Monday 20 June 2016

कब तकै Garhwali Poem



















कब तकै लुट्दा तुम ये पहाड़ ते,
हम भी देखदा जरा !
कब तकै फोड़दा तुम ये गढ़वाल ते,
हम भी देखदा जरा !
तुम जित्दा या यू पहाड़ जितदू,
हम भी देखदा जरा !

कब तकै निचोड़ादा तुम यी नदी नयार ते,
हम भी देखदा जरा !
कब तकै पिचोंड़दा तुम यी मौयार ते,
हम भी देखदा जरा !
नयार नीचड़ोंदी, या तुम पिचोड़ेन्दा,
हम भी देखदा जरा !

कब तकै मोरण देंदा स्वीली ते तुम
पीडां अस्पताल की पैड़ीमा,
हम भी देखदा जरा !
कब तकै बिकण देंदा तुम
डॉक्टरुं की पोस्टिंग रुप्यों की थैली मा
हम भी देखदा जरा !
स्वीली की पीड़ा जितदी या
तुमारी बणायी क्रीड़ा जितदी
हम भी देखदा जरा !

कब तकै थामी सकदा तुम,
यू मनख्यूं का उमाळ ते,
हम भी देखदा जरा !
कब तकै बंधे सकदा तुम
हम भी देखदा जरा !
भाप बणी ऊ उमळदन,
या तुमते फुक्दान,
हम भी देखदा जरा !

कब तकै झूठा वादों की थपकी मा,
हिमपुत्र ते सुनींद राख्दा तुम,
कब तकै की आपदा जाळमा फंसे की निश्चिंत रैंदा तुम,  
हम भी देखदा जरा !

अपड़ा सवालू ते लेकी या जनता
सड़क्यूँ मा आंदी की नी आंदी,
हम भी देखदा जरा !
पुरणा क्रांतिकारयूं का किस्सा सुणी,
क्वी न क्वी नौजवान तपी की आग कन नी होलू बणू
हम भी देखदा जरा !
धीरज रख्या जवान ते,

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