Friday 11 November 2016

मैं दिल्ली हूँ,, आजादी के बाद दिल्ली हूँ Garhwali Poem by Pardeep Rawat


मैं दिल्ली हूँ,,
आजादी के बाद दिल्ली हूँ।

अपने सफर की कहानी आज तुम्हें बताऊँगी,
कभी खुशी कभी गम के पल तुम्हें सुनाऊँगी।।
आजादी के बाद का पहले दशक का दौर था,
चारों तरफ खुशी का महौल था।
मुझे सजाने और सवारने की नीतियाँ बनायी जा रही थी,
मै हिन्दुस्तान का दिल बनूँ ऐसी योजनाये चलायी जा रही थी।
इस लिंक पर देखिये गढ़वाली सुपर हिट फिल्म भाग-जोग
नेहरू, पटेल, शात्री जी के हाथों में मेरी कमान थी,
मुझे बिकास के पथ पर दौड़ायेगें ये उनकी जबान थी।
राजनेता बदले तो राजनीति बदलने लगी,
अब मेरी किसमत इन्द्रा के हाथों से चलने लगी।

अभी मैने बिकास का चंद फासला ही तय किया था,
कि नेताओं पर सता का नशा छा गया।
मेरे हितों को छोड़कर कुर्सी का मोह आ गया।
इस लिंक पर देखिये गढ़वाली सुपर हिट फिल्म भाग-जोग पार्ट -II
कैसे भूल जांऊँ उस दौर को,
जब मुझे इमेरजन्सी में कैद किया गया था।
कैसे भूल जाऊँ उस दौर को,
जब नागरिक समाज के बोलनें पर प्रतिबंध लगा दिया था।

लोकतंत्र अधमरा लहुलुहान पड़ा था इन्द्रा के हाथो से,
मेरा दमन भीग रहा था संविधान के आँसूओं से।
जेपी के अन्दोलन से मेरी धरती पर नई क्रांति आयी थी,
सिहासन खाली करों, जनता आती है। के नारों से नयी जागृती आयी थी।
जनता जाग्रति ही मुझे कुछ दिए थे ख़ुशी के पल,
उज्जवल नजर आ रहा था मुझे भारत का कल।।
इस लिंक पर सुनिए -किस दौर से गुजर रहा है अपना उत्तराखंड सुनिए उत्तराखंडी जाग्रति गीत
अभी मै थोड़ी सम्भली थी कि,
चौरासी के दंगों से मैं दहल गयी,
देखते-देखते हिंसा की आग चारों तरफ फैल गयी।
कई लोगों का सिर इस दौर में कलम किया गया,
मेरे आँचल पर कभी न मिटने वाला दाग दिया गया।
टूटना मेरे नसीब में लिखा है,
टूटकर संभलना मैंने भी सीखा है।।

सन दो हजार में पहली बार मैने बम धमाकों को झेला था,
मुम्बई के बाद दहशदगर्दो ने दिल्ली में मौत का खेल खेला था।
इसके बाद तो यह सिलसिला बदस्तूर यूँ ही चलता रहा,
किसी न किसी का अपना-पराया इन धमाकों मे मरता रहा।
आखिर कब तक मै इस दर्द को सहती रहूंगी,
तुमसे अपने दर्द की दास्ताँ को यूँ कहती रहूंगी।।
इस लिंक पर देखिये एक सुंदर गढ़वाली खुदेड गीत। आपको अपनों की याद आ जाएगी
ब्लू लाइन के नीचे मरती जिन्दगियों को में मैने देखा है,
फुटपात पर पलती जिंदगियों को भी मैने देखा है।
सड़क के चौराहे पर ढलते बुढापे को मैने देखा है,
कचरे और पलास्टिक से पेट भरते गाय को मैने देखा है।
तन्दूर में इन्सानियत को भी जलते हुऐ मैने देखा है।
यमुना को मल के नालों से गंदा करते हुऐ मैने देखा है,

मेरी लज्जो डरने लगी है अपनों के बीच मे,
कहाँ मै उसे छुपाऊँ,
अपना दर्द मुझसे वह कहती है,
कैसे मै उसे बचाऊँ।
वह सिसकती है, मैं बेचैन हो जाती हूँ।


मुझसे अपने ही लोग क्यो इतना नफरत करते हैं,
मेरे सुंदर आँचल को क्यों गंदा करते है।
तुम तो आओगे जाओगे,
मुझे तो यही रहना हैं,
ऐसे कई घावो को सदियों तक सहना हैं।

मुझसे तुम आज एक वादा कर लो,
कम नही ज्यादा कर लो।
तुम सुधर जाओगे तो सारी दिल्ली सुधर जायेगी,
देखते ही देखते सारी दिल्ली बदल जायेगी।
मैं दिल्ली हूँ,,
आजादी के बाद दिल्ली हूँ।

3 comments:

  1. सभी जिम्मेदार है। .
    बीच-बीच में अपनी गढ़वाली फिल्म और गानों का लिंक प्रस्तुतीकरण अच्छा लगा

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  2. धन्यवाद दीदी

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  3. धन्यवाद दीदी

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