क्यों हमारे हाथों को बांधा है हमारे हुक्मरानों ने ।
क्यों हमारी शमसीरों पर जंग लगाया है हमारी सरकारों ने ।
वह हमरी माटी में घुसकर कलम कर गया हमारा सर ।
हम क्यों मेहमान नवाजी करते रहे दुशमन को बुलाकर अपने घर ।।
अपनी तलवारों को कब तक हम म्यान छुपाकर रहेंगे ।
कब तक बेगुनाह हिन्द के सिपाई यूँ अपना लहू बहेंगे ।
वह हमरी माटी में घुसकर कलम कर गया हमारा सर ।
हम क्यों मेहमान नवाजी करते रहे दुशमन को बुलाकर अपने घर ।।
अपनी तलवारों को कब तक हम म्यान छुपाकर रहेंगे ।
कब तक बेगुनाह हिन्द के सिपाई यूँ अपना लहू बहेंगे ।
न हमने किसी की गज भर जमीं छीनी है न बे बजहे किसी का लहू बहाया है ।
दुशमन ने हमें कमजोर समझ लिया,क्यों हमारी ख़ामोशी का फायदा उठाया है ।
क्यों हमारे हाथों को बांधा है हमारे हुक्मरानों ने ।
क्यों हमारी शमसिरों पर जंग लगाया है हमारी सरकारों ने ।
शांति शांति कब तक हम अपनों की कुर्वानी दे कर शांति फैलायेंगे ।
एक बार दो हुक्म जो बिना रुके लाहौर में जाकर तिरंगा लहराहेंगे ।
पाँव की जूती समान दुशमन को हमें उसकी औकात दिखानी होगी ।
देकर करारा जवाब हमें उसे उसकी अक्ल टिकाने लगनी होगी ।
क्यों हमारे हाथों को बांधा है हमारे हुक्मरानों ने ।
क्यों हमारी शमसीरों पर जंग लगाया है हमारी सरकारों ने ।
बीस सैनिको को मारकर उसने 125 करोड़ हिन्दुस्तानियों को लालकारा है ।
एक बार फिर आस्तीन के साँप ने अपना नापाक फन फ़नकारा है ।
कृष्ण की तरह फिर हमें इसके सर पर तांडव करना होगा ।
इसके बिल में घुसकर उसमें बज्र का बारूद भरना होगा
क्यों हमारे हाथों को बांधा है हमारे हुक्मरानों ने ।
क्यों हमारी शमसीरों पर जंग लगाया है हमारी सरकारों ने ।
दुशमन ने हमें कमजोर समझ लिया,क्यों हमारी ख़ामोशी का फायदा उठाया है ।
क्यों हमारे हाथों को बांधा है हमारे हुक्मरानों ने ।
क्यों हमारी शमसिरों पर जंग लगाया है हमारी सरकारों ने ।
शांति शांति कब तक हम अपनों की कुर्वानी दे कर शांति फैलायेंगे ।
एक बार दो हुक्म जो बिना रुके लाहौर में जाकर तिरंगा लहराहेंगे ।
पाँव की जूती समान दुशमन को हमें उसकी औकात दिखानी होगी ।
देकर करारा जवाब हमें उसे उसकी अक्ल टिकाने लगनी होगी ।
क्यों हमारे हाथों को बांधा है हमारे हुक्मरानों ने ।
क्यों हमारी शमसीरों पर जंग लगाया है हमारी सरकारों ने ।
बीस सैनिको को मारकर उसने 125 करोड़ हिन्दुस्तानियों को लालकारा है ।
एक बार फिर आस्तीन के साँप ने अपना नापाक फन फ़नकारा है ।
कृष्ण की तरह फिर हमें इसके सर पर तांडव करना होगा ।
इसके बिल में घुसकर उसमें बज्र का बारूद भरना होगा
क्यों हमारे हाथों को बांधा है हमारे हुक्मरानों ने ।
क्यों हमारी शमसीरों पर जंग लगाया है हमारी सरकारों ने ।
प्रदीप सिंह रावत "खुदेड़"
No comments:
Post a Comment