Monday 20 June 2016

कानमा जाण Most Popular Hindi Blog Uttarakhand Garhwali Poem

गगवाड़स्यूं घाटी

















अपड़ी मातृ भूमि छोड़ी की मिन कानमा जाण,
यी पित्र भूमि बिगर मिन,परदेश मा कनमा राण।
चाँदी सी चमकणी छन जख हिवई कांठी,
मथि आकाश ते छूणी यू ऊंची ऊंची डांडी।
सप्त सिन्ध दगड़ी छन जख चार धाम,
इखा का कण कण मा लेख्यू च देवतों कू नाम।
मिन अपडू ज्यू यूं पंचजन बिगर कंमा लगाण,
अपड़ी मातृ भूमि छोड़ी की मिन कानमा जाण।

हवा मा उड़दू माटू बरखूदू जख बणी की फूल,
कनमा कैर सकदो मी इतगा बड़ी भूल।
जै सुख का पैथर या दुनिया भगणी च उत मात्र सून्या चा,
में कू ते त यी देव भूमि मा रैण ही सबसे बडू पुण्या चा।
इखे की हर चीज मा बस्यू च मेरू प्राण,
अपड़ी मातृ भूमि छोड़ी की मिन कानमा जाण।

क्या बोलेली यी गैरी गदनी क्या बोलेली या बयार,
रमणी राली गोड़ी भैन्सी ढूढ़ेल़ी वू मेते वली पली सार।
बार बन्या का फूल जख, जख छन पाणी का ताल,
कानमा छोड़णन मिन मरसन भोरया पूगडा यूं लाल।
जड़ च मेरी ईख,अपड़ा फोन्गा भ्यार किले फैलाण,
अपड़ी मातृ भूमि छोड़ी की मिन कानमा जाण।

सब कुछ बिसरी जोलू मी अगर चलग्यो भैर,
छल कपट की गंगा बगणी च तै शहर।
बिनसन मा ही रैकी मी क्वी रोजगार जूटोलू,
इखी धंधा कैकी अपड़ा मुल्क की तररकी मा हाथ बंटोलू।
मेरा मुल्क की डान्डी कांटयून या इकुलांस कनमा साण,
अपड़ी मातृ भूमि छोड़ी की मिन कानमा जाण।।

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