Monday, 28 November 2016
Friday, 25 November 2016
हे न्या जमना हे नयी जनरेसन, Garhwali Poem By PardeeP Rawat
हे न्या जमना हे नयी जनरेसन,
हाथू मा इस्मार्ट फून फोर जि कू कनेक्सन।।
फेसबुक ट्विटर व्हाट्सअप पर बात होणी च,
सेणी खाणी सब हर्चगी चैटिंग सरि रात होणी च।।
गोर चरणदा होळ लगंदा घास कटण मा बी ऑनलैन छन,
जिंदगी हकीकत बटि सबी ऑफ़ लैन छन।।
जणि कख लगजा तौन्कू रौंग कनेक्सन,
लैक कमेन्ट कने तौंकी रिक्वेस्ट भेजी च,
ब्वे बुबों कि अर्जी न,नोनी अर्जी अप्सेप्ट करी च।।
नोनी की हाई मा ही सैकड़ो लैक कमेन्ट आणा छन,
हमारि कवितों की पोस्ट देखि मुख फरकाणा छन।।
जरा ध्यान दिया बुबों चलि नि ज्या रोंग डेरेक्सन,
खांदी सेन्दि वक्त की सल्फी झट होणी च अपलोड,
चिट्टी पत्रि इ मेल तार कू जमनू व्हेगी अब ओल्ड।।
नेता अफसरो घूसो विडिओ झट वायरल हुयूचा ,
नेते कुर्सी चलगी अफसरो नोकरी बटी हाथ दुयूचा।।
कबि ख़ुशी कबि देन्दु य़ू भारी टेंसन,
मिंटू मा वायरल होणा छन गौ गौळो का समाचार,
बुरा कामू नि बणा तुम सोसियल मिडिया ते हथियार।।
एक हैके मौ मदद मा लवा तुम ये माध्यम ते काम मा,
सुदी मुदि दाग नि लगावा तुम कैका बी नाम मा।।
प्रदीप रावत "खुदेड़"
Thursday, 24 November 2016
Wednesday, 23 November 2016
माँजी म्येरि माँजी Garhwali Poem By Pardeep Rawat Khuded
ममता तेरि ममता,
गंगा सी छाई ममता त्येरि ममता।
दूध सी दुधाई ममता त्येरि ममता
माँजी म्येरि माँजी
ममता त्येरि ममता
इस लिंक पर देखिये। जगा रे उत्तराखंडवास्यूं जगा रे जाग्रति गीत क्या हलात हो गयी है रमणीय प्रदेश की जरुर सुने।
गीलामा अफू से होलि सूखामा में सिवाई
अफू भूखी रै होलि अपडू बाँठू में खिलाई
माँजी म्येरि माँजी
ममता त्येरि ममता
हिवू सी ह्विई ममता त्येरि ममता
जून सी जून्याई ममता त्येरि ममता
गढ़वाली भाषा की सोशियल मिडिया पर वारयल कविता जो आपने भी जरुर शेयर की होगी।
हाथ पकड़ी कि तिन मेतै बाठू बताई
अन्धेरा मन म्येरा तिन ज्ञान कू ऊज्यवु काई
माँजी म्येरि माँजी
ममता त्येरि ममता
सूर्या सी चिटी ममता त्येरि ममता
सैद सी मिठी ममता त्येरि ममता
इस लिंक पर देखिये । एक ऐसा गीत जिस सुनकर आपको अपने खोये हुए लोग की याद आ जाएगी।
म्येरा होणमा जौं आँख्यू मा खुशी छै वु आंसून चुणीन
टूट गेन सब सुप्नया जू तिन मेरा होणमा बुणीन
माँजी म्येरि माँजी
ममता त्येरि ममता
रंग सी रंगीली ममता त्येरि ममता
फूलू सी चमकीलि ममता त्येरि ममता
इस लिंक पर देखिये - गढ़वाली सुपरहिट फिल्म भाग-जोग
आज मि जख भी तेरू ही आर्सीबाद चा
खैरी का आँसू कू दियू मेरू यू कनू प्रसादचा
माँजी म्येरि माँजी
ममता त्येरि ममता
हल्दी सी पूज्या ममता त्येरि ममता
निच क्वी दूजा ममता त्येरि ममता
गंगा सी छाई ममता त्येरि ममता।
दूध सी दुधाई ममता त्येरि ममता
माँजी म्येरि माँजी
ममता त्येरि ममता
गीलामा अफू से होलि सूखामा में सिवाई
अफू भूखी रै होलि अपडू बाँठू में खिलाई
माँजी म्येरि माँजी
ममता त्येरि ममता
हिवू सी ह्विई ममता त्येरि ममता
जून सी जून्याई ममता त्येरि ममता
गढ़वाली भाषा की सोशियल मिडिया पर वारयल कविता जो आपने भी जरुर शेयर की होगी।
हाथ पकड़ी कि तिन मेतै बाठू बताई
अन्धेरा मन म्येरा तिन ज्ञान कू ऊज्यवु काई
माँजी म्येरि माँजी
ममता त्येरि ममता
सूर्या सी चिटी ममता त्येरि ममता
सैद सी मिठी ममता त्येरि ममता
इस लिंक पर देखिये । एक ऐसा गीत जिस सुनकर आपको अपने खोये हुए लोग की याद आ जाएगी।
म्येरा होणमा जौं आँख्यू मा खुशी छै वु आंसून चुणीन
टूट गेन सब सुप्नया जू तिन मेरा होणमा बुणीन
माँजी म्येरि माँजी
ममता त्येरि ममता
रंग सी रंगीली ममता त्येरि ममता
फूलू सी चमकीलि ममता त्येरि ममता
इस लिंक पर देखिये - गढ़वाली सुपरहिट फिल्म भाग-जोग
आज मि जख भी तेरू ही आर्सीबाद चा
खैरी का आँसू कू दियू मेरू यू कनू प्रसादचा
माँजी म्येरि माँजी
ममता त्येरि ममता
हल्दी सी पूज्या ममता त्येरि ममता
निच क्वी दूजा ममता त्येरि ममता
Friday, 18 November 2016
देव भूमि मा मनखी नि रै ।। गाड़ गदन्यों मा पाणी नि रै ।। आँसूं छन यूँ आंख्यों मा ।। डाँडी कांठ्यों मा डाली नि रै ।। रोज रोज की आपदों मा ।। यु पहाड़ खण्ड खण्ड छैई ।।
देव भूमि मा मनखी नि रै ।।
गाड़ गदन्यों मा पाणी नि रै ।।
आँसूं छन यूँ आंख्यों मा ।।
डाँडी कांठ्यों मा डाली नि रै ।।
रोज रोज की आपदों मा ।।
यु पहाड़ खण्ड खण्ड छैई ।।
समझ नि औणु दगड़ियों ।।
यु ही सुपिन्यों कु उत्तराखण्ड छै ।।
समझ नि औणू बंधू ।।
यु ही सुपिन्यों कु उत्तराखण्ड छै ।।
बोला दगडियों सोचा दगड़ियों ।।
बोला बंधू मेरा भै बन्धू ।।
पहाड़ रोणू पलायन मा ।।
छोटा बड़ा सभी जयां प्रदेशू मा ।।
रीति रिवाज न थौला मेला रै।।
न बार तेवार ये गढ़देश मा ।।
नेता डुब्यां छ नेतागिरी मा ।।
हमारी बोली बन्द छैई ।।
समझ नि औणू दगड़ियों ।।यु ही सुपिन्यों कु उत्तराखण्ड छै ।।
समझ नि औणू बंधू ।।
यु ही सुपिन्यों कु उत्तराखण्ड छै ।।
बोला दगड़ियों सोचा दगड़ियों।।
बोला बंधू मेरा भै बंधू ।।
दारु भांगलू घरु घरु मा ।।
पाणी बन्द बिजली घरु म ।।
भर्ष्टाचार की मार यनि ।।
स्कूल कालेज दफ्तरू मा ।।
जनता भी बस देखण लगीं ।।
नेता ब्यस्त छ घोटालू मा ।।
समझ नि औणू दगड़ियों ।।
यु ही सुपिन्यों कु उत्तराखण्ड छै ।।
समझ नि औणू बंधू ।।
यु ही सुपिन्यों कु उत्तराखण्ड छै ।।
बोला दगड़ियों सोचा दगड़ियों ।।
बोला बन्धु मेरा भै बंधू ।।
स्कूल कखी स्कूल नि रै ।।
नदी नालों मा कखी पूल नि रै ।।
विकाश नौ मा जौन यख ।।
सैरा पहाड़ मा जोल लगै ।।
आंख्यों मा आँशु जिकुडा पीड़ा ।।
खुटा बिटिन सैडा मुण्ड छैई।।
समझ नि औणू दगड़ियों ।।
यु ही सुपिन्यों कु उत्तराखण्ड छै ।।
समझ नि औणू बंधू ।।
यु ही सुपिन्यों कु उत्तराखण्ड छै ।।
बोला दगड़ियों सोचा दगड़ियों ।।
बोला बन्धू मेरा भै बंधू ।।
गीत सुरेन्द्र सेमवाल
Thursday, 17 November 2016
Wednesday, 16 November 2016
Friday, 11 November 2016
मैं दिल्ली हूँ,, आजादी के बाद दिल्ली हूँ Garhwali Poem by Pardeep Rawat
मैं दिल्ली हूँ,,
आजादी के बाद दिल्ली हूँ।
अपने सफर की कहानी आज तुम्हें बताऊँगी,
कभी खुशी कभी गम के पल तुम्हें सुनाऊँगी।।
आजादी के बाद का पहले दशक का दौर था,
चारों तरफ खुशी का महौल था।
मुझे सजाने और सवारने की नीतियाँ बनायी जा रही थी,
मै हिन्दुस्तान का दिल बनूँ ऐसी योजनाये चलायी जा रही थी।
इस लिंक पर देखिये गढ़वाली सुपर हिट फिल्म भाग-जोग
नेहरू, पटेल, शात्री जी के हाथों में मेरी कमान थी,
मुझे बिकास के पथ पर दौड़ायेगें ये उनकी जबान थी।
राजनेता बदले तो राजनीति बदलने लगी,
अब मेरी किसमत इन्द्रा के हाथों से चलने लगी।
अभी मैने बिकास का चंद फासला ही तय किया था,
कि नेताओं पर सता का नशा छा गया।
मेरे हितों को छोड़कर कुर्सी का मोह आ गया।
इस लिंक पर देखिये गढ़वाली सुपर हिट फिल्म भाग-जोग पार्ट -II
कैसे भूल जांऊँ उस दौर को,
जब मुझे इमेरजन्सी में कैद किया गया था।
कैसे भूल जाऊँ उस दौर को,
जब नागरिक समाज के बोलनें पर प्रतिबंध लगा दिया था।
लोकतंत्र अधमरा लहुलुहान पड़ा था इन्द्रा के हाथो से,
मेरा दमन भीग रहा था संविधान के आँसूओं से।
जेपी के अन्दोलन से मेरी धरती पर नई क्रांति आयी थी,
सिहासन खाली करों, जनता आती है। के नारों से नयी जागृती आयी थी।
जनता जाग्रति ही मुझे कुछ दिए थे ख़ुशी के पल,
उज्जवल नजर आ रहा था मुझे भारत का कल।।
इस लिंक पर सुनिए -किस दौर से गुजर रहा है अपना उत्तराखंड सुनिए उत्तराखंडी जाग्रति गीत
अभी मै थोड़ी सम्भली थी कि,
चौरासी के दंगों से मैं दहल गयी,
देखते-देखते हिंसा की आग चारों तरफ फैल गयी।
कई लोगों का सिर इस दौर में कलम किया गया,
मेरे आँचल पर कभी न मिटने वाला दाग दिया गया।
टूटना मेरे नसीब में लिखा है,
टूटकर संभलना मैंने भी सीखा है।।
सन दो हजार में पहली बार मैने बम धमाकों को झेला था,
मुम्बई के बाद दहशदगर्दो ने दिल्ली में मौत का खेल खेला था।
इसके बाद तो यह सिलसिला बदस्तूर यूँ ही चलता रहा,
किसी न किसी का अपना-पराया इन धमाकों मे मरता रहा।
आखिर कब तक मै इस दर्द को सहती रहूंगी,
तुमसे अपने दर्द की दास्ताँ को यूँ कहती रहूंगी।।
इस लिंक पर देखिये एक सुंदर गढ़वाली खुदेड गीत। आपको अपनों की याद आ जाएगी
ब्लू लाइन के नीचे मरती जिन्दगियों को में मैने देखा है,
फुटपात पर पलती जिंदगियों को भी मैने देखा है।
सड़क के चौराहे पर ढलते बुढापे को मैने देखा है,
कचरे और पलास्टिक से पेट भरते गाय को मैने देखा है।
तन्दूर में इन्सानियत को भी जलते हुऐ मैने देखा है।
यमुना को मल के नालों से गंदा करते हुऐ मैने देखा है,
मेरी लज्जो डरने लगी है अपनों के बीच मे,
कहाँ मै उसे छुपाऊँ,
अपना दर्द मुझसे वह कहती है,
कैसे मै उसे बचाऊँ।
वह सिसकती है, मैं बेचैन हो जाती हूँ।
मुझसे अपने ही लोग क्यो इतना नफरत करते हैं,
मेरे सुंदर आँचल को क्यों गंदा करते है।
तुम तो आओगे जाओगे,
मुझे तो यही रहना हैं,
ऐसे कई घावो को सदियों तक सहना हैं।
मुझसे तुम आज एक वादा कर लो,
कम नही ज्यादा कर लो।
तुम सुधर जाओगे तो सारी दिल्ली सुधर जायेगी,
देखते ही देखते सारी दिल्ली बदल जायेगी।
मैं दिल्ली हूँ,,
आजादी के बाद दिल्ली हूँ।
Thursday, 10 November 2016
क्या आपको भी हुआ है ऐसा अहसास ?
काफी बरसो के बाद मुझे ऐसी जगह जाने का मौका मिला जहाँ पहुँचने के बाद मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि कोई मेरा बरसो से इन्तजार कर रहा है। जिसने मेरे जीवन को बदल डाला। मुझे अपनो की याद दिला दी। मुझे उस दिन अहसास हुआ की मेरा बीता हुआ कल कितना सुन्दर था। यूं तो शहर की रंगीन गलियो में मुझे अपनो की याद यदा-कदा आती है। जिस पर मै इतना सोच बिचार नही करता हूँ और अगर कभी अकेले में मैं समय ब्यतीत करते बक्त थोड़ा बहुत सोच के भंवर में डूबकी लगया लेता हूँ तो इस पल को मैं इस दौड़ती भागती जिन्दगी में सकुन पाने का एक जरिया मानता हूँ । ठीक उसी प्रकार जैसे कोई आदमी थका हारा अपने घर आकर नहाते समय अपने आप को तरोताजा महसूस करता है, लेकिन फिर नहाने के बाद वह अपनी पारवारिक उलझनो में घिर जाता हैं और एक बार फिर वैसे ही महसूस करने लग जाता है जैसे वह नहाने से पहले था।
लेकिन जिस जगह मैं पहुँचा था उस जगह ने मुझे बदल डाला, शायद अगर मेरी जगह आप भी होते तो आप भी वही करते जो मैने किया। क्यो कि जिस चीज ने मुझे बदला उस चीज को हम बरसो पहले एकांकी में छोड़कर शहर चले गये थे। उस चींज को हर पल यही एकांकी संताती रहती कि मुझे अपनो ने एखुली छोड़ दिया, जिन अपनो के साथ मैं पता नही कितनी पीड़ियो से थी। आज वह मुझे ऐसे एकांकी में कैसे छोड़ सकते हैं ? उसे यह बात नासूर बनके अन्दर ही अन्दर खाये जा रही थी। उसके चारो ओर हमेशा हर साल बसंत का अगमन होता लेकिन बसंत ने कभी भी उसके आंगन में दस्तक नही दी। वैसे भी उसके लिए बसंत का आना उस दिन से बन्द हो गया था जिस दिन से उसके अपने उसे एखुली छोड़ कर परदेश चले गये थे। उनकी राह ताँकते-ताँकते अब तो उसकी आँखो के आंसू भी सूख गये थे। अगर वह जिन्दा थी तो बस इसी आस पर कि कभी न कभी तो मेरे अपनो को मेरी याद आयेगी और उन्हे यहा मेरी पास खींच कर ले आयेगी। तो क्या मै इतना कठोर मनखी था जो उसकी इस आस को हमेशा के लिए तोड़ देता। और उसे अकेले तड़फता हुआ छोड़ कर वापस आ जाता । मेरा क्वासा मन इस बात को लेकर बिलकुल भी सहमत नही था, हलांकि मैं उसके आंगन में कई साल बाद आया था और अब मेरा यहा केवल ना मात्र का रिस्ता बचा हुआ था। जब मैने उसके आंगन में पाव रखा तो उसने मुझे पहचाने में कोई गलती नही की। मैं भी उसे निहार ही रहा था कि मुझे कुछ महसूस सा हुआ। कि जैसे कोई मुझे आर्शीबाद दे रहा हो, मुझे एक आवाज सुनाई दी, कि कैसा है तू ! सर पर हाथ फेरते हुऐ क्यो आज आ गयी तुझे मेरी याद, तुझे पता है ! तुम्हारे जाने के बाद मुझे कितने ताने सुनने पड़े। मुझे कांटो ने अपना घर बना लिया मेरा आंगन सूना हो गया मैं अपनी दिल की बात किसी से नही कह सकी। जो पशु-पक्षी अपने झुण्ड के साथ मेरे आंगन में आते थे उन्होने यहा आना छोड़ दिया। दुब बुगला मुझे हर वक्त चिढ़ाते रहते थे। कि कभी तू हमे यहाँ अपने आंगन में टिकने नही देती थी, आज हमे रोकने वाला को नही हैं। मेरी दुनिया बेरंग हो गयी फ्योली ने मेरा साथ छोड़ दिया। अगर बचे है तो केवल ये पत्थर जो मुझे धीरज बाँधते रहते है कि तू उदास मत हो एक दिन तेरे अपने तेरे पास जरूर आयेगे।(भाग-जोग ) पार्ट दो को इस लिंक ओपन करके देखिये,
मुझे उसकी खैरी सुनकर रोना आने लगा उसने मेरे आँखो के आंसूओे को साफ किया और मुझे गले से लगा लिया। जब उसने मुझे गले से लगाया तो मुझे ऐसा लगा मानो मुझे सारी दुनिया की खुशी मिल गयी हो। फिर मैं उसकी गोद में बैठ गया मेरे आँंखो से आंसू रूकने का नाम नही ले रहे थे। वह मुझे बार बार समझ रही थी मत रो। मत रो, लेकिन मैं अपने मन में भरे उमाळ को आज बहाना चहाता था। अब तो वह भी मेरे साथ भावुक हो गयी और रोते-रोते कहने लगी, मुझे पता था कि एक ना एक दिन तू जरूर लौट के आयेगा। मुझे उसकी बात सुनकर अपने बचपन के दिन याद आने लगे जो बचपन मैने उसके आंगन में गुजारा था धीरे-धीरे मेरी जिन्दगी के वह पन्ने खुलने लगे जो पन्ने मेरी दौड़ती-भागती जिन्दगी में ना जाने कौन से कोने में खो गये थे, मुझे ऐसे महसूस हो रहा था जो जिन्दगी मै आज जी रहा हूँ वह तो एक जाल है जिसे सुलझाते-सुलझाते मेरा आस्तित्व समाप्त हो जायेगा, और एक दिन मैं मिट्टी बन जाऊंगा। असल जिन्दगी को तो मैं पीछे छोड़ आया हूँ, जिस जिन्दगी में मैं एक सन्यासी रूपी प्राणी था, जहाँ ना मुझे खाने की फिकर थी ना मेरे मन में कोई छल था। लोभ लालच के लिऐ मेरे जिगर में कोई जगह नही थी। मेरा मन गंगा के समान साफ और पवित्र था, हवा के समान निषपक्ष था, किरण के समान प्रकाशित था,और फल के समान मिठा था।
मै इस बात को सोच ही रहा था कि उसने मुझे प्यार से कहा कहाँ खो गया है तू ! मैने धीरे से जवाव दिया कई नही। फिर वह बोली पता है तुझे। दो तीन दिन पहले मुझे मिलने के लिए हमारे पूवर्ज आये थे, और कह रहे थे कि अब तू उसके आने की राह ताँकना छोड़ दे भूल जा उसे। वह शहर की भीड़-भाड़ में न जाने कहाँ खो गया है। वह वहाँ की चकाचैद और ऐसो आराम की जिंदगी में तुझे भुल गया है। अब वह तेरे पास लौट कर वपास नही आयेगा। लेकिन मैने उनसे कहा, जिसको मैने पाल पोषकर बड़ा किया जिसकी भुख को मैने अपनी भुख समझकर मिटाया उसे हर पल जीने की राह दिखाई वह मुझे कैसे भूल सकता हैं। भले मैने उसे अपनी खोख से जन्म नही दिया हो, पर मैने हर वह जिम्मेदारी निभाई है, जो एक माँ अपने बेटे के लिए निभाती हैं, माना मैं कभी कभी उससे नाराज हो जाती थी उसे उसकी मेहनत का पूरा फल नही देती थी, तो क्या वह मुझे हमेशा के लिए भूल जायेगा, मैं उसकी माँ समान हूँ । वह जरूर वापस आयेगा मेरे आँगन में खिलने के लिए। और फिर मैं हरी-भरी हो जाऊंगी। तब मैं अपने आस-पास की हरयाली को चिढाऊंगी जो आज तक मुझे चिढाते रहते थे। उस हल वाले को बताऊगी जो हमेशा मेरा मजाक उड़ाता था और कहता था कि तू हमेशा ऐसे बंजर ही रहेगी, तुझे तेरे अपनो ने छोड़ दिया हैं। मैं उसे कहूँगी कि देख अब मेरे अपने वापस आ गये है। अब मेरे आंगन मे भी तरह तरह के फूल खिल खिलाकर हँँसेगे मेरे आंगन में भी बसंत आयेगा चिड़िया चू-चू करेगी मेरे सूने जीवन में भी एक बार मौयार आयेगी।गढ़वाली भाषा की सोशियल मिडिया पर वारयल कविता आपने भी जरुर शेयर की होगी।
मुझे उसकी खैरी सुनकर बड़ा दुःख हुआ और अब मै फुट-फुट कर रोने लगा, मैने उससे वादा किया कि मैं उसे अकेले छोड़कर कभी नही जाऊंगा। और कल ही हल बैल लेकर उसे जोतने आऊंगा। उसने मुझे गले लगाया मैने भी उससे जाने की अनुमति माँगी। और वहा से मै सीधे अपने घर गया तथा इस सारी कहानी को अपने परिवार को बताया, मैने अपने परिवार के लोगो से कहा की अगर आप लोग वापस परदेश जाना चहाते हो तो जा सकते हो। मैं तुम्हे नही रोकूगा पर अब मैं अपने मुल्क और अपने खेत खल्यानो को छोड़ कर नही जाऊंगा। मेरे बेटो को मेरे दिल की बात का पता चल गया की पापा जी के मन में पित्र भूमि का प्यार जाग गया है। इस लिए उन्होने मुझे वचन दिया कि हम अपने बच्चो को पढ़ा लिखाकर वापस अपनी पित्र भूमि में आ जायेगे, और अपने बच्चो से भी यही वचन माँगके कि वह भी अपने बच्चो को पढ़ा लिखाकर वापस अपनी पित्र भूमि में आये और अपनी अन्तिम सांसे देब भूमि में त्याग कर अपने पित्रो के साथ मिल जाये। उनकी इस तरह की बात को सूनकर मेरे दिल को बहुत ही अच्छा सकुन मिला और एक बार फिर मेरी बांझी पुंगड़ी चलदी हो गयी। इस लिंक पर देखिये। जगा रे उत्तराखंडवास्यूं जगा रे जाग्रति गीत क्या हलात हो गयी है रमणीय प्रदेश की जरुर सुने।
अगर और लोग भी इसी तरह इस क्रम को पीढी दर पीढ़ी आगे बढाये तो शायद दूसरी बाँझी पुगड़ी को न रोना पड़े । जैसे मेरी बाँझी पुंगड़ी रोई। और फिर यही इस नर लोक की असल जिन्दगी हैं। जिसे जीने में आदमी को अपार सकून मिलता हैं। भले ही इसमें परिश्रम ज्यादा करना पड़ता हैं। और इसी लिए भगवान ने हमे इस दुनिया में भेजा हैं। मना रोजी रोटी इन्सान की जरुरत है लेकिन अगर आदमी इस रोजी रोटी को कमाने के चक्कर में हमेशा के लिए अपने मुल्क को छोड़ दे तो आने वाले समय में इस मुल्क का क्या हाल होगा सोचने वाली बात हैं।
Tuesday, 8 November 2016
दैनिक उत्तराखंड के माध्यम से पढ़े
Monday, 7 November 2016
मै उत्तराखंड बोल रहा हूँ Garhwali Poem By Surendra Semwal
राजनीती के राजाओं से मैं।।
हर दिन हर पल लुट रहा हूँ।।
पवित्र मेरी प्रकृति फिर भी ।।
दूषित लोगों से हरपल घुट रहा हूँ ।।
इस लिंक पर देखिये। जगा रे उत्तराखंडवास्यूं जगा रे जाग्रति गीत क्या हलात हो गयी है रमणीय प्रदेश की जरुर सुने।
कराह रहा हूँ दर्द पलायन से ।।
अपनों की राहें ताक रहा हूँ ।।
मै उत्तराखण्ड बोल रहा हूँ ।।
गढ़वाली भाषा की सोशियल मिडिया पर वारयल कविता जो आपने भी जरुर शेयर की होगी।
खेत खलियान सब शूनें मेरे।।
खाली घरों में जानवरों के डेरे।।
बिहारी नेपाली रोज मुझे डराये ।।
मेरे अपने सब हुए हैं पराये ।।
इस लिंक पर देखिये । एक ऐसा गीत जिस सुनकर आपको अपने खोये हुए लोग की याद आ जाएगी।
न चाहकर भी किसी तरह मै ।।
परदेशियों संग घुल रहा हूं।।
मै उत्तराखण्ड बोल रहा हूँ।।
इस लिंक पर देखिये - गढ़वाली सुपरहिट फिल्म भाग-जोग
न मेरे काम आया मेरा पानी।।
न काम आया यहां की जवानी ।।
सब भागें है छोड़ के मुझको ।।
कहकर मजबूरी बस सारे खुद को ।।
फिर भी मैंने उम्मीद न तोड़ी ।।
अपनों के लिए सब झेल रहा हूँ ।।
मै उत्तराखण्ड बोल रहा हूँ।।
(भाग-जोग ) पार्ट दो को इस लिंक ओपन करके
जो थे कभी बोरोधी मेरे ।।
ओ ही मुझ पर राज जमाये।।
चुप क्यों हो तुम मेरे अपने ।।
हाल पर मेरे शहीद शर्माएं ।।
किसी तरह बस जी रहा हूं ।।
लेकिन कब तक ये सोच रहा हूँ।।
मै उत्तराखण्ड बोल रहा हूँ।।
संस्क्रती नाम की बात रही न ।।
सब बन बैठे हैं पंजाबी हरयाणवी ।।
बढूंगा कैसे आगे दुनिया में ।।
मेरे शर्म करते है गढ़वाली कुमाउनी ।।
मै बस दूर से देख देख रहा हूँ।।
अपनों के हाल पर सोच रहा हूँ ।।
मै उत्तराखण्ड बोल रहा हूँ।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~
पंक्तियाँ - सुरेन्द्र सेमवाल
Saturday, 5 November 2016
आज की मेहमान पोस्ट में पढ़े स्टेट एजेंडा के माध्यम से विदेशी में लाखों की नौकरी छोड़ गांव में भेड़ चराने लौटे परमिंदर Garhwali Poem By Pardeep Rawat
Friday, 4 November 2016
अपने शबाब से सूरज अब ढलने लगा है,Garhwali Kavita by Pardeep Rawat Khuded
अपने शबाब से सूरज अब ढलने लगा है,
अब तो बटोई भी अपने घर को चलने लगा है।
बस, मै ही इन शहर की गलियों में कुछ खोज रहा हूँ,
काम बहुत है अभी चलता हूँ, बस अभी मै सोच रहा हूँ।
इस लिंक पर देखिये। जगा रे उत्तराखंडवास्यूं जगा रे जाग्रति गीत क्या हलात हो गयी है रमणीय प्रदेश की जरुर सुने।
धीरे- धीरे सूरज ढला अन्धेरा हुआ और घना,
बोण पंछियों ने भी ले ली अपने घरोंदो में पनहा।
मै इस शहर में मकान नहीं एक घर खोज रहा हूँ,
भोग-बिलास की सारी वस्तुयें है,
बस, मै ही इन शहर की गलियों में कुछ खोज रहा हूँ,
काम बहुत है अभी चलता हूँ, बस अभी मै सोच रहा हूँ।
इस लिंक पर देखिये। जगा रे उत्तराखंडवास्यूं जगा रे जाग्रति गीत क्या हलात हो गयी है रमणीय प्रदेश की जरुर सुने।
धीरे- धीरे सूरज ढला अन्धेरा हुआ और घना,
बोण पंछियों ने भी ले ली अपने घरोंदो में पनहा।
मै इस शहर में मकान नहीं एक घर खोज रहा हूँ,
भोग-बिलास की सारी वस्तुयें है,
फिर भी बेचैन क्यूँ हूँ, यही मैं सोच रहा हूँ।
गढ़वाली भाषा की सोशियल मिडिया पर वारयल कविता जो आपने भी जरुर शेयर की होगी।
भ्यारें में दीये जले चूल्हों में जलने लगी आग,
सरसों के तेल में जख्या का तड़का, थड़ाकता मूली का साग।
बस ! मै शहर के रेस्टोरेंट में बैठकर भूख खोज रहा हूँ,
पेट तो भर गया पर स्वाद क्यों नहीं मिला, यही सोच रहा हूँ।
इस लिंक पर देखिये । एक ऐसा गीत जिस सुनकर आपको अपने खोये हुए लोग की याद आ जाएगी।
कभी दस लोगों की टोली, घर के आँगन में थी खेलती,
गाँव में आज मेरी माँ अकेले में मंडवा की रोटी है बेलती।
मै इस शहर में उस बचपन को खोज रहा हूँ,
उन याद़ों की पोटली को मार्बल के फर्श पर कहाँ रखू, यही सोच रहा हूँ।
इस लिंक पर देखिये - गढ़वाली सुपरहिट फिल्म भाग-जोग
रात बीत गयी मेरी ज़िन्दगी का एक दिन हो गया कम,
ख़ुशी ढूढने भटक रहा था यहाँ, मिलापहाड़ से बिछड़ने का गम।
इस शहर में अपनी खफायी जवानी मै खोज रहा हूँ,
बुढ़ापे में पहाड़ पर क्यों बोझ बनू मै, यही मै सोच रहा हूँ।
(भाग-जोग ) पार्ट दो को लिंक ओपन करके देखिये,
गढ़वाली भाषा की सोशियल मिडिया पर वारयल कविता जो आपने भी जरुर शेयर की होगी।
भ्यारें में दीये जले चूल्हों में जलने लगी आग,
सरसों के तेल में जख्या का तड़का, थड़ाकता मूली का साग।
बस ! मै शहर के रेस्टोरेंट में बैठकर भूख खोज रहा हूँ,
पेट तो भर गया पर स्वाद क्यों नहीं मिला, यही सोच रहा हूँ।
इस लिंक पर देखिये । एक ऐसा गीत जिस सुनकर आपको अपने खोये हुए लोग की याद आ जाएगी।
कभी दस लोगों की टोली, घर के आँगन में थी खेलती,
गाँव में आज मेरी माँ अकेले में मंडवा की रोटी है बेलती।
मै इस शहर में उस बचपन को खोज रहा हूँ,
उन याद़ों की पोटली को मार्बल के फर्श पर कहाँ रखू, यही सोच रहा हूँ।
इस लिंक पर देखिये - गढ़वाली सुपरहिट फिल्म भाग-जोग
रात बीत गयी मेरी ज़िन्दगी का एक दिन हो गया कम,
ख़ुशी ढूढने भटक रहा था यहाँ, मिलापहाड़ से बिछड़ने का गम।
इस शहर में अपनी खफायी जवानी मै खोज रहा हूँ,
बुढ़ापे में पहाड़ पर क्यों बोझ बनू मै, यही मै सोच रहा हूँ।
(भाग-जोग ) पार्ट दो को लिंक ओपन करके देखिये,
Wednesday, 2 November 2016
कुछ बनने की चाह में, Garhwali Poem by Pardeep Rawat khuded
कुछ बनने की चाह में,
निकल पड़ा शहर की तरफ एक पहाड़ी फूल।
इस शहर की गर्मी में झुलस गया वह,
जो था पहाड़ के अनुकूल।।
वह तो घाटियों में खेलता था,
शहर में कहाँ टिक पाता।
वह तो गंगा सा स्वच्छ और निर्मल था,
शहर में उसका इमान कैसे बीक पाता।।
इस लिंक पर देखिये। जगा रे उत्तराखंडवास्यूं जगा रे जाग्रति गीत क्या हलात हो गयी है रमणीय प्रदेश की जरुर सुने।
जिस बाग से निकला वह,
वह उसके विना लगता है खाली।
शहर से बाग में लौटने की चाह में,
सर्घष उसका अभी भी है जारी।।
गढ़वाली भाषा की सोशियल मिडिया पर वारयल कविता जो आपने भी जरुर शेयर की होगी।
संर्घष करने के लिए भी शहर में,
पानी उसे पहाड़ से ही मिलता है।
तभी तो वह फूल इस धरती में भी,
होले-होले खिलता है।।
इस लिंक पर देखिये । एक ऐसा गीत जिस सुनकर आपको अपने खोये हुए लोग की याद आ जाएगी।
यहाँ के राजनीति के बुके में,
वह नही सजना चाहता है।
वह तो बस उसी पहाड़ में फिर बसना चाहता है।।
कुछ बनने की चाह में,
निकल पड़ा शहर की तरफ एक पहाड़ी फूल।
इस शहर की गर्मी में झुलस गया वह,
जो था पहाड़ के अनुकूल।।
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