Friday 25 August 2017

मै उस पहाड़ का एक भागा हुआ सिपाई हूँ , By Pradeep Singh Rawat Khuded


मै उस पहाड़ का एक भागा हुआ सिपाई हूँ ,
मै उस पहाड़ का एक हारा हुआ सिपाई हूँ ।

मै उसकी बिषम प्रस्थिति से लड़ न सका,
मै उसकी कठोर मेहनतकश ज़िन्दगी में ढ़ल न सका।
मुझे जो आसान रास्ता दिखा मैंने उसे ही स्वीकार किया,
मैंने पहाड़ से ज्यादा अपने हितों से ही प्यार किया।
मै उस पहाड़ का एक भागा हुआ सिपाई हूँ ,
मै उस पहाड़ का एक हारा हुआ सिपाई हूँ ।

मैंने एक बार भी नहीं सोचा,
अगर पहाड़ के हित के लिए लड़ता 
तो मेरी आने वाली पीढियाँ नहीं होती बेमुख,
उनकी राह के काँटों को मै चुन लेता 
तो कभी नहीं मिलता उन्हें कोई दुःख।
पर मैंने इस पहाड़ के हाल को कुछ 
सत्ता लोभी नेताओं के हवाले छोड़ दिया,
चल उठा मै थैला लेकर शहर की ओर 
अपनी जिम्मेदारी से मुख मोड़ दिया।

मैंने कभी वहाँ के संसाधनों का उपयोग करने का प्रयास नहीं किया,
मैंने कभी वहाँ के भटके युवाओं को सही मार्ग दर्शन नहीं दिया।
मैंने अपनी ही पीड़ा को पहाड़ में सर्वपरि माना ,
कभी वहाँ की माँ बेटियों के दुःख को नहीं पहचाना।
मै उस पहाड़ का एक भागा हुआ सिपाई हूँ,
मै उस पहाड़ का एक हारा हुआ सिपाई हूँ। 

क्या हुआ अगर मेरे सपने रह गए थे  अधूरे,
मेरे आने वाले दोस्तों के सपने तो होते पूरे।
मुझे वहाँ के बिकास के लिए अपनी जवानी खपानी चाहिए थी,
लोगो में उनके  अधिकारों के प्रति एक क्रांति जगानी चाहिए थी।
मै उस पहाड़ का एक भागा हुआ सिपाई हूँ,
मै उस पहाड़ का एक हारा हुआ सिपाई हूँ।


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