हे जग जननी जन्म भूमि
हे जग जननी कर्म भूमि,
तुझे सत्-सत् नमन, - 2
शीश पर जिसके मुकुट हिमालय सजता हैं,
चरणों में जिसके शेष भारतवर्ष बसता है।
तैतीस कोटी देवता जिस धरती में रहते है,
उस धरती को देव भूमि उत्तराखंड कहते है।
स्वर्गारोहण, पाताल भुबनेश्वर, यहाँ, इस धरती में सतोपन्थ, न्यायदेव और कैलास,
पावन पवित्र नदियों का मैत ये, यहाँ है पंच प्रयाग और आदि शक्तिपीठों का वास।
बैज, तुंगनाथ, जोगेश्वर और चार धाम, यहाँ, ये धरती है राजा भरत की जन्म थाती,
हेमकुंड, भूम्याळ देव, धर्मनगरी, यहाँ, इस भूमि में कुंड,बुग्याल, और फूलों की घाटी।
संस्कृतिक विरासत के पर्वों से जौनसार, गढ़कुमौ, बारह मास रहते है आबाद,
कुंभ, नन्दाराज जात, मौरी कौथिक यहाँ पुण्य देते भक्तों कोे बारह साल बाद।
ढोल सागर, हुड़का, और पंडौ की थाप पर गुँजती है यहाँ की सुंदर घाटियाँ,
डौर-थाली, बंसुरी, और रणसींगा, के मधुर स्वरों पर नृत्य करती यहाँ की वादियाँ।
हिंसर, काफल, बेडू, के पेड़ यहाँ, मंडुवा,गैत,कौणी,झंगाोरा भटट,के खेत खाल्यान,
देव धरती में फ्योली, बुरांस, बह्मकमल, और वसंत के फूलों की मधुर मुस्कान।
हिमालय की शान हैं कस्तुरी मृग, ककड़, सोनपंखी गरूड़, और घुघूती, मुनाल,
योग जड़ी बुटियों की धरती यें, कुमाऊँ की होली में उड़े यहाँ प्रेम का गुलाल।
गौरव गान हुआ जिनका सारे जग मे खिले इस विंध्यचल में ऐसे अमर सुमन,
जिनके त्याग बलिदान यश जश और कीर्ति से महका है हिमवंत का ये उपवन।
बड़े-बड़े वीर, धीर, सैनिक और विरांगनाओं से भरी हैं ये मनासखंड की थाती,
देश रक्षा के लिए मर मिट गये जो वीर, वीरता उनकी पूरे जग में पूजी जाती।
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