Wednesday 29 June 2016

माँ आ गयी, बसंत आ गया Most Hindi popular blog Uttarakhand Garhwali


सर्दियों के आँगन में खुशियों के फूल मुरझा रहे थे,
ज़िन्दगी के धागों को जितना हम सुलझाते,
वर्फिली हवा उन्हें और उलझा रहे थे

कम्बल के अंदर से छुपकर ज़िन्दगी झांक रही थी
कभी तो मिलेगा सकून, इसी आस में
कच्ची धुप को तांक रही  थी

कहासे की दीवारें रास्ता रोककर खडी थी
भीगी हुयी लकड़ियाँ चूल्हे पर वीरान पड़ी थी

बस कट जाएँ लम्बी -लम्बी ये रातें
बस फंट जाएँ सूरज से रोशनी की सौगातें
पतझड़ ऐसा कि ज़िन्दगी के पत्ते वृक्षो से टूट रहें है
हवाओं में इस कदर नमी थी
 कि एक दूसरे के हाथों से हाथ छूट रहें है

बसंत आएगा  कब आयेगा ? कैसे आयेगा
सब राह देख रहें है
एक दिन अचानक घर में ख़ुशी छा गयी, हर्ष छा गया
माँ गयी, बसंत गया
लीजिये गर्मियों के सीजन में सर्दियों की कविता आनंद  Most Hindi popular blog Uttarakhand


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