगरी देहरादून के मथोरावाला में निवासरत है, ३ नवम्बर १९८९ को भवानी देवी रावत और तेज सिंह रावत जी के घर उनकी सबसे छोटी बिटिया का जन्म हुआ, माता पिता ने अपनी इस प्यारी सी लाडली का नाम दिब्या रखा, माता-पिता को उम्मीद थी की उनकी ये बेटी जरुर एक दिन उनका नाम रोशन करेगी, २ बड़े भाई और ३ बहिनों में दिब्या सबसे छोटी थी जिस कारण से देहरादून से लेकर दशोलिगढ़ तक हर कोई इसको बेहद लाड करता था, बचपन से ही दिब्या के मन में कुछ अलग करने का जूनून था, जिस कारण कई बार दिब्या को उसकी हरकतों के लिए घर में बहुत डांट पड़ती थी,लेकिन कुछ ही देर में सब दिब्या को मना लेते थे, प्राथमिक से लेकर १२ वीं तक की शिक्षा दिब्या ने देहरादून से ही ग्रहण की, जिसके बाद दिल्ली से सोसीयल वर्क में स्नातक और फिर सोसीयल वर्क में मास्टर डिग्री हाशिल की, जिसके बाद २ साल तक दिल्ली में नौकरी भी की, लेकिन कभी भी मन नौकरी में नहीं लगा, मन ही मन कुछ अलग करने की ठानी, इसी बीच एक घटना ने दिब्या को झकझोर कर रख दिया, दिल्ली में उनके कमरे के पास ही एक कुरियर का कार्य करने वाला ब्यक्ति रहता था, जो गढ़वाल का रहने वाला था, दिब्या उससे हमेशा गढ़वाली में ही बातें किया करती थी, एक दिन दिब्या ने उनकी सैलरी और परिवार के बारे में जानना चाहा तो पता चला की उसे महज ५ हजार रूपये ही तनख्वाह मिलती है और वह अपने परिवार को छोड़कर यहाँ आया हुआ है तो बहुत दुःख हुआ की गढ़वाल से दिल्ली सिर्फ ५ हजार के लिए अपने परिवार को छोड़कर आये है इतनी दू ऐसे में वो कितना अपने परिवार के लिए बचा पाते होंगे खुद उन्हें मालूम होगा, इस घटना ने दिब्या को बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया, गढ़वाल में रहकर भी तो इससे ज्यादा कमाया जा सकता है, रोजगार के आभाव में लोग पहाड़ से पलायन कर रहें है, जो की दुखद है, बस उस दिन दिब्या ने ठान लिया था की अब वो वापस जाकर ऐसे लोगों के रोजगार के लिए कुछ अलग करेगी और दिब्या ने दिल्ली को

अलविदा कह दिया, दिल्ली में रहते हुये दिब्या को कई मर्तबा नामी गिनामी बहुरास्ट्रीय कंपनी से नौकरी का प्रस्ताव आया लेकिन दिब्या को तो कुछ और ही करना था, सोसीयल वर्क में मास्टर डिग्री करते हुये एक बार दिब्या को मशरूम उत्पादन का विचार आया था, लेकिन उस समय उद्द्यान विभाग डिफेन्स कॉलोनी, देहरादून से १ हफ्ते का मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लिया, हिमांचल से भी उन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त किया और फिर २०१३ सौम्या फ़ूड एंड प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की नीवं रखी, शुरुआत १०० बैगों में मशरूम उत्पादन से की और आज महज ४ साल में दिव्या की सौम्या फ़ूड ने देश के फ़ूड बाजार में मशरूम का परचम लहराया, और दिब्या को मशरूम लेडी के रूप में बिख्यात कर दिया, उत्तराखंड की निरंजपुर मंडी से लेकर दिल्ली की आजादपुर की मंडी में सप्लाई होता है दिब्या का मशरूम, आज दिब्या कंपनी की मैनेजिंग डाइरेक्टर है, साथ ही दिब्या के घर में सीए. सिविल इंजिनियर, फैशन डिजाइनर बिजिनस मैनेजर, मेकनिक मौजूद हैं जो दिब्या को सहयोग प्रदान करतें हैं और सोशल वर्कर के रूप में में खुद दिब्या है, जो अपने मिशन को आगे बढ़ा रही है, आज दिब्या लाखों युवाओं के लिए किसी रोल मॉडल से कम नहीं है, दिब्या की कामयाबी ने दिखाया है की बेटियाँ भी किसी से कम नहीं है, दिब्या का मशरूम प्लांट एक साल में तीन प्रकार का मशरूम उत्पादन करता है, इसके लिए तापमान सामान्य तौर पर १६ से २४ डिग्री सेंटीग्रेड का होना चाहिए, पहले वर्ष भर में मशरूम उत्पादन करने की बातें कही जाती थी लेकिन दिब्या ने वह करके दिखाया, सर्दियों में बटन मशरूम जो एक महीने में तैयार होता है, मिड सीजन में ओंएस्टर जो १५ दिन और गर्मियों में मिल्की मशरूम का उत्पादन जो ४५ दिन में तैयार होता है, मशरूम के एक बैग की कुल लागत ६० रूपये के लगभग आती है, जबकि बाजार में बेचने के बाद मुनाफा ३ गुना तक हो जाता है,
दिब्या रावत से मशरूम मिशन के संदर्भ में लम्बी गुफ्तगू करने पर दिब्या कहती हैं की मेरी जिन्दगी बेहद शांत रही है कभी भी अतिनाटकीय नहीं रही है, जो मास्टर डिग्री में सीखा और पढ़ा उसी काम को कर रही हूँ, मशरूम उत्पादन भी कृषि का ही हिस्सा है, में चाहती हूँ की देश का ग्रामीण किसान धनी हो, कर्मभूमि के लिए उत्तराखंड को इसलिए चुना ताकि मेरे यहाँ के लोगों को इसका फायदा मिल सके, खासतौर पर पहाड़ के ग्रामीण इलाके के लोगों को इसका फायदा मिले, जिससे रोजगार के लिए पहाड़ से हो रहे बदस्तूर पलायन को रोका जा सके और लोगों को अपने ही घर में रोजगार मिल सके, ग्रामीण इलाकों के हिसाब और १२ महीनों रोजगार उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से मशरूम मुफीद लगा, मुझे ख़ुशी है की मेरी मेहनत रंग लाई और लोगों ने मेरे कार्य को सराहा है, भले ही पढाई में औसत थी लेकिन मन में कुछ अलग करने की चाहत जो थी, कुछ देर रुकने के बाद जब दिब्या से पूछा की उनकी इस कामयाबी में सबसे बड़ा योगदान किसका है तो थोड़ी देर चुप रहने के बाद दिब्या कहती हैं की मेरे पापा ने देश की सरहदों की रक्षा करते हुये हमेशा हमारा होंसला बढ़ाया है – रुंधी हुई आवाज में कहती है की भले ही मेरे पापा आज हमारे बीच न हो लेकिन उनकी दी हुई शिक्षा आज भी मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है, पापा हमसे कहा करते थे की -- हमारे देश में बेटी के जीवन का अर्थ बड़ी होकर उसकी शादी कर देने तक ही सिमित होकर रह गया है लेकिन मेरी बेटियां वही करेगी जो उन्हें अच्छा लगेगा, वे पूरी तरह से स्वतंत्र है अपने सपने पूरे करने के लिए, हमारी और से कभी कोई बंदिश नहीं होगी – मुझे ख़ुशी है की में और मेरी दोनों बहने उनके सपनों पूरा होते देख रहें है,इस और ज्यादा ध्यान नहीं दिया, लेकिन दिल्ली से वापस देहरादून आने पर दिब्या ने मशरूम उत्पादन करने का फैसला किया, जिसके लिए उन्होंने सर्वप्रथम

शुरुआत में कितनी दिक्कतें आई के बारे में कहती हैं की जब मैंने मशरूम उत्पादन का आइडिया घर वालों के सामने रखा तो सब लोग एक बार के लिए चुप हो गए लेकिन जब मैंने उन्हें इसके बारे में विस्तार से बताया और भरोषा दिलाया तो सब सहयोग के लिए राजी हो गए, मगर जब मेरे आस पास के लोगों को इस बारे में पता चला तो वो मेरे काम से खुश नहीं थे, पता थोड़े न था की कोई भी मशरूम उगा सकता है, शुरू में खुद आशंकित थी की काम चलेगा की नहीं, लेकिन मन ही मन विश्वास था की जरुर सफल होऊँगी, ६ महीने के बाद जब सफलता मिली तो लोगों ने भी सहयोग देना शुरु कर दिया, इस दौरान मेरे पूरे परिवार ने आर्थिक रूप से लेकर हर तरह से मुझे सपोर्ट किया, परिवार के सहयोग के बिना यह संभव नहीं था, आज बहुत बड़ी धनराशी में अपने मशरूम उत्पादन प्लांट पर लगा चुकी हूँ, कहती है की मैं राजपूत हूँ, और राजपूत जो ठान लेते हैं वो करके दिखातें है मैंने कभी भी हारना नहीं सिखा है, खुद सशक्त हूँ और लोगों को भी सशक्त बनाने का माद्दा रखती हूँ, कहती हैं की बेटियों को लिखाओ पढाओ और उनके सपने पूरे करने में उनकी मदद करो,
अपने गृह जनपद चमोली के बारे में क्या सोचती हैं पर बेबाकी से कहती है की भले ही मैने कभी भी गौरा देवी को नहीं देखा है लेकिन गौरा देवी और चिपको आन्दोलन ने मुझे बचपन से बहुत प्रभावित किया है, मुझे आज भी गौरा देवी की फोटो कुछ करने के लिए प्रेरित करती है, आज पहाड़ से पलायन और बेरोजगारी जैसे दुश्मनों को भगाने के लिए एक और चिपको की जरुरत है, मुझे गर्व है की मैं चमोली की बेटी हूँ और चमोली की बेटी बनकर चमोली का नाम पूरे विश्व में रोशन करुँगी, मेरे चमोली की मात्र्श्कती मुझे प्रेरणा देती है, यहाँ के लोगों का दर्द मुझे शक्ति देता है और कुछ नया करने की प्रेरणा, माँ भगवती नंदा, कालीमठ माँ, और भगवान् बद्री विशाल का आश्रीवाद सदैव मेरे ऊपर है,
सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने की जगह मशरूम उत्पादन को भविष्य बनाने पर कहती है की घर वाले चाहते थे की में सामजिक क्षेत्र में कार्य कर नाम कमाऊ और अपनी विशेष पहचान बनाऊ, लेकिन मैंने मशरूम को चुना, इसके जरये समाज सेवा ही तो कर रही हूँ, खुद कमा रही हूँ और लोगों को सिखा रही हूँ, मशरूम के बारे में बता रही हूँ, गांव में जाकर मैंने महिलाओं को मशरूम उत्पादन करने के लिए प्रेरित किया, मैंने पिछले साल ८ महीने अपने गांव में ही बिताये, गांव के खाली और खंडर पड़े मकानों में मशरूम उत्पादन कर स्थानीय बाजार में उपलब्ध करवाया जिससे लोग बेहद आश्चर्य चकित हुये, अब तक अपने गांव कंडारा, चमोली, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी की यमुना घाटी के दर्जनों गांव में मशरूम उत्पादन शुरू किया जा चूका है, दिब्या का मथोरेवाला में एक तीन मंजिला मकान है जिसके प्रथम और दूसरी मंजिल में मशरूम उत्त्पदन प्लांट लगा हुआ है, जो किसी प्रयोगशाला से कम नहीं है, दिब्या यहाँ लोगों को सीखने के लिए न केवल कागजी ज्ञान देती है अपितु ब्यावाह्रिक प्रशिक्षण भी देती है, आजकल वह अपने इस उच्च कोटि के संस्थान में १०० से अधिक लोगों के लिए ट्रेनिंग दे रही है, जिसमे पौड़ी, चमोली, टिहरी से लेकर उत्तरकाशी से आये लोग शामिल है, इस इस बार बड़ी टीम बनाकर पूरे गढ़वाल में मशरूम उगाने की योजना है सितम्बर महीने से इसको अमलीजामा पहनाने की योजना है, में चाहती हूँ की उत्तराखंड को पूरे विश्व में लोग मशरूम उत्पादन के लिए जाने और लोग यहाँ पर मशरूम के बारे में जानकारी प्राप्त करने आये,
उत्तराखंड में लोक की सेवा करने वाले बहुत ही कम लोग हैं, यदि हम उनके कार्यों को लोक तक नहीं पंहुचा पाएंगे तो नई पीढ़ी कैसे उनके बारे में जान पायेगी, पेश है २२ वीं क़िस्त के रूप में दशोली गढ़ की बेटी दिब्या रावत की परी कथा की कहानी, दिब्या ने दिखा दिया की बेटियां भी अपना मुकाम खुद बना सकती है, इस लेख के जरिये दिब्या को उनके बुलंद होंसले, जज्बे, ऊँची सोच, अपनी माटी के लिए कुछ करने का जूनून, पहाड़ से बेरोजगारी और पलायन जैसे दुश्मनों को भागने की उनकी दूरदर्शिता को एक छोटी सी भेंट--------
ग्राउंड जीरो से---------- संजय चौहान/ बंड पट्टी/ किरुली/पीपलकोटी/ चमोली
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उठो, चलो, बढ़ो तुम! Garhwali Poem

























उठो, चलो, बढ़ो तुम!
क्यों बिखरे हो ?
अब एक हो चलो तुम!
क्यों कटे हो ?
अपनी जड़ों से जुड जाओ तुम!

शान्ति अहिंसा सच्चाई को शस्त्र बना लो,
मुठियों के ताप से मशालों को जला लो।
दूसरे की लकीर को मत मिटाओं,
अपनी लकीर को तुम बड़ी बनालो।
उठो, चलो, बढ़ो तुम!

कदमों की थाप से धरा हिलनी चाहिए,
हूँकारों की भाप से बर्फ पिघलनी चाहिए।
सूरज रात में भी निकलने को मजबूर हो जाए,े
क्रान्ति की मशाल ऐसी जलनी चाहिए।
उठो, चलो, बढ़ो तुम!

अखंड हो तुम क्यों खंड-खंड हो रहे हो,
एक दागे के मोती हो क्यों स्वछंद हो रहे हो।
वक्त का तगजा है, एक ओट में आ जाओ,
रक्त का जगजा है एक गोद में आ जाओ।
उठो, चलो, बढ़ो तुम!

नदी नयारों से निकलकर एक गंगा बन जाओं,
बांझ की जड़ो का पानी पीया है हिमालय से तन जाओं।
मंडुवा भटट गैत की ताकत को आज तुम दिखला दो,
हम भी गौरा सुमन के नाती है आज तुम बतला दो।
उठो, चलो, बढ़ो तुम!

हिमाल के हम है सब सिपे-सलार,
कभी नही मानी है हमने अपनी हार।
सीमाओं पर भी सीना ताने खडे़ है,
अपने हक को लेने को अब हम चले है।
उठो, चलो, बढ़ो तुम!

हिमालय सा दृढ़ है हमारा ये हौंसला,
अब मंजिलों से दूर नही हमारा फासला।
आसमान की ऊँचाईयों को हमें इरादों से नापना है,
अपने विश्वास से अब हमे सुते को भी लंगना हैं।
उठो, चलो, बढ़ो तुम!

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हे जग जननी जन्म भूमि Garhwali Poem



















हे जग जननी जन्म भूमि
हे जग जननी कर्म भूमि,
तुझे सत्-सत् नमन, - 2

शीश पर जिसके मुकुट हिमालय सजता हैं,
चरणों में जिसके शेष भारतवर्ष बसता है।
तैतीस कोटी देवता जिस धरती में रहते है,
उस धरती को देव भूमि उत्तराखंड कहते है।

स्वर्गारोहण, पाताल भुबनेश्वर, यहाँ, इस धरती में सतोपन्थ, न्यायदेव और कैलास,
पावन पवित्र नदियों का मैत ये, यहाँ है पंच प्रयाग और आदि शक्तिपीठों का वास।
बैज, तुंगनाथ, जोगेश्वर और चार धाम, यहाँ, ये धरती है राजा भरत की जन्म थाती,
हेमकुंड, भूम्याळ देव, धर्मनगरी, यहाँ, इस भूमि में कुंड,बुग्याल, और फूलों की घाटी।

बेच दी है मातृ भूमि

बेच दी है मातृ भूमि तुमने,
तुम्हे जहनुम भी नसीब नहीं होगा।
जब दफना रहे होंगे तुम्हे,
तब कोई अपना तुम्हारे करीब नहीं होगा।
कोई अपना ही बेच दे इस धरा को,
ऐसा तो तेरे अपनों का ख्वाब नहीं होगा।
उनकी आँखों में आँसू होंगे,
तब तेरे पास कोई जवाब नहीं होगा।

प्रदीप सिंह रावत ''खुदेड़''

Tuesday, 21 June 2016

ज्यू विचा तेल बत्ती बदलेगेनए पर द्वी विचा, Garhwali Poem



















तेल बत्ती बदलेगेनए पर द्वी विचा,
शरील बुढ्या व्हेगी, पर ज्यू विचा।
इस लिंक पर देखिये एक सुंदर गढ़वाली खुदेड गीत। आपको अपनों की याद आ जाएगी
हडग्यूंकू पीना बणगी, कड़क वीचा,
मुल्क बदलेगी पर पाड़ै तड़फ वीचा। 

ह्यूं गोळी बदलेगी पर शिखर वीचा,
रोशनी बुजगी आँख्यूँ मा पर करड़ी नजर वीचा। 
इस लिंक पर सुनिए -किस दौर से गुजर रहा है अपना उत्तराखंड सुनिए उत्तराखंडी जाग्रति गीत
राजा बदलेगेन, पाड़ौ दर्द वीचा,
बैध बदलेगेन पर पाड़ौ मर्ज वीचा। 

दगड्या बदलेगेन पर दगड़ी वीचा,
ऐना बदलेगेन पर मुखड़ी वीचा। 
इस लिंक पर देखिये गढ़वाली सुपर हिट फिल्म भाग-जोग
सूरज एैन-गैन पर परछायी वीचा,
कुटदरी बदलेगेन पर उरख्ळी वीचा। 

स्वाद बदलेगी पर स्याणी वीचा,
कंठ सुखगेन पर बाणी वीचा।
प्रदीप रावत ''खुदेड''


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Monday, 20 June 2016

कानमा जाण Most Popular Hindi Blog Uttarakhand Garhwali Poem

गगवाड़स्यूं घाटी

















अपड़ी मातृ भूमि छोड़ी की मिन कानमा जाण,
यी पित्र भूमि बिगर मिन,परदेश मा कनमा राण।
चाँदी सी चमकणी छन जख हिवई कांठी,
मथि आकाश ते छूणी यू ऊंची ऊंची डांडी।
सप्त सिन्ध दगड़ी छन जख चार धाम,
इखा का कण कण मा लेख्यू च देवतों कू नाम।
मिन अपडू ज्यू यूं पंचजन बिगर कंमा लगाण,
अपड़ी मातृ भूमि छोड़ी की मिन कानमा जाण।

हवा मा उड़दू माटू बरखूदू जख बणी की फूल,
कनमा कैर सकदो मी इतगा बड़ी भूल।
जै सुख का पैथर या दुनिया भगणी च उत मात्र सून्या चा,
में कू ते त यी देव भूमि मा रैण ही सबसे बडू पुण्या चा।
इखे की हर चीज मा बस्यू च मेरू प्राण,
अपड़ी मातृ भूमि छोड़ी की मिन कानमा जाण।

क्या बोलेली यी गैरी गदनी क्या बोलेली या बयार,
रमणी राली गोड़ी भैन्सी ढूढ़ेल़ी वू मेते वली पली सार।
बार बन्या का फूल जख, जख छन पाणी का ताल,
कानमा छोड़णन मिन मरसन भोरया पूगडा यूं लाल।
जड़ च मेरी ईख,अपड़ा फोन्गा भ्यार किले फैलाण,
अपड़ी मातृ भूमि छोड़ी की मिन कानमा जाण।

सब कुछ बिसरी जोलू मी अगर चलग्यो भैर,
छल कपट की गंगा बगणी च तै शहर।
बिनसन मा ही रैकी मी क्वी रोजगार जूटोलू,
इखी धंधा कैकी अपड़ा मुल्क की तररकी मा हाथ बंटोलू।
मेरा मुल्क की डान्डी कांटयून या इकुलांस कनमा साण,
अपड़ी मातृ भूमि छोड़ी की मिन कानमा जाण।।

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जिन्दगी की दौड़ मा, Garhwali Poem

जिन्दगी की दौड़ मा,
अंग्रेजी की सौर मा
मि अपड़ी भाषा बिसरदी ग्यों,
हैंके की संस्कृति उखरदी ग्यों

रूप्यो का पैथर,
झूठी सान की एैथर
मि अपड़ा संस्कार छोड़दी ग्यों
मुखौटा झूठू सुख कू ओड़दी ग्यों

इकुलांस  की छीड़ मा
बसूं की भीड़ मा

कब तकै Garhwali Poem



















कब तकै लुट्दा तुम ये पहाड़ ते,
हम भी देखदा जरा !
कब तकै फोड़दा तुम ये गढ़वाल ते,
हम भी देखदा जरा !
तुम जित्दा या यू पहाड़ जितदू,
हम भी देखदा जरा !

कब तकै निचोड़ादा तुम यी नदी नयार ते,
हम भी देखदा जरा !
कब तकै पिचोंड़दा तुम यी मौयार ते,
हम भी देखदा जरा !
नयार नीचड़ोंदी, या तुम पिचोड़ेन्दा,
हम भी देखदा जरा !

कब तकै मोरण देंदा स्वीली ते तुम
पीडां अस्पताल की पैड़ीमा,
हम भी देखदा जरा !
कब तकै बिकण देंदा तुम
डॉक्टरुं की पोस्टिंग रुप्यों की थैली मा
हम भी देखदा जरा !
स्वीली की पीड़ा जितदी या
तुमारी बणायी क्रीड़ा जितदी
हम भी देखदा जरा !

कब तकै थामी सकदा तुम,
यू मनख्यूं का उमाळ ते,
हम भी देखदा जरा !
कब तकै बंधे सकदा तुम
हम भी देखदा जरा !
भाप बणी ऊ उमळदन,
या तुमते फुक्दान,
हम भी देखदा जरा !

कब तकै झूठा वादों की थपकी मा,
हिमपुत्र ते सुनींद राख्दा तुम,
कब तकै की आपदा जाळमा फंसे की निश्चिंत रैंदा तुम,  
हम भी देखदा जरा !

अपड़ा सवालू ते लेकी या जनता
सड़क्यूँ मा आंदी की नी आंदी,
हम भी देखदा जरा !
पुरणा क्रांतिकारयूं का किस्सा सुणी,
क्वी न क्वी नौजवान तपी की आग कन नी होलू बणू
हम भी देखदा जरा !
धीरज रख्या जवान ते,

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ब्वारि इनि चाहेणी मे तै!!! Garhwali Poem

ब्वारि इनि चाहेणी मे तै!!!
ज्वा गढवोळी दगड़ा अंग्रजी मा बी बच्यांदी होलि।
घास कटण दगड़ा फेसबुक वाटसअफ बी चलांदी होलि।
ज्यादा टीब्यू डब न हो, गौणी बंदर बी हकांदी होली।
ब्वारि इनि चाहेणी मे तै!!!
ज्वा सभ्यूंते भै जा,
जै देखी की घार मा रौनक एैजा।

ब्वारि इनि चाहेणी मे तै!!!
ज्वा पिज्जा चोमिना आलावा पल्यो छछेडू बी बणांदी होलि।
करवा चैथ न सही पर एगास बग्वाल जरूर मनांदी होलि।
चाइनीज लड़ी दगड़ा कड़ू तेलो द्वीव बी जगांदी होलि।
ब्वारि इनि चाहेणी मे तै!!!


ब्वारि इनि चाहेणी मे तै!!!
ज्वा जींस टाॅप दगड़ा बाजू बांद बी लगांदी होलि।
नौनो तै अंग्रजी दगड़ा गढ़वाळी भाषा बी सिखांदी होलि।
चेतन भगत शैक्सपियर दगड़ा पहाड़ी साहित्य बी पढ़ांदी होलि।
ब्वारि इनि चाहेणी मे तै!!!

पंजाबी गीत न सहि, पर गढ़वोळी गीतूं मा सभ्यूंते नचांदी होलि।
में देखी की न सहि, पर जेठणा जी देखी सरमांदी होलि।
हिंदी गीतंू की दगड़ा गढवोळी गीत बी गुनगुनांदी होलि।
थैल्या दुधा भरोंसा नि रा गोड़ी भैंसी बी पिजांदी होलि
ब्वारि इनि चाहेणी मे तै!!!
जैं ते शैर घुमणो शौक हो, पर गोर बखरा बी चरांदी होलि।
चटि-पटि खाणे दगड़ा घार मा ढबड़ी रोटि बी पकांदी होलि।
खदरै धोती मा वा धूपा ऐना बी लगांदी होलि।
इनै की छवी उनै नि लगांदी होलि
ब्वारि इनि चाहेणी मे तै!!!

हम उमर लोगू कू हैलों हाय, पर दाना सयेणो ते सेवा लगांदी होलि।
जादा गारू न पर डांडा बटि लकड़ा बी लांदी होलि।
ऊंच बिचार हो विंका भले कनी बी हो वीकी कद काठी।
चकड़ैतू कू चकड़ैत हो वा लाटा मनख्यूं कू हो लाटी।
ब्वारि इनि चाहेणी मे तै!!!

ब्वारि इनि चाहेणी मे तै!!!
ज्वा हैरी मरच जन तीखी हो।
भला मनख्यूं कू फीकी हो।
मयाळू हो दयाळू  हो न गोरी न चिटी हो।
बस मेरा दगड़यो मन की मीठी हो।

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