Thursday 17 August 2017

भांग (कैनावीस साटाइवा) एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण डा0 राजेन्द्र डोभाल महानिदेशक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् उत्तराखण्ड।


कुछ समय पहले मेरे द्वारा यह वादा किया गया था कि भांग पर अपना वैज्ञानिक दृष्टिकोण आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा क्योंकि वर्तमान में उत्तराखण्ड सरकार द्वारा भांग की खेती को स्वीकार्य किया गया है लेकिन बहुतायत मंु हमारा समाज भांग की खेती को नशे के रूप में जानता है।
वस्तुतः दुनिया के करीब 170 देश इसकी खेती करते हैं एवं चीन, कनाडा एवं फ्रांस में इसकी खेती रेशे के लिये की जाती है। बाकी अन्य देशों के द्वारा इससे उत्पादित होने वाले लगभग 20,000 से अधिक उत्पादों को औद्योगिक रूप में तैयार किया जाता है।

चीन में यहाँ तक कि इससे बायोप्लास्टिक बनाया जा रहा है एवं आंकड़ों के अनुसार इससे High Value Health Product तैयार किया जाय तो इसके तेल की कीमत का रू0 20,000 से 25,000 अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में मिलने की संभावना है।

भांग का वैज्ञानिक नाम कैनावीस साटाइवा है तथा यह कैनावेसी कुल का पौंधा है। मुख्य रूप से भांग की दो प्रजातियां पायी जाती है कैनावीस इनडिका जो कि छोटी तथा गहरे हरें रंग का पौधा होता है तथा कैनावीस सटाइवा जो कि अत्याधिक मात्रा में पाया जाता है। उत्तराखण्ड राज्य में यह तराई भावर क्षेत्रों से लेकर उच्च हिमालयी क्षेत्रों तक प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण औषधीय पौंधा है, जिससे सम्पूर्ण विश्व में सबसे पुरानी फसल के रूप में जाना जाता है। भांग का सर्वाधिक उपयोग रेशे के रूप में चीन में किया जाता है तथा विश्व के अन्य देशों फ्रंास, यू0के0, कनाडा, रोमानिया, हंगरी, कोरिया तथा अन्य कई देशों में भांग का औद्योगिक उत्पादन किया जाता है। वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व में कनाडा के अन्तर्गत भांग का सर्वाधिक क्षेत्रफल तथा उत्पादन किया जाता है। विश्व बाजार में भांग से उत्पादित लगभग 20 हजार से अधिक उत्पाद औद्योगिक रूप से तैयार किये जाते हैं जैसेः- हिम्प मिल्क, हिम्प सीड प्रोटीन, फाईबर, जीयो टेक्सटाइल्स, बायोप्लास्टिक, एमीमल बेडींग, बायोफ्यूल, मेडिसीन, सौन्दर्य प्रशाधनों तथा भांग का तेल आदि किया जाता है। यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण औद्योगिक एवं औषधीय पौंधा है तथा सम्पूर्ण विश्व में सर्वाधिक बाजार मांग व उगाये जाने वाला एक मात्र फसल है। भांग के तेल का वैज्ञानिक अध्ययन तथा औषधीय एवं औद्योगिक गुणांे के आधार पर ही कई देशो मंे भांग की फसल के उत्पादन को मान्यता प्राप्त है।
भांग के तेल में लगभग 15 प्रकार के फैटीएसीड प्रचूर मात्रा में पाये जाते है तथा सम्पूर्ण बीज में 29.6 से 36.5 प्रतिषत तेल की मात्रा पाई जाती है। जिसमें उमेगा- 6 लेनोलिक एसीड सर्वाधिक (56.9) पाया जाता है तथा उमेगा-3 (20.4) प्रतिशत तथा उमेगा-9 (11.4) प्रतिशततक पाया जाता है, जिसमे उमेगा- 6, 3 एवं 9 के अलावा अन्य फैटीएसीड के साथ-साथ 20-25 प्रतिशत प्रोटीन, 20-30 प्रतिशत काबोहाइड्रेड, 25-25 प्रतिशत तेल तथा 10-15 अधुलनशील रेशा भी पाया जाता है। उक्त सभी आवश्यक तत्वों के विद्यमान होने के कारण भांग सम्पूर्ण पोषकता का पूरक भी माना जाता है। भांग के तेल की औषधीय एवं औद्योगिक मांग के कारण विश्व स्तर पर इसकी मांग लगातार बढ़ रही है।
उमेगा- 6, 3 एवं 9 के प्रचूर मात्रा में उपलब्ध होने के कारण इसका उपयोग हृदय सम्बधी बीमारी, दिमागी संतुलन, शारीरिक, विकास, ओस्टोपोरोसिस, पाचन क्रिया तथा उच्च रक्त चाप के निवारण के लिए प्रयोग किया जाता है। डाॅ0 ईडवर्ड की वर्ष 2015 की रिपोर्ट के अनुसार उमेगा- 6, 3 एवं 9 उपरोक्त सभी बीमारियों के निवारण के साथ-साथ मानव शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत बनाता है। चूंकि उमेगा- 6, 3 एवं 9 मानव शरीर में स्वतः नहीं बनते हैं जिससे भांग का तेल इसका एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक स्रोत है तथा मानव पोषण के लिए फिश आॅयल का भी उपयुक्त विकल्प माना जाता है। इसके तेल में विद्यमान 57 घटकांे में से 90.5 प्रतिशत घटकों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जा चुका है, जिनमें से मुख्य घटक E-Caryophyllene (19-6&26-1%)] Lemonene (4.1- 15.5 %)] Caryophyllene Oxide (2.0- 10.7 %)] E – Farnesene (4.8-8.5%)] Humulene (5.4-7.8%), Pinene (10.7%), Myrcene (0.8-6.0%) आदि पाये जाते हैं
उपरोक्त घटकों के अलावा विटामिन E – 90, गामा टोकोफेराल- 85, फासफोरस-1160, पोटैशियम – 859, मैग्नीशियम- 483, कैल्शियम – 145 मी0ग्रा0 प्रति 100 ग्राम भी पाया जाता है। विटामिन- D की प्रचूर मात्रा उपलब्ध होने के कारण भांग के तेल का उपयोग त्वचा रोग, शुगर, एक्जाइमा तथा अस्टोपोरोसिस आदि बीमारियों के उपचार हेतु भी प्रयोग किया जाता है। औषधीय उपयोग के साथ-साथ भांग के तेल का विभिन्न औद्योगिक उत्पादों जैसे:- शैम्पो, पेंट, साबुन, सौन्दर्य प्रसाधन, बाॅडीकेयर तथा विभिन्न जीवाणु नाशक त्पादों की निर्माण के लिए प्रयोग किया जाता है।

उपरोक्त सभी महत्वपूर्ण पोषक, औषधीय एवं औद्योगिक गुणों के कारण ही विश्व बाजार में भांग का उत्पादन तथा क्षेत्रफल लगातार बढ़ रहा है। चीन, कपास उत्पादन के बजाय भांग सेे रेशा उत्पादन पर जोर दे रहा है। अन्य देश यू0के0, कनाडा, रोमानिया, हंगरी, कोरिया, तथा आस्ट्रेलिया भी भांग के औद्योगिक उत्पादन को बढ़ावा दे रहा हैI वर्तमान में भांग आधारित 20 हजार से अधिक उत्पाद जिसमें टैक्सटाइल तथा बायोप्लास्टिक (Linoleum) का भी उत्पादन किया जा रहा है। वर्तमान मंे ैSynthetic प्लास्टिक के पर्यावरण पर हानिकारक दुष्प्रभावो को दृश्टिगत रखते हुए भांग से तैयार बायोप्लास्टिक के उत्पादन पर औद्योगिक रूप से जोर दिया जा रहा है जोकि विश्व बाजार में एक अत्यंत महत्वपूर्ण फसल के औद्योगिक उपभोग के लिए बेहतर विकल्प माना जा रहा है।

यू0एन0ओ0डी0सी0 रिपोर्ट के अनुसार जो कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर “Bulletin on Narcotics” जारी करती है, ने विश्व स्तर पर भांग उत्पादन, निर्यात आदि पर नजर रखती है के अनुसार वर्ष 2003 में 2,31,000 हैक्टेयर में भांग की खेती की जा रही थी जिसका 30 हजार टन उत्पादन था। यू0एन0ओ0डी0सी0 की वर्ष 2004 की रिपोर्ट के अनुसार विष्व के 176 देशो में भांग औद्योगिक उत्पादन किया जा रहा है तथा वर्ष 2002 – 2006 तक 122 देशो में भांग का उत्पादन रेजिंन के अलावा अन्य औद्योगिक उत्पादों के लिए किया जाता रहा है केवल 65 देशो में ही भांग का उत्पादन रेजिंन के लिए किया जाता रहा है। वर्श 2008 तक भांग उत्पादन हेतु कुल 6, 41, 800 हैक्टयर क्षेत्र अच्छादित रहा है। जो कि कुल 13, 300 से 66, 100 मैटिक टन उत्पादन तथा 2, 200 – 9, 900 मैट्रिक टन रेजिंन उत्पादन करता था। यू0एन0ओ0डी0सी0 की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2008 से विश्व स्तर पर भांग आधारित औद्योगिक उत्पादांे की बाजार मांग व उपयोगिता लगतार बढ़ने की वजह से अन्य कई देश अमेरिका, अफ्रीका, पश्चिमी यूरोप भी सम्मलित हो रहें हैं। एफ0ए0ओ0 की वर्ष 2007 की रिपोर्ट के अनुसार चीन विश्व स्तर पर भांग के तेल उत्पादन में अग्रणीय स्थान पर था। जबकि 1961-1975 तक टर्की विश्व स्तर पर भांग के तेल निर्यात में अग्रणीय स्थान रखता था। तत्पश्चात लेबनान 1977 – 1985 तक प्रमुख रहा है। चीन विश्व स्तर पर भांग के तेल के उत्पादन एवं निर्यात में 77 प्रतिशत 12, 200 मेट्रिक टन, 1986 में प्रमुख योगदान रहा है। सोेवियत संघ/रूस का वर्ष 2005 तक भांग के तेल का उत्पादन 10, 300 मैट्रिक टन तक पहुंचा चुका है। जबकि वर्ष 2007 में कनाडा द्वारा 306 मेट्रिक टन भांग के तेल का निर्यात किया गया है, जिसमें 90 प्रतिशत केवल संयुक्त राज्य अमेरिका में खाद्य पदार्थांे तथा औद्योगिक उपयोग हेतु किया गया है।

चूंकि उत्तराखण्ड प्रदेश में भांग तराई भावर से उच्च हिमालयी क्षेत्रों तक प्राकृतिक रूप से पाई जाती है तथा औषधीय एवं औद्योगिक उपयोगिता की वजह से इसका उत्पादन प्रदेश में बंजर भूमि तथा बेनाप भूमि का सदुपयोग कर औद्योगिक रूप से किया जा सकता है। साथ ही यह अत्यन्त सहिष्णु फसल होती है जिसमें विपरीत वातावरण में भी उत्पादन देने की क्षमता होती है तथा जंगली जानवरों, बंदरों एवं कीट व्याधि का प्रकोप भी नहीं पाया जाता है जिससे कम लागत में अधिक मुनाफा लिया जा सकता है। अगर उत्तराखण्ड में भांग की खेती एक कारगर नियंत्रण में की जाय जिससे इसका दुरूपयोग ना हो तो यह एक उपयोगी alternate approach होगी मानव-जंगली जानवरों का संघर्ष रोकने हेतु।


डा0 राजेन्द्र डोभाल
महानिदेशक
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद्
उत्तराखण्ड।

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