Wednesday 14 September 2016

हिन्दी तुम तो जननी हो इस राष्ट्र की

























हिन्दी तुम तो जननी हो इस राष्ट्र की
तुम तो संस्कृति में घुली हो हर प्रांत की

तुम तो बसती हो इन घटाओं मे,
तुम तो रचती हो चारों दिशाओं मे।
तेरे वर्णों में तो माँ की ममता है,
तुम से ही तो इस देश की एकता है।

तुम अखंड हिमलाय सी दृढ़ हा,े
तुम तो माँ गंगा सी पवित्र हो।
पक्षियों की चहचाहट मे तुम हो,
मेघों की कडकडाट मे भी तुम हो।

रवि की किरणों जैसी तेरी रेखायें है,
तारो की झिलमिल सी तेरी मात्रऐं है।
पवन की सरसराहट में हो सुगंध की तरह,
सागर की लहरो में हो उमंग की तरह।

तुम तो सौन्र्दय हो देश के संविधान का,
तुम प्रतीक हो आजादी के बलिदान का।
तुम ने इस राष्ट्र को पे्रम के धागे मे पिरोया है,
तेरे लिए सैनिक सीमा पर कफन ओढ़ कर सोया है।

तेरे शब्दों का तो सागर सा गहरा भाव है,
तेरे अक्षरों की आत्मा में बसता हर गाँव हैै।
तुम्ही इस अखंड राष्ट्र की लाज हो,
तुम्ही इस भारतवर्ष की आवाज हो।

तुम तो खेलती हो तोतले बचपन में,
तुम सुगान्धित पुष्प हो भाषाओं के उपवन मेें।
लोरी में तुम्ही हो, छंदों मेे भी तुम्ही तो हो,
रागनियों मे तुम्ही हो, स्वरों मे भी तुम्ही तो हो,
नृत्य में भी तू कृत्य में भी तू है,
तुम तो रेल की छुक-छुक में हो,
हिन्दी तुम तो जननी हो इस राष्ट्र की,
तुम तो संस्कृति में घुली हो हर प्रांत की।

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