गढ़वाली में पहली बार कन्या भ्रूण हत्या पर गीत
Wednesday, 28 September 2016
Monday, 26 September 2016
Sunday, 25 September 2016
अंगुळी मा लगि चुनाव कि स्या; Garhwali poem
अंगुळी मा लगि चुनाव कि स्या;
भले मिटग्ये होलि नेता जी हमारि।
पर तुमारि करि बादों कि कुटेरी अबी बी ताजी च।
भले मिटग्ये होलि नेता जी हमारि।
पर तुमारि करि बादों कि कुटेरी अबी बी ताजी च।
रात बिरात भरssss
हमते बिजाळी देंदी तुमारि वा वाच;
अबी वी दिसा मा क्वी काम नि वाहि
अबि वाँ पर क्वी चरचा नि काई।
न अब तुमारा दरसन होणा छन;
बस दीवाल पर पिछला चुनाव का पोस्टर लग्या छन।
यू पोस्टर तुमारा वादों की याद दिलंदन।
हमते बिजाळी देंदी तुमारि वा वाच;
अबी वी दिसा मा क्वी काम नि वाहि
अबि वाँ पर क्वी चरचा नि काई।
न अब तुमारा दरसन होणा छन;
बस दीवाल पर पिछला चुनाव का पोस्टर लग्या छन।
यू पोस्टर तुमारा वादों की याद दिलंदन।
भर्तुली दादी ते तुम बोली ग्या छा या बात;
मि जीत जौलू त पेन्सन आली तेरा हाथ।
पेंसने मुख्जत्रा देखणू भर्तुली दादी मोनि निच;
बस बड़डाट लग्युच
पेन्सन भूकी पे देंदू तबी प्राण छोड़लू।
एकी ते भर्तुली दादी ते मुक्ति दे द्य्वा।
अपडू कारयू वादा निभ्य द्यावा
मि जीत जौलू त पेन्सन आली तेरा हाथ।
पेंसने मुख्जत्रा देखणू भर्तुली दादी मोनि निच;
बस बड़डाट लग्युच
पेन्सन भूकी पे देंदू तबी प्राण छोड़लू।
एकी ते भर्तुली दादी ते मुक्ति दे द्य्वा।
अपडू कारयू वादा निभ्य द्यावा
तुमारु घोसणा पत्र; चैतू ददों दीवाल पर टान्गुच;
तुमारु करयु वादा पुरू होलू सारा लग्युच
काला अंगारां तैं घोषणा पर लकीर मरिच
मेरा नोना ते नोकरी मिलेली; आस धरिच
चैतू दादा नोना ते क्वी अपड़ी नोनी नई देणू
की नोनू घार माँ हि रैंदु
नाती मुखजतरा देख्णु कू तैका नोनो ब्यो कैर द्यावा
तैकि नोने बेरोजगारी पेंसन लगे दयवा
Friday, 23 September 2016
Thursday, 22 September 2016
रौतूं का घारमा तीनि भै जन्म लेकी एैन Garhwali Poem
रौतूं का घारमा तीनि भै जन्म लेकी एैन
जल थल नभ सेना मा तीनि भर्ती व्हेेन
पहला भैन बिछाई सागर कू ढिसाणू
दूजा भैजीं लगाई बारूद कू सिराणू
तीजा भैजी ओढ़ी सैरू आगास
अटकेली खिलंादु छो वु अपड़ा जहाज
देब भूमि मा स्यू जन्म लेकी एैन
जल थल नभ सेना मा तीनि भर्ती व्हेेन
मैना चार बटि लगी छै सीमा पर घनाघोर लड़ाई
अपड़ी फौज लेकी स्यून बैरियू पर कैरि चढ़ाई
बिधातन तीन्यू भायूकू भाग्य एक ही कागज में लेखी
मातृ भूमि की रक्षा कैई स्यून अपड़ी ज्यान देकी
बीरू की धरती मा जन्म लेकी स्यू ऐन
जल थल नभ सेना मा तीनि भर्ती व्हेेन
रक्षा बन्धन कू छौ वे दिन त्यौहार
शहीद बणी की एैन जैदिन स्यू घार
पिटै लगाणू कू पहला भैजि कू माथा नि बच्यू राई
राखी बन्धणू दूजा तीजा भैजी की कलाई नि छाई
हिंवाळी काँट्यू मा स्यू जन्म लेकी एैन
जल थल नभ सेना मा स्यू भर्ती व्हेेन
खुशी का आँसू छलकणा छा पट्रटी अर गौैह््का
अमर व्हेन जू आज वु होला नौना कै मोह्का
सलामी देणी छै स्यू तै तीनि सेनो की तोप
जुग-जुग तक याद राली तै माँ की कोख
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Tuesday, 20 September 2016
ऐसी थी मेरी देवप्रयाग यात्रा, कभी नहीं भूलने जैसा है उसका रोमांच!
इस लिंक पर पढ़िए मेरी देवप्रयाग यात्रा
ऐसी थी मेरी देवप्रयाग यात्रा, कभी नहीं भूलने जैसा है उसका रोमांच! 12 साल बाद लगने वाले मौरी मेले में मुझे पांडवों के साथ देवप्रयाग गंगा स्नान पर जाने का मौका मिला। मैंने सात दिसंबर 2013 को मेले के उद्घाटन के दिन ही तय कर लिया था कि जब पांच पांडव 13 अप्रैल 2014 को बिखोती में गंगा स्नान करने देवप्रयाग संगम पर जाएंगे तो मैं भी पैदल यात्रा करके उनके साथ स्नान करने जाऊंगा। दिसंबर 2013 के बाद वक्त बड़ी तेजी से बीतता हुआ निकला। अप्रैल 2014 आते ही मैंने तय किया कि मैं 11 तारीख को दिल्ली से पौड़ी गढ़वाल में अपने गांव तमलाग रवाना होऊंगा। । 11 तारीख को मैं कश्मीरी गेट आईएसबीटी से रोडवेज की बस पकड़कर चल पड़ा। हालांकि बस अड्डे से बस मिलने में थोड़ी परेशानी जरूर हुई क्योंकि शादियों का वक्त चल रहा था और काफी लोग पहाड़ जाने के लिए बस अड्डे पहुंचे थे। खैर पहाड़ जाने की खुशी में इस बात का थोड़ा सा भी मलाल नहीं था।
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ऐसी थी मेरी देवप्रयाग यात्रा, कभी नहीं भूलने जैसा है उसका रोमांच!
464784.htmlhttp://khabar.ibnlive.com/blogs/pradeep/devprayag-yatra-464784.html
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12 साल बाद लगने वाले मौरी मेले में मुझे पांडवों के साथ देवप्रयाग गंगा स्नान पर जाने का मौका मिला। मैंने सात दिसंबर 2013 को मेले के उद्घाटन के दिन ही तय कर लिया था कि जब पांच पांडव 13 अप्रैल 2014 को बिखोती में गंगा स्नान करने देवप्रयाग संगम पर जाएंगे तो मैं भी पैदल यात्रा करके उनके साथ स्नान करने जाऊंगा। दिसंबर 2013 के बाद वक्त बड़ी तेजी से बीतता हुआ निकला। अप्रैल 2014 आते ही मैंने तय किया कि मैं 11 तारीख को दिल्ली से पौड़ी गढ़वाल में अपने गांव तमलाग रवाना होऊंगा। । 11 तारीख को मैं कश्मीरी गेट आईएसबीटी से रोडवेज की बस पकड़कर चल पड़ा। हालांकि बस अड्डे से बस मिलने में थोड़ी परेशानी जरूर हुई क्योंकि शादियों का वक्त चल रहा था और काफी लोग पहाड़ जाने के लिए बस अड्डे पहुंचे थे। खैर पहाड़ जाने की खुशी में इस बात का थोड़ा सा भी मलाल नहीं था।
दूसरे दिन सुबह 9-10 बजे मैं तमलाग पहुंच गया। थोड़ा आराम करने के बाद जब दोपहर में पांडव नृत्य होने लगा तो मैं भी वहां नृत्य करने लगा। लोगों में बड़ा उत्साह था बिखोती नहाने के लिए। रात को पांडव नृत्य बंद होने के बाद मैं बड़ी बेसब्री से अगले दिन का इंतजार करने लगा। अगले दिन सुबह मैं सबसे पहले तैयार होकर मंडाण स्थल पर आ गया। धीरे-धीरे चांदणा चौक में लोग इकट्ठे होते गए और एक कारवां बन गया। पांडव नृत्य करने के बाद नाज-निशानों (धनुष, बाण, बरछे) के साथ शंख ध्वनि करते हुए ढोल वादक को कंधे पर उठाकर पांच पांडव चल पड़े देवप्रयाग स्नान के लिए। एक लंबी सी कतार तमलाग गांव की सीमा को पार करने लगी, क्या बूढ़े, क्या बच्चे, और क्या जवान, सारे लोगों में पैदल यात्रा करने का उत्साह था।
Sunday, 18 September 2016
क्यों हमारे हाथों को बांधा है हमारे हुक्मरानों ने ।
क्यों हमारे हाथों को बांधा है हमारे हुक्मरानों ने ।
क्यों हमारी शमसीरों पर जंग लगाया है हमारी सरकारों ने ।
वह हमरी माटी में घुसकर कलम कर गया हमारा सर ।
हम क्यों मेहमान नवाजी करते रहे दुशमन को बुलाकर अपने घर ।।
अपनी तलवारों को कब तक हम म्यान छुपाकर रहेंगे ।
कब तक बेगुनाह हिन्द के सिपाई यूँ अपना लहू बहेंगे ।
वह हमरी माटी में घुसकर कलम कर गया हमारा सर ।
हम क्यों मेहमान नवाजी करते रहे दुशमन को बुलाकर अपने घर ।।
अपनी तलवारों को कब तक हम म्यान छुपाकर रहेंगे ।
कब तक बेगुनाह हिन्द के सिपाई यूँ अपना लहू बहेंगे ।
न हमने किसी की गज भर जमीं छीनी है न बे बजहे किसी का लहू बहाया है ।
दुशमन ने हमें कमजोर समझ लिया,क्यों हमारी ख़ामोशी का फायदा उठाया है ।
क्यों हमारे हाथों को बांधा है हमारे हुक्मरानों ने ।
क्यों हमारी शमसिरों पर जंग लगाया है हमारी सरकारों ने ।
शांति शांति कब तक हम अपनों की कुर्वानी दे कर शांति फैलायेंगे ।
एक बार दो हुक्म जो बिना रुके लाहौर में जाकर तिरंगा लहराहेंगे ।
पाँव की जूती समान दुशमन को हमें उसकी औकात दिखानी होगी ।
देकर करारा जवाब हमें उसे उसकी अक्ल टिकाने लगनी होगी ।
क्यों हमारे हाथों को बांधा है हमारे हुक्मरानों ने ।
क्यों हमारी शमसीरों पर जंग लगाया है हमारी सरकारों ने ।
बीस सैनिको को मारकर उसने 125 करोड़ हिन्दुस्तानियों को लालकारा है ।
एक बार फिर आस्तीन के साँप ने अपना नापाक फन फ़नकारा है ।
कृष्ण की तरह फिर हमें इसके सर पर तांडव करना होगा ।
इसके बिल में घुसकर उसमें बज्र का बारूद भरना होगा
क्यों हमारे हाथों को बांधा है हमारे हुक्मरानों ने ।
क्यों हमारी शमसीरों पर जंग लगाया है हमारी सरकारों ने ।
दुशमन ने हमें कमजोर समझ लिया,क्यों हमारी ख़ामोशी का फायदा उठाया है ।
क्यों हमारे हाथों को बांधा है हमारे हुक्मरानों ने ।
क्यों हमारी शमसिरों पर जंग लगाया है हमारी सरकारों ने ।
शांति शांति कब तक हम अपनों की कुर्वानी दे कर शांति फैलायेंगे ।
एक बार दो हुक्म जो बिना रुके लाहौर में जाकर तिरंगा लहराहेंगे ।
पाँव की जूती समान दुशमन को हमें उसकी औकात दिखानी होगी ।
देकर करारा जवाब हमें उसे उसकी अक्ल टिकाने लगनी होगी ।
क्यों हमारे हाथों को बांधा है हमारे हुक्मरानों ने ।
क्यों हमारी शमसीरों पर जंग लगाया है हमारी सरकारों ने ।
बीस सैनिको को मारकर उसने 125 करोड़ हिन्दुस्तानियों को लालकारा है ।
एक बार फिर आस्तीन के साँप ने अपना नापाक फन फ़नकारा है ।
कृष्ण की तरह फिर हमें इसके सर पर तांडव करना होगा ।
इसके बिल में घुसकर उसमें बज्र का बारूद भरना होगा
क्यों हमारे हाथों को बांधा है हमारे हुक्मरानों ने ।
क्यों हमारी शमसीरों पर जंग लगाया है हमारी सरकारों ने ।
प्रदीप सिंह रावत "खुदेड़"
Wednesday, 14 September 2016
हिन्दी तुम तो जननी हो इस राष्ट्र की
हिन्दी तुम तो जननी हो इस राष्ट्र की
तुम तो संस्कृति में घुली हो हर प्रांत की
तुम तो बसती हो इन घटाओं मे,
तुम तो रचती हो चारों दिशाओं मे।
तेरे वर्णों में तो माँ की ममता है,
तुम से ही तो इस देश की एकता है।
तुम अखंड हिमलाय सी दृढ़ हा,े
तुम तो माँ गंगा सी पवित्र हो।
पक्षियों की चहचाहट मे तुम हो,
मेघों की कडकडाट मे भी तुम हो।
रवि की किरणों जैसी तेरी रेखायें है,
तारो की झिलमिल सी तेरी मात्रऐं है।
पवन की सरसराहट में हो सुगंध की तरह,
सागर की लहरो में हो उमंग की तरह।
तुम तो सौन्र्दय हो देश के संविधान का,
तुम प्रतीक हो आजादी के बलिदान का।
तुम ने इस राष्ट्र को पे्रम के धागे मे पिरोया है,
तेरे लिए सैनिक सीमा पर कफन ओढ़ कर सोया है।
तेरे शब्दों का तो सागर सा गहरा भाव है,
तेरे अक्षरों की आत्मा में बसता हर गाँव हैै।
तुम्ही इस अखंड राष्ट्र की लाज हो,
तुम्ही इस भारतवर्ष की आवाज हो।
तुम तो खेलती हो तोतले बचपन में,
तुम सुगान्धित पुष्प हो भाषाओं के उपवन मेें।
लोरी में तुम्ही हो, छंदों मेे भी तुम्ही तो हो,
रागनियों मे तुम्ही हो, स्वरों मे भी तुम्ही तो हो,
नृत्य में भी तू कृत्य में भी तू है,
तुम तो रेल की छुक-छुक में हो,
हिन्दी तुम तो जननी हो इस राष्ट्र की,
तुम तो संस्कृति में घुली हो हर प्रांत की।
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