Wednesday 16 August 2017

सत्य घटना पर आधारित - सोणी ताई की प्रसव पीड़ा भाग - तीन लेखक -देवेश रावत आदमी


जैसे कि मैने कल बताया था कि हम लोग छन्नि (गौशाला) में उत्सुकता से जाते है कि सोणी ताई को दो बच्चे हुए है और हम वहां पहुंचे ही थे कि वहाँ का मंजर देख के हमारे पैरों तले जमीन खिसक गई हम सन्न रहे गए । हम सब निशब्द हो गए थे। भुत की तरह पदान दादा जी खड़े थे। कुछ औरतें रो रही थी कुछ सनसनाहट कर रही थी ताई एक रस्सी वाली खटिया पर लेटी हुई थी। उन के पांव हम को छन्नि के बाहर से दिखाई दे रहे थे, उनकी खाट के बगल में छोटी से खटिया थी जिस पर दोनों बच्चे जिन्हें खाकी रंग के कपड़े पहनाये हुए थे। नर्स उन को गर्म पानी से धो रही थी, कोई किसी से कुछ नही बोल रहा था। माहौल बडा डरावना बिचित्र हो रखा था। हम गौशाला के बाहर से अंदर झाँक रहे थे। उनके गाय बच्छी, बैल, भैंस वहीं बाहर बंधी हुई थी। दरवाजे के ही दाहिन् ओर बने जवठ में एक चिमनी जल रही थी,बांयी ओर दरवाजे के एक घुगति (खुंटी) दीवार पर थी जिस में ताई जी के कपड़े टंगे हुए थे। हम उत्सुकता से अंदर झांक कर देख रहे थे। गौशाला का दरवाजा करीब 4 फिट रहा होगा। और गौशाला के अंदर की ऊँचाई 5 फिट कोई खिड़की नही को रोशनदान नही पर आज ये परिस्थिति का मारा गौशाला हम को जीवनदायनी सी लग रही थी। हम जैसे रजवाड़ों में खड़े थे हम को गोर्वांगित होने का शुभ अवसर जो मिलने वाला था पर अभी भी जान वहीं अटकी हुई थी जहां पिछली रात 5 बजे अटकी हुई थी।
इतने में डॉ गौशाला से बाहर आया और एक कपड़े से हाथ साफ़ करते हुए बोला.....
 
इन के साथ कौन है...? हम सब ने कांपते हुए लड़खड़ाती जुबान में बोला हम है। और झबरू ताऊ जी है जो कि अंदर ही है ताई जी के पास।

वह बोलें झबरू जी अब इस हालत में नही रहे कि कुछ समझ पाए।

मरीज इस दुनियां में न ही रहा उन्होंने दूसरा बच्चा पैदा होते ही दम तोड़ दिया। हम लोग दहाड़ के रोने लगे कोई इधर गिरा कोई उधर गिरा । दादा जी भी सिर पकड़ के रो रहे थे। सब बेसुध हो गए हमारे साथ एक मात्र महिला शीशिला भाभी थी जो सोणी ताई की सहेली भी थी वो पहले से ही बेहोशी की हालत में पड़ी हुई थी।
झबरू ताऊ को खोजा तो वह ताई का सिर मलास रहे थे (सहलाना) वह अभी भी ताई जी को ढांढस बंधा रहे थे कि सब ठीक हो जाएगा तो कुछ देर हिम्मत और रख।
सत्य घटना पर आधारित सोणी ताई की प्रसव पीड़ा भाग - 1 इस लिंक पर पढ़िए
ताऊ जी जैसे अब दूसरी दुनियाँ में थे वह समझना ही नही चाहते थे कि हुआ क्या है वह बस ताई के सिर को सहला रहे थे। हम अंदर गए तो ताऊ जी मेरे से बोले क्या हुआ बेटा सब कुछ ठीक है तू रो मत तुम लोगों ने बहुत मेहनत की है । भगवान तुम सब को लम्बी उम्र देगा तुम पर मुझे गर्व है तुम को मेरी और तुम्हारी ताई दोनों की उम्र लग जाये इस दुनियां में मैने कभी किसी का बुरा नही किया हमारा भी कोई बुरा नही चाहेगा।
सब मेरे हितैषी है पर तुम्हारी ताई बस एक बार आंखे खोल ले.......
ताऊ जी ताई को सुरु नाम से बुलाते थे उन लोगों ने कसम खाई थी कि पहला बेटा हो या बेटी नाम सुरेंद्र या सुनीता रखेगे जैसे सब लोग नव जीवन की आस लगा के भविष्य के सपने देखते है। भविष्य के ताने बाने बुनते है। ख़्वाबों की दुनिया सजाते है। सुखी नदी में भी नाव उतारते है। वैसे ही उन लोगों ने भी सोचा था। पर प्रकृति को उन की नियति को शायद ये मंजूर न था। साथ यहीं तक था ताई के पास । सांसे इतनी ही थी। ताई जैसे अपनी सांसे दोनों बच्चों को देकर चली गई थी ताऊ जी को वो दर्द दे गई जिस की उन्हों ने कल्पना भी नही की थी......
ताऊ जी बोल रहे थे सुरु देख दो बच्चे हो गए हमारे हम ने मांगा एक था पर बूंगी देवी ने हम को दो दे दिये। तुम बोलती थी मुझे लड़का चाहिए और में बोलता था लड़की देख सुरु तू शर्त जीत गई मै हार गया अब तो जो मांगेगी वह खरीद के दूंगा पर तू आंखे खोल सुरु !! आंखे खोल!! देख कितने लोग आए है तुझे देखने के लिए बहुत भीड़ हुई है इक्ट्ठा सुरु देख बाबा देख।.......
पर कुछ नही हुआ ताऊ जी की आंसुओं का ताई के बे-जान शरीर पर ताऊ लगभग पागल की स्थिति में पहुंच गए थे। ताऊ के चप्पल और लांठी तो रास्ते में ही छूट गए थे टोपी भी कहीं झाड़ियों में अटक गई थी सुलार (पजामा) कमर तक गीला था नीचे से पजामा फट भी चुका था। फ़्तगी और गमछा ताई के खून से तर था ताऊ को कुछ भी होश नही था।

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