Tuesday 20 September 2016

ऐसी थी मेरी देवप्रयाग यात्रा, कभी नहीं भूलने जैसा है उसका रोमांच!

464784.htmlhttp://khabar.ibnlive.com/blogs/pradeep/devprayag-yatra-464784.html

12 साल बाद लगने वाले मौरी मेले में मुझे पांडवों के साथ देवप्रयाग गंगा स्नान पर जाने का मौका मिला। मैंने सात दिसंबर 2013 को मेले के उद्घाटन के दिन ही तय कर लिया था कि जब पांच पांडव 13 अप्रैल 2014 को बिखोती में गंगा स्नान करने देवप्रयाग संगम पर जाएंगे तो मैं भी पैदल यात्रा करके उनके साथ स्नान करने जाऊंगा। दिसंबर 2013 के बाद वक्त बड़ी तेजी से बीतता हुआ निकला। अप्रैल 2014 आते ही मैंने तय किया कि मैं 11 तारीख को दिल्ली से पौड़ी गढ़वाल में अपने गांव तमलाग रवाना होऊंगा। । 11 तारीख को मैं कश्मीरी गेट आईएसबीटी से रोडवेज की बस पकड़कर चल पड़ा। हालांकि बस अड्डे से बस मिलने में थोड़ी परेशानी जरूर हुई क्योंकि शादियों का वक्त चल रहा था और काफी लोग पहाड़ जाने के लिए बस अड्डे पहुंचे थे। खैर पहाड़ जाने की खुशी में इस बात का थोड़ा सा भी मलाल नहीं था।
दूसरे दिन सुबह 9-10 बजे मैं तमलाग पहुंच गया। थोड़ा आराम करने के बाद जब दोपहर में पांडव नृत्य होने लगा तो मैं भी वहां नृत्य करने लगा।  लोगों में बड़ा उत्साह था बिखोती नहाने के लिए। रात को पांडव नृत्य बंद होने के बाद मैं बड़ी बेसब्री से अगले दिन का इंतजार करने लगा। अगले दिन सुबह मैं सबसे पहले तैयार होकर मंडाण स्थल पर आ गया। धीरे-धीरे चांदणा चौक में लोग इकट्ठे होते  गए और एक कारवां बन गया। पांडव नृत्य करने के बाद नाज-निशानों (धनुष, बाण, बरछे) के साथ शंख ध्वनि करते हुए ढोल वादक को कंधे पर उठाकर पांच पांडव चल पड़े देवप्रयाग स्नान के लिए। एक लंबी सी कतार तमलाग गांव की सीमा को पार करने लगी, क्या बूढ़े, क्या बच्चे, और क्या जवान, सारे लोगों में पैदल यात्रा करने का उत्साह था।

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