Thursday 10 August 2017

क्या बता सकते है ये कविता किसी प्रसिद्ध गढ़वाली गीत का अनुवाद है




रूप रंग तुम्हारे इस यौवन में, 
उम्र के इस सावन में 
मेरे भी इस कोमल से मन में
प्यास लगा दी है आस जगा दी है

यू मत मुस्कराओ दांतों पर दाग लग जायेगा
अपने होंटो को बंद कर लो 
फूल समझकर भँवरा घुस जायेगा
तुम्हारे यौवन को देखकर बुरांस बेचारा
हैरान है परेसान है

किस जहाँ से लेकर आये होे ये कोयल जैसा गला
ऐसी बतुनी आँखे कहाँ से पायी है तुमने भला
तुमारी झपकती पलकों के इशारे
मन में दबी बातों की परते खोल रही है
ये आँखे कुछ तो बोल रही है।

ख़ुदा की भी नजर है तुम्हारे चेहरे पर
ये चेहरा हमारे दिलों में भी बसा है
तुम्हे अपना बनाने के लिए चकोर भी लगा है
तुझे देखकर हयो राम
ये ढलते दिन का घाम 
ढल सा गया है। ओझल सा हो गया है

हर किसे से कोई यूँ प्यार नहीं करता 
बिना आग के कहीं धुआ नहीं उठता
तुमारे इस दिल में किसकी तस्वीर है
मै जान चूका हूँ मै पहचान चूका हूँ

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