Thursday 10 November 2016

क्या आपको भी हुआ है ऐसा अहसास ?




काफी बरसो के बाद मुझे ऐसी जगह जाने का मौका मिला जहाँ पहुँचने के बाद मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि कोई मेरा बरसो से इन्तजार कर रहा है। जिसने  मेरे जीवन को बदल डाला। मुझे अपनो की याद दिला दी। मुझे उस दिन अहसास हुआ की मेरा बीता हुआ कल कितना सुन्दर था। यूं तो शहर की रंगीन गलियो में मुझे अपनो की याद यदा-कदा आती है। जिस पर मै इतना सोच बिचार नही करता हूँ और अगर कभी अकेले में मैं समय ब्यतीत करते बक्त थोड़ा बहुत सोच के भंवर में डूबकी लगया लेता हूँ तो इस पल को मैं इस दौड़ती भागती जिन्दगी में सकुन पाने का एक जरिया मानता हूँ । ठीक उसी प्रकार जैसे कोई आदमी थका हारा अपने घर आकर नहाते समय अपने आप को तरोताजा महसूस करता है, लेकिन फिर नहाने के बाद वह अपनी पारवारिक उलझनो में घिर जाता हैं और एक बार फिर वैसे ही महसूस करने लग जाता है जैसे वह नहाने से पहले था।
लेकिन जिस जगह मैं पहुँचा  था उस जगह ने मुझे बदल डाला,  शायद अगर मेरी जगह आप भी होते तो आप भी वही करते जो मैने किया। क्यो कि जिस चीज ने मुझे बदला उस चीज को हम बरसो पहले एकांकी में छोड़कर शहर चले गये थे। उस चींज को हर पल यही एकांकी संताती रहती कि मुझे अपनो ने एखुली छोड़ दिया, जिन अपनो के साथ मैं पता नही कितनी पीड़ियो से थी। आज वह मुझे ऐसे एकांकी में कैसे छोड़ सकते हैं ? उसे यह बात नासूर बनके अन्दर ही अन्दर खाये जा रही थी। उसके चारो ओर हमेशा हर साल बसंत का अगमन होता लेकिन बसंत ने कभी भी उसके आंगन में दस्तक नही दी। वैसे भी उसके लिए बसंत का आना उस दिन से बन्द हो गया था जिस दिन से उसके अपने उसे एखुली छोड़ कर परदेश चले गये थे। उनकी राह ताँकते-ताँकते अब तो उसकी आँखो के आंसू भी सूख गये थे। अगर वह जिन्दा थी तो बस इसी आस पर कि कभी न कभी तो मेरे अपनो को मेरी याद आयेगी और उन्हे यहा मेरी पास खींच कर ले आयेगी। तो क्या मै इतना कठोर मनखी था जो उसकी इस आस को हमेशा के लिए तोड़ देता। और उसे अकेले तड़फता हुआ छोड़ कर वापस आ जाता । मेरा क्वासा मन इस बात को लेकर बिलकुल भी सहमत नही था, हलांकि मैं उसके आंगन में कई साल बाद आया था और अब मेरा यहा केवल ना मात्र का रिस्ता बचा हुआ था। जब मैने उसके आंगन में पाव रखा तो उसने मुझे पहचाने में कोई गलती नही की। मैं भी उसे निहार ही रहा था कि मुझे कुछ महसूस सा हुआ। कि जैसे कोई मुझे आर्शीबाद दे रहा हो, मुझे एक आवाज सुनाई दी, कि कैसा है तू ! सर पर हाथ फेरते हुऐ क्यो आज आ गयी तुझे मेरी याद, तुझे पता है ! तुम्हारे जाने के बाद मुझे कितने ताने सुनने पड़े। मुझे कांटो ने अपना घर बना लिया मेरा आंगन सूना हो गया मैं अपनी दिल की बात किसी से नही कह सकी। जो पशु-पक्षी अपने झुण्ड के साथ मेरे आंगन में आते थे उन्होने यहा आना छोड़ दिया। दुब बुगला मुझे हर वक्त चिढ़ाते रहते थे। कि कभी तू हमे यहाँ अपने आंगन में टिकने नही देती थी, आज हमे रोकने वाला को नही हैं। मेरी दुनिया बेरंग हो गयी फ्योली ने मेरा साथ छोड़ दिया। अगर बचे है तो केवल ये पत्थर जो मुझे धीरज बाँधते रहते है कि तू  उदास मत हो एक दिन तेरे अपने तेरे पास जरूर आयेगे।(भाग-जोग ) पार्ट दो को इस लिंक ओपन करके देखिये,

मुझे उसकी खैरी सुनकर रोना आने लगा उसने मेरे आँखो के आंसूओे को साफ किया और मुझे गले से लगा लिया। जब उसने मुझे गले से लगाया तो मुझे ऐसा लगा मानो मुझे सारी दुनिया की खुशी मिल गयी हो। फिर मैं उसकी गोद में बैठ गया मेरे आँंखो से आंसू रूकने का नाम नही ले रहे थे। वह मुझे बार बार समझ रही थी मत रो। मत रो,  लेकिन मैं अपने मन में भरे उमाळ को आज बहाना चहाता था। अब तो वह भी मेरे साथ भावुक हो गयी और रोते-रोते कहने लगी, मुझे पता था कि एक ना एक दिन तू  जरूर लौट के आयेगा। मुझे उसकी बात सुनकर अपने बचपन के दिन याद आने लगे जो बचपन मैने उसके आंगन में गुजारा था धीरे-धीरे मेरी जिन्दगी के वह पन्ने खुलने लगे जो पन्ने मेरी दौड़ती-भागती जिन्दगी में ना जाने कौन से कोने में खो गये थे, मुझे ऐसे महसूस हो रहा था जो जिन्दगी मै आज जी रहा हूँ वह तो एक जाल है जिसे सुलझाते-सुलझाते मेरा आस्तित्व समाप्त हो जायेगा, और एक दिन मैं मिट्टी बन जाऊंगा। असल जिन्दगी को तो मैं पीछे छोड़ आया हूँ, जिस जिन्दगी में मैं एक सन्यासी रूपी प्राणी था, जहाँ ना मुझे खाने की फिकर थी ना मेरे मन में कोई छल था। लोभ लालच के लिऐ मेरे जिगर में कोई जगह नही थी। मेरा मन गंगा के समान साफ और पवित्र था, हवा के समान निषपक्ष था, किरण के समान प्रकाशित था,और फल के समान मिठा था।
मै इस बात को सोच ही रहा था कि उसने मुझे प्यार से कहा कहाँ खो गया है तू ! मैने धीरे से जवाव दिया कई नही। फिर वह बोली पता है तुझे। दो तीन दिन पहले मुझे मिलने के लिए हमारे पूवर्ज आये थे,  और कह रहे थे कि अब तू  उसके आने की राह ताँकना छोड़ दे भूल जा उसे।  वह शहर की भीड़-भाड़ में न जाने कहाँ खो गया है। वह वहाँ की चकाचैद और ऐसो आराम की जिंदगी में तुझे भुल गया है। अब वह तेरे पास लौट कर वपास नही आयेगा। लेकिन मैने उनसे कहा, जिसको मैने पाल पोषकर बड़ा किया जिसकी भुख को मैने अपनी भुख समझकर मिटाया उसे हर पल जीने की राह दिखाई वह मुझे कैसे भूल सकता हैं। भले मैने उसे अपनी खोख से जन्म नही दिया हो, पर मैने हर वह जिम्मेदारी निभाई है, जो एक माँ अपने बेटे के लिए निभाती हैं, माना मैं कभी कभी उससे नाराज हो जाती थी उसे उसकी मेहनत का पूरा फल नही देती थी, तो क्या वह मुझे हमेशा के लिए भूल जायेगा,  मैं उसकी माँ समान हूँ । वह जरूर वापस आयेगा मेरे आँगन में खिलने के लिए। और फिर मैं हरी-भरी हो जाऊंगी। तब मैं अपने आस-पास की हरयाली को चिढाऊंगी जो आज तक मुझे चिढाते रहते थे। उस हल वाले को बताऊगी जो हमेशा मेरा मजाक उड़ाता था और कहता था कि तू  हमेशा ऐसे बंजर ही रहेगी,  तुझे तेरे अपनो ने छोड़ दिया हैं। मैं उसे कहूँगी कि  देख अब मेरे अपने वापस आ गये है। अब मेरे आंगन मे भी तरह तरह के फूल खिल खिलाकर हँँसेगे मेरे आंगन में भी बसंत आयेगा चिड़िया चू-चू करेगी मेरे सूने जीवन में भी एक बार मौयार आयेगी।गढ़वाली भाषा की सोशियल मिडिया पर वारयल कविता आपने भी जरुर शेयर की होगी।
मुझे उसकी खैरी सुनकर बड़ा दुःख हुआ और अब मै फुट-फुट कर रोने लगा, मैने उससे वादा किया कि मैं उसे अकेले छोड़कर कभी नही जाऊंगा। और कल ही हल बैल लेकर उसे जोतने आऊंगा। उसने मुझे गले लगाया मैने भी उससे जाने की अनुमति माँगी। और वहा से मै सीधे अपने घर गया तथा इस सारी कहानी को अपने परिवार को बताया, मैने अपने परिवार के लोगो से कहा की अगर आप लोग वापस परदेश जाना चहाते हो तो जा सकते हो। मैं तुम्हे नही रोकूगा पर अब मैं अपने मुल्क और अपने खेत खल्यानो  को छोड़ कर नही जाऊंगा। मेरे बेटो को मेरे दिल की बात का पता चल गया की पापा जी के मन में पित्र भूमि का प्यार जाग गया है। इस लिए उन्होने मुझे वचन दिया कि हम अपने बच्चो को पढ़ा लिखाकर वापस अपनी पित्र भूमि में आ जायेगे, और अपने बच्चो से भी यही वचन माँगके कि वह भी अपने बच्चो को पढ़ा लिखाकर वापस अपनी पित्र भूमि में आये और अपनी अन्तिम सांसे  देब भूमि में त्याग कर अपने पित्रो के साथ मिल जाये। उनकी इस तरह की बात को सूनकर मेरे दिल को बहुत ही अच्छा सकुन मिला और एक बार फिर मेरी बांझी पुंगड़ी चलदी हो गयी। इस लिंक पर देखिये। जगा रे उत्तराखंडवास्यूं जगा रे जाग्रति गीत क्या हलात हो गयी है रमणीय प्रदेश की जरुर सुने।
अगर और लोग भी इसी तरह इस क्रम को पीढी दर पीढ़ी आगे बढाये तो शायद दूसरी बाँझी पुगड़ी को न रोना पड़े । जैसे मेरी बाँझी पुंगड़ी रोई। और फिर यही इस नर लोक की असल जिन्दगी हैं। जिसे जीने में आदमी को अपार सकून मिलता हैं। भले ही इसमें परिश्रम ज्यादा करना पड़ता हैं। और इसी लिए भगवान ने हमे इस दुनिया में भेजा हैं। मना रोजी रोटी इन्सान की जरुरत है लेकिन अगर आदमी इस रोजी रोटी को कमाने के चक्कर में हमेशा के लिए अपने मुल्क को छोड़ दे तो आने वाले समय में इस मुल्क का क्या हाल होगा सोचने वाली बात हैं।    


2 comments:

  1. क्या साब रुलाओगे क्या ? तू जरूर लौट के आयेगा। मुझे उसकी बात सुनकर अपने बचपन के दिन याद आने लगे जो बचपन मैने उसके आंगन में गुजारा था धीरे-धीरे मेरी जिन्दगी के वह पन्ने खुलने लगे जो पन्ने मेरी दौड़ती-भागती जिन्दगी में ना जाने कौन से कोने में खो गये थे,

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