Thursday 10 August 2017

सत्य घटना - सोणी ताई की प्रसव पीड़ा - भाग दो by Devesh Rawat


पिछले भाग में मैने बताया था कि सोणी ताई को प्रसव पीड़ा ज्यादा होने के कारण वह बे-होश हो गई थी
अब आगे..............  
सभी लोग गौशाला की और भागते हुए जाते है गौशाला गाँव से थोड़ा बाहर थी। वहाँ पहुंचने में कुछ वक्त लग गया इतने में कुछ औरते जोर से आवाजे देने लग गई। झबरू ताऊ और अन्य लोग गौशाला में पहुंचे और स्थिति का जायजा लिया। तब तक शाम के 7:32 बज गये थे। हल्की हल्की बर्फ भी गिरने लगे गई थी। वैसे समय देखने के लिए घड़ी गाँव में दीना दिदी के पास ही हुआ करती थी। तो सारे गाँव को समय वही बताती थी । और कुछ लोग सूर्य की रोशनी और कुछ रात को चाँद देख के समय का मोटा- मोटा आंकलन कर देते थे। दीना दीदी को इस लिए घड़ी के साथ बुलाया था ताकि वह बच्चा पैदा होते ही समय बता सके और बच्चे की कुंडली ठीक से बन सके। कही बार घड़ी का सेल खत्म हो जाता था तो दो लोगों को गॉँव वालो ने अपने खर्चे पर दुगड्डा भेजते थे सेल लाने के लिए। वैसे इस क्षेत्र में गाड़ी की सुविधा नही थी तो दुगड्डा से पैदल 70 KM आना जाना पड़ता था। दो दिन में गाँव तक पहुँच ही जाते थे। इन लोगों को ढाँकर बोलते है।
नमक,भेली,तेल और अन्य रोज की जरूरत के सभी सामन 70 km का सफर तय कर के दुगड्डा से आता था।
ताऊ जी ने पदान जी को बोला काका आगे क्या करना है। ताऊ जी बड़ी चिंता में थी। आंखों में आँसू भरे हुए थे पर रोना नही आ रहा था। बेचैनी में अ-सुद् सी हालत थी। अपने मांथे पर फ़्टगी मार रहे थे कि कैसी किसमत फूटी मेरी। इस कड़ाके सर्दी की रात में ताऊ जी पसीने से सरावोर थे । आज गाँव में किसी के घर का चूल्हा नही जला था। सारा गाँव परेशान था।
इतने में दाई ने छन्नि के अंदर से भरे हुए कंठ से आवाज लगाई। झबरू जैसे भी कर पर इस छोरी को हॉस्पिटल पहुंचा ले जा। सब कुछ कर पर इस छोरी के प्राण बचा ले। पर कोई करे भी तो क्या करे । इलाके में कोई हॉस्पिटल नही था। बोलना आसान है पर उस से भी मुशकिल है ये सोचना कि किसी मरीज को प्राथमिक उपचार मिल सके।
इतने में मंगली दादी आई अपनी लांठी को टेकती हुई आयी। दादी के सफेद बाल झुकी हुई कमर। कमर पर सफेद सापा जो न जाने कब से धोया नही था। और कानों में आठ-आठ मुर्खिल, पैरों में पैडा,नाक में बुलाक, दादी ने जीवन भर चप्पल नही पहनी। दादी ने अपनी कमर पर बंधे कपड़े (पठुक) से एक सिक्का और कुछ चाँवल निकाले सिक्का एक आना का था। जो उस दौर में बहुत ज्यादा था। पर मरता क्या नही करता। दादी ने ताऊ को बोला बेटा मानेगा तो मै तेरी माँ के समान हूँ और आज पुकार अपनी कुलदेवी को, और बोल अगर आज मेरी सोणी को कुछ हुआ तो या तू नही, या मै नही। तेरी पूजा कभी नही करूंगा अगर तूने मुझे निराश किया तो। अब करें तो क्या करें । ताऊ जी ने वही किया जो दादी ने बोला। जीवन संगनी का सवाल जो था। ताऊ जी ने सिक्का और चाँवल अपने सिर के ऊपर घुमाए (परोखे) फिर दाई को बोला कि सोणी के सिर से पैसा (उच्यणु) घुमा दे। सारा कार्यक्रम विधिवत चल रहा था इतने में भुन्द्रा काकी को देवता आ गया, वह नाचने लगी चिल्लाने लगी, काकी नेअपने बाल खोल दिये, गाँव वालों ने भीड़ लगा दी लोग हाथ जोड़े खड़े हो गए । भगतू भाई, पीथा काकी, धुपणो के लिए करछी (डांडयों) खोज रहे थे । कोई घी, कोई खुणजु सभी में अफरा ताफरी मची हुयी थी। इतने में धूपण भी आ गया। गोंत अर गंगाजल का लोटा भी गया।
सभी ब्यवस्था होते ही दो चार अन्य देवी-देवता भी प्रकट को गए। मंगतू काका तो छूरी पकड़ के नाचते है। जब छन्नि (गौशाला) में छूरा नही मिला तो बैल का कीला ही उखाड़ दिया।
 
मंगतू काका ताऊ जी के सिर पर हाथ रख के बोले !! तेरी माँ ने मेरे लिये भेंट निकाला था कि बकरा मारूँगी, मारा नही । मै तेरा रास्ता रोक रहा हूँ । मै भैरव हूँ!! ताऊ जी बोले हे परमेश्वर जी !! जब माँ ही न रही तो मुझे क्या पता कि क्या माँगा था। ताऊ जी दोनों हाथों से धुपणु घुमाने लगे। इतनी देर में सुमा भाभी (बौ) ने किटगताल (चिल्लाना) मारी। उनकी आवाज ने सब के कानों को सुन्न कर दिया। आवाज इतनी बड़ी थी कि सोणी ताई बेहोशी से बाहर आ गई । तीन गाँव दूर तक आवाज गई थी। और अगल-बगल के गाँव के लोग भी लालटेन और रांका जला के आवाजें देने लग गए।
यही भाईचारा है पहाड़ों में कि तू दुखी तो सब दुखी मै सुखी तो जग सुखी। कुछ बगल के गाँव से पांच सात उजाले हमारे गाँव की ओर बढ़ने लगे गए थे । जोर-जोर से आवाजें दे रहे थे वह लोग।

सोणी ताई ने अब कुछ हरकत की अपनी आंखों से ही कहा हो जैसे मुझे न बचावो मुझे मरने दो। अब मेरी बस की बात नही। नही बचूंगी मै पर लोगों ने हिम्मत बंधाई अब तो हाल ये है कि ताऊ जी के भी आंसू गिरने लग गए थे। होंठ कांपने लग गए थे उनके। बोल कुछ नही पाए पर दर्द जितना ताई को प्रसब् का उतना ही ताऊ को बिरह का।
लोगों से ताई को जोर लगाने को बोला कुछ कोशिश करने को बोला पर कोई फायदा नही हुआ ताई जी जीने की उम्मीद हार चुकी थी।
इतने में पदान जी ने बोला पिंनस को सजाओ अर ब्वारी को अंदर गाँव के हॉस्पिटल में ले जाओ । वहाँ कुछ हो सकता है। लोगो ने तैयारी शुरू कर दी। इतने में बगल के कुछ गाँव के लोग भी मौके का जायजा लेने आ गये कि माजरा क्या है। राम सलाम दुअा के साथ कहानी समझ में आई । उनमें से किसी ने बताया कि अंदर गाँव का हॉस्पिटल अभी सही से नही बना डॉ नही है वहां कोई भी कर्मचारी अभी नही आया। अब सारी रही हुई उम्मीद भी खत्म हो गई । पर उन लोगों ने ताई को रिखणीखाल ले जाने की बात कही। वह लोग बोले!! रिखणीखाल में कम्पाउडर है कुछ तो जुगाड़ हो जाएगा। रात्रि के 11 बज गए थे अभी तक घुटने की ऊंचाई का बर्फ गिर चूका है चारों ओर सन्नाटा सर्दी की ठंडी हवायें। औऱ इतना बड़ा बखेड़ा कुछ नोजवानों ने ताई को उठा के पिंनस में रखा रसियों से बांधा अच्छी तरह से कपड़ों से दन (भेड के ऊन से बना बिछौना दन होता है) ढक दिया। औऱ 4 नोजवान कंधा लगा कर कुछ आगे से उजाला कुछ पीछे से रांका (मसाल) जला कर और पूरे गाँव की सान मिट्टी तेल का गैस मेरे सिर पर सब से आगे। वैसे हम लोग इस गैस को किसी खास मौके पर ही बाहर निकालते है पर आज तो समूचे गाँव पर ही संकट था। 
द्वारी,शेरागाड, डबराड, पानीसैण शिमला सैण होते हुए करीब रात्रि के 3 बजे हम लोग ताई को बिना सांस लिए रिखणीखाल में पंहुचा दिए ताई भी हिम्मत हार चुकी थी पर सांसे अभी कहीं अपनी मर्जी से अटकी हुई थी। 
जैसे ही हम रिखणीखाल पहुंचे अगत बगल गाँव वालों (बल्ली, ब्यौला) को पता चल गया कि कोई मरीज आ रहा है बूढ़े लोगों की खांसने की आवाजें सुनाई दे रही थी चिमनी की रौशनी भी दूर दिख रही थी।
बस कुछ ही छण में हम 25,30 लोग ताई जी को लेकर रिखणीखाल हॉस्पिटल में पहुंच गए पर किस्मत आज हम लोगों के साथ न था यहां तो ताला लगा हुआ था। कोई नही आस पास हम लोगों का दिल बैठ गया 5 घण्टे के सफर के बाद भी खुसी का मुंह नही देखा अब तक ताई मरी सी हालत में हो चुकी थी हम सर्दी में भी ताई के चेहरे पर तमलेट और छाकल से पानी निकाल के पानी के छीटे मार रहे थे।नाले गदेरे पार करते करते उबड़ खाबड़ रास्ते कहीं झाड़ियां कहीं चढ़ाई का रास्ता तो कहीं खड़ी ढलान नजाने आज देवी हम को कौन सी शक्ति दे रही थी कि हम जिन रास्तों पर दिन में नही चल पाते है रात के अंधेरे में बिना किसी रुकावट के चल रहे है। हमारे उजाले अब पूरी तरह बुझ चुके थे हम अब अंधेरे में थे पर उजाले की उम्मीद नही छोड़ी थी।
हम परिस्थिति के आगे लाचार थे असहाय थे हम उस दुश्मन से लड रहे थे जो हमारे साथ थी उठता बैठता है हमारा ही दोस्त है हमारा ही साथी है वो था बदहाली छेत्र की अनदेखी पहाड़ों की, शोषण समाज का। पर करे तो क्या करे सब के पास सवाल था पर जवाब किसी के पास नही था। सभी इतने लाचार थे कि किसी से सवाल भी नही पूछ सकते अपने आपस में कि अब क्या।
खैर होनी को कौन टाल सकता है भगवान जैसे हम सब की परीक्षा ले रहा हो सहन्ता की सीमा मांप रहा हो।
पर तभी किसी ने छिल्लुड (क्याडा) के उजाले के साथ आवाज दी हम को हम खुस हुए कि डॉ आगया पर वो कोई स्थानीय निवासी था करीब 70 साल का जो जायजा लेने आये थे कि आखिर इतनी रात को हॉस्पिटल में कौन आये है दिक्कत क्या है। राम दुवा हुई पूरी ब्यथा उन को बताई तो उन्हों ने बोला डॉ तो कल ही साम को अपने घर ग्राम भरपूर गया है उस की 6 साल की बेटी को घर के छ्ज्जा से बाघ उठा ले गया बेचारी सुबह मिली तो बाघ ने उसे आधा खा दिया था।
बेचारी मर गई पर आप ऐसा करो आज हमारे गाँव में शादी है वहाँ हमारे एक रिश्तेदार डॉ आये हैदिल्ली से । बस हम लोगों की खुशी का ठिकाना न रहा। जैसे कि वर्षों के प्यासे को पानी मिल गया हो। वो बूढ़े बाबा बोले कि इन को हमारे घर ले चलो आनन-फानन में ताई को हम ने उठा के उन के घर बएला तल्ला गाँव पहुंचा दिया वहां भीड़ इकठ्ठा हो गई। हम लोगों के बिखरे हुए बाल फटे पुराने कोड़ें चप्पलों पर धागे बंधे हुए पेंट पर रंगबिरंगी टल्ली (थेकले) रिखणीखाल के लोग हम से सभ्य दिख रहे थे हम थोड़ा देहात के थे वो लोग सेंदार के या हो सकता है आज उन के गाँव में शादी थी तो उसी की चकाचौंद रही होगी पर बहरहाल डॉ साहब को नींद में से जगा के लाये ग्रामीण पूरा माजरा समझाया फिर डॉ साहब बोले भाई बात तो सही है पर हम जानवरों के डॉ है इंसानों के नही। हम लोग फिर जहां खड़े थे वहीं नजर आरहे थे निराशा हताशा और लाचार सब के गले सूखे थे आंखे सूजी थी ठंड से ठिठुर रहे थे पर करते भी क्या किस्मत वहाँ लाई थी जहां सब कुछ होते हुए भी कुछ न था। फिर डॉ बोला कि कोई बात नही वैसे मेरी बीबी नर्स है वह कुछ करेगी हम लोग खुश तो हुए पर पूरे नही क्यों कि इतने भी गंवार नही थे हम कि नर्स और डॉ में फर्क न जान सकें। डॉ साबह ने किसी अपनी बीबी को लाने भेजा। वह शहर के लोग थे 30 मिनट तो लगेगा ही नींद से जगने का। पर वो भली औरत थी कहानी को आधा सुने ही बालों का जूड़ा बनाते हुई दौड आई मामले की गहराई को समझा और सारी ब्यवस्था करने की जिम्मेदारी उस परिवार को दे दी जिन के घर में शादी हो रही थी। और अब सोणी ताई की डिलीवरी।
जो सामान हम ने अपने घर में जुटाया था वही इन भले लोगों ने यहां भी जुटा दिया था। ताई को पुनः किसी गौशाला में ले जाया गया। हम लोग उन की चौक में बैठ गए किसी भले भाई ने हम को तांबें के बड़े-बड़े गिलासों में गर्म चाय पकड़ा दी वह भाई वही था जिस की आज शादी की न्यूतेर थी। चाय गले से नही उतर रही थी। रिखणीखाल खाल की वो ठंडी वीरान हवायें हड्डी को भी छेद देती है। ताऊ जी और पदान दादा जी छन्नि में ही थे। किसी ने उन के लिए चाय वही भेज दी उन की छन्नि घर से चार कदम थी आवाजें यहां हम को साफ सुनाई दे रही थी। हम लोगों ने एक दूजे का मुहँ ताकते हुए चाय की चुसकियाँ मारनी शुुरु की अब सुबह के 5 बज गए थे। बर्फ भी गिरनी बंद हो गई थी सर्दी की रातें थी वरना गर्मी के दिनों में ग्रामीणों का आना जाना शुरु हो जाता । चिडियों का गुंजन सुनाई दे रहा था।
अचानक हम को किसी बच्चे के रोने की आवाजें सुनाई देने लगी। हम ने बड़ी उत्सुकता से दूल्हे को समय पूछा वो भाई बोला छः बज के तीन मिनट और अब चार तारिख हो गई थी, बुधवार हम लोगों से राहत की सांस ली। चलौ हमारी मेहनत कामयाब हुई। छन्नि से किसी दीदी ने हम को ग्राउंड जीरो की रिपोर्ट दी वो बोली कि जुडवा बच्चे हुए है । और दोनों लड़के है हमारा खुशी का ठिकाना न रहा। जैसे कि हमने आज सिकन्दर बन के जग जीत लिया।.......
 
हम गौशाला में जाते है तो मंजर देख के सन्न रह जाते है खुशी के आँसू पोछे,या गम के सम्भालें,जो मन्जर था वह हमारे पैरों के नीचे की जमीन को खिसका ले गया। हम जैसे खड़े थे वैसे ही रह गए......

अब आगे कल.......
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लेखन -:देवेश आदमी (प्रवासी)
पट्टी पैनो रिखणीखाल
(देवभूमि उत्तराखंड)
सम्पर्क -:8090233797

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