Wednesday 2 November 2016

कुछ बनने की चाह में, Garhwali Poem by Pardeep Rawat khuded


















कुछ बनने की चाह में,
निकल पड़ा शहर की तरफ एक पहाड़ी फूल।
इस शहर की गर्मी में झुलस गया वह,
जो था पहाड़ के अनुकूल।।

वह तो घाटियों में खेलता था,
शहर में कहाँ टिक पाता।
वह तो गंगा सा स्वच्छ और निर्मल था,
शहर में उसका इमान कैसे बीक  पाता।।
इस लिंक पर देखिये। जगा रे उत्तराखंडवास्यूं जगा रे जाग्रति गीत क्या हलात हो गयी है रमणीय प्रदेश की जरुर सुने।
जिस बाग से निकला वह,
वह उसके विना लगता है खाली।
शहर से बाग में लौटने की चाह में,
सर्घष उसका अभी भी है जारी।।
गढ़वाली भाषा की सोशियल मिडिया पर वारयल कविता जो आपने भी जरुर शेयर की होगी।
संर्घष करने के लिए भी शहर में,
पानी उसे पहाड़ से ही मिलता है।
तभी तो वह फूल इस धरती में भी,
होले-होले खिलता है।।
इस लिंक पर देखिये । एक ऐसा गीत जिस सुनकर आपको अपने खोये हुए लोग की याद आ जाएगी।
यहाँ के राजनीति के बुके में,
वह नही सजना चाहता है।
वह तो बस उसी पहाड़ में फिर बसना चाहता है।।

कुछ बनने की चाह में,
निकल पड़ा शहर की तरफ एक पहाड़ी फूल।
इस शहर की गर्मी में झुलस गया वह,
जो था पहाड़ के अनुकूल।।

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