शनिवार, 5 नवंबर 2016

आज की मेहमान पोस्ट में पढ़े स्टेट एजेंडा के माध्यम से विदेशी में लाखों की नौकरी छोड़ गांव में भेड़ चराने लौटे परमिंदर Garhwali Poem By Pardeep Rawat


विदेशी में लाखों की नौकरी छोड़ गांव में भेड़ चराने लौटे परमिंदर।पौड़ी। वीरान हो गांव और उजड़ते खेत. यह तस्वीर कमोबेश उत्तराखंड के लगभग हर गांव की है. गांव छोड़ शहरों को पलायन करते लोग का अब गांव से मोह भंग होता जा रहा है. विदेश में आधुनिक सुख-सुविधाएं, आलीशान इमारतें और शहरों की चकाचौंद छोड़ गावं को अपना अशियाना बनाकर स्वरोजगार करने वाले परमिंदर ने आज सबके लिए एक मिशाल कायम की है. जो रोजगार की दुहाई देकर गांव से पलायन कर रहे है. मूलरूप से पौड़ी जनपद की मल्ला बदलपुर पट्टी के कोटा गांव निवासी परमिंदर आठ साल पहले गांव लौटे.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली

 गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली        गढ़वाली भाषा का प्रारम्भ कब से हुआ इसके प्रमाण नहीं मिलते हैं। गढ़वाली का बोलचाल या मौखिक रूप तब स...