Wednesday, 31 August 2016

पढ़िए मशरूम लेडी दिव्या रावत से बातचीत के कुछ अंश Excerpts from the conversation Mushroom Lady Divya Rawat


मैंने इस बात को पहले भी स्पष्ट कहा है की अगर हमें पहाड़ों से पलायन को रोकना है तो सबसे पहले वहाँ रहनी वाली महिलाओं में आत्मबल पैदा करना होगा, उन्हें स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहन देना होगा, जहाँ पहाड़ बिगत कई वर्षों से पलायन की मार झेल रहा था, हमारे राजनेताओं को कुछ भी नहीं सूझ रहा था, तमाम सामाजिक संघठन वर्षों से चिंतन मनन कर रहे थे; पर कोई भी हल नही निकाल पा रहे थे, कि पलायन को कैसे रोका जाए, हर कोई बड़ी -बड़ी बातें तो कर रहा था पर पहाड़ में आने को खुद कोई तैयार नहीं था, अब सवाल यह था की कौन पहल करें ? कौन खुद पहाड़ में आकर; खुद भी और अन्य लोगों को भी रोजगार दें, तभी एक 23 - 24 साल की लड़की आती है; और पूरे पहाड़ में एक क्रांति सी आ जाती है, 

जी हाँ मैं बात कर रहा  हूँ "दिव्या रावत" की,  दिव्या रावत ने पहाड़ में मशरूम में  ऐसा ब्यवसाय खड़ा कर दिया की बड़े-बड़े दिग्गज सोचने पर मजबूर हो गए है, जिस दिव्या को आज पूरा भारत मशरूम लेडी के नाम से जानता है, पढ़िए मशरूम लेडी दिव्या रावत से बातचीत के कुछ अंश।    
 प्रश्न - जहाँ आजकल के बच्चे खेती से दूर भाग रहे है कृषि से संबंधित कोई भी काम नही करना चाहते खास कर उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में। वहीं आप मल्टीनेशनल कंपनी से नौकरी छोड़कर इस क्षेत्र में आयी । इस काम को कैरियर के तौर पर अपनाना चाहती थी या यूं ही ?
उत्तर -  मैं कोई असाधारण काम नही कर रही हूँ। मैं बस एक सामाजिक दायित्व को निभा रही हूँ मैं उत्तराखंड की निवासी हूँ। जब मैं यहां आयी तो पता चला कि जीविका और रोजगार यहाँ के सामाजिक मुददे हैं। इन मुददों के हल के लिए मैने यहाँ के लोगों और यहाँ की भूमि का अध्ययन किया और पाया कि कृषि क्षेत्र में अगर ठोस कदम उठाए जाये ंतो गाँव के लोगों को लाभ होगा। और हम जैसे युवाओं को रोजगार की तलाश में शहर नही जाना पड़ेगा। बस मेरे पास एक ही उपाय था कि मै यहाँ मशरूम खेती करूँ। मै इसमें खुद को एक उदाहरण के तौर पर पेश करना चाहती थी। और मैं एक् सामाजिक उद्यमी बन गयी। आज मै अपने सामाजिक दायित्व के रूप में मशरूम मिशन को आगे बढ़ाने में लगी हूँ। इस मैं मानवता के क्षेत्र में अपना करियर भी कह सकती हूँ    ९ साल की प्यारी सी लड़की शगुन उनियाल की सुन्दर आवाज में सुनिये गढ़वाली गीत :
प्रश्न - जब आपने मशरूम उत्पादन का काम करना शुरू किया होगा तो कई प्रकार की कठिनाओं  का सामना करना पड़ा होगा, असफलता भी हाथ लगी होगी तब मन में क्या विचार आया ?
उत्तर - चैलेंज तो आते है। हर काम इतना आसान नही होता है। मैं सोचूं कि मै जाऊँ और मुझे सफलता एक ही दिन में हाथ लग जाये ऐसा विलकुल भी नही होता। सबसे बड़ा चैलेंज तो मेरे लिए यह था कि पूरे उत्तराखंड में मशरूम में मै ही अकेली इस काम को कर रही हूँ। यह मेरे लिए एक प्रकार से सकारत्मक भी है और नकारत्मक भी। जब मैने मशरूम उत्पादन करने की सोची तो मुझे कोई गाइड करने वाला नही था। मेरे लिए सब कुछ नया था। मैने इससे जुड़े लोगों को ढूंढा, कौन मुझे सही गाइड करेगा ? कौन मुझे सही जानकारी देगा। ऐसे लोगों को ढूंढना मेरे लिए बहुत बड़ा चैलेंज था। मै चाहती थी कि पहाड़ का हर आदमी मशरूम का उत्पादन कर रहा हो। ये मेरे लिए अभी भी बहुत बड़ा चैलेंज हैं। अभी तक मशरूम फैक्ट्री का प्रोडक्ट था। जो कि चार, पाँच करोड़ के इन्वेस्टमेंट से शुरू किया जाता था। मशरूम उत्पादन के लिए बहुत बडे़ बुनियादी ढांचे की अवश्यकता पड़ती थी। पर मैने इसमें बहुत सारे बदलाव किये बुनियादी ढांचे में जो सबसे ज्यादा खर्चा ( लगभग चार पाँच करोड़) लगता था मैने उसे हटा दिया। जिससे कोई भी आम आदमी इसे पाँच से दस हजार रूपये में शुरू कर सकता था। मैं इसे फैक्ट्री से निकालकर फार्म में लेकर आयी (फार्म से मेरा मतलब घर पर लेकर आना है) अगर आप के पास दो कमरे भी है, तो आप आराम से अपने घर में रह भी सकते है और साथ में मशरूम का उत्पादन भी कर सकते है। तथा घर बैठे ही हर माहिने पाँच से दस हजार की कमाई कर सकते हैं। 
इस लिंक पर देखिये सुपर हिट गढ़वाली फिल्म भाग-जोग पार्ट-1
प्रश्न - आपको घर वालो का सहयोग कैसे मिला। जब आपने इस काम के बारे में घर वालों को बताया होगा तो घरवाले असानी से मान गये थे, या बहुत समझना पड़ा ? 
उत्तर - हाँ, उनके लिए यह साॅकिंग न्यूज थी। जब मैने उनसे अपने मन की बात बतायी। घरवालो का कहना था कि तुम इतनी अच्छी जाॅब, इतना अच्छा पे स्केल छोड़कर वापस घर आना चाहती हो। जहाँ अन्य बच्चे जो एक बार पहाड़ से शहर नौकरी करने के चला जाता है वह वापस नही आना चाहता। पहाड़ तो छोड़ो वह देहरादून भी नही आना चाहता। एक तुम हो जो कह रही हो कि मुझे पहाड़ों में जाकर काम करना हैं। पर मैं घर में सबसे छोटी हूँ मैने उन्हे पूरी तरह विश्वास में लिया और उन्हे अपने विजन के बारे में डिटेल से समझायज्ञं हाँ, वह लोग थोड़ा देर से समझे पर आखिरी मेरे बात को मान गये। तथा मुझे पूरी तरह से मुझे मदद करने लगे। आज की तारीख मेरे परिवार मेरे साथ कदम-कदम मिलाकर चल रहे है इस मिशन में मेरे हमसफर बनकर चल रहे हैं।

प्रश्न - अब जब आप सफलता की सीढ़ी चढ़ रही हो तो कैसे लग रहा हैं। अब वह लोग और दोस्त क्या सोचते है जिन्होने पहले आपके इस फैसले पर सवाल उठाये थे ?  
उत्तर - कुछ नही ? क्या कहेंगे ? अब उनके पास कहने को कुछ बचा ही नही है। अब वह भी कहते है, चलो हम भी मशरूम की खेती करते है। उनके पास अब कोई आॅप्शन ही नही बचा है। छोड़ा ही नही है उन्होने अपने लिए आॅपशन। मै सच कहूँ तो मै किसी को भी दुशमन नही बनाना चाहती हूँ। किसी से दुशमनी लेकर कोई फायदा नही होने वाला मुझे। बल्कि मैं चाहती हूँ सबको साथ लेकर चलूँ। मै उन सब लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ जिन्होने मुझे चैलेंज किया। अगर वह लोग मुझे चैलेंज नही करते तो मैं भी किसी काॅम्फल्ट जोन में चली जाती और अपना दिमाग बिल्कुल भी नही चलाती। और आज दिब्या रावत, दिब्या रावत नही होती। यह सब उन लोगों की वजह से है जिन्होने कहा था तुम फेल हो जाओगी। अगर वह मुझे चैलेंज नही करते तो मैं सफल नही हो पाती। खैर अभी मै उतनी सफल नही हुई हूँ जितना मै चाहती हूँ अभी तो मैने केवल दो या तीन प्रतिशत ही काम किया इस क्षेत्र में। अभी तो मुझे बड़े-बडे़ चैलेंजो को पार करना है। इसलिए मैने पहाड़ों के गाँवों में जाकर लोगों को मशरूम उत्पादन के लिए जागरूक करना शुरू किया है। मै चाहती हूँ आने वाले समय में पहाड़ों मे रहने वाला हर आदमी मशरूम का उत्पादन कर रहा हों। अभी तक मै जितनी मशरूम उगा रही हूँ हैरानी की बात यह है कि उसकी सारी खपत उत्तराखंड के पहाड़ो में ही हो रही हैै। हमारे पास एडवांस आॅडर है। अपने प्रदेश से बाहर भेजने की जरूरत ही नही पड़ रही हैं। हलांकि मै चाहती हूँ कि एशिया की सबसे बड़ी मंडी में अपनी मशरूम पहुँचे। लेकिन पहले हम पहाड़ों का पेट तो भरे।
 इस लिंक पर देखिये गढ़वाली सुपर हिट फिल्म भाग-जोग पार्ट-२
प्रश्न - जब आपने मशरूम को पहाड़ों में उगाने का फैसला किया तो लोगों का सहयोग कैसे मिला?अक्सर कई लोग कहते है कि जब वह गाँव में इस प्रकार का कार्य करना चाहते है तो गाँव के लोग सहयोग नही करते है ?

उत्तर - मैं आठ माहिने अपने गाँव कोट कंडारा में रहकर आयी हूँ। मैं उसी गाँव की रहने वाली हूँ। वहाँ मैनें मशरूम उत्पादन शुरू किया अपने गाँव में मुझे खास परेशानी नही उठानी पड़ी। क्योंकि मैने अपने घर से ही मशरूम उत्पादन किया, मैनें वहाँ पाँच लाख की मशरूम का उत्पादन किया। आठ माहिने तक वहाँ रहकर रिसर्च किया कि कैसे यहाँ मशरूम का उत्पादन किया जा सकता है। कहाँ इसे बेचना है। इसके बाद लोग मेरे साथ जुड़ने लगे। एक प्रकार से पूरे गढवाल में आग सी लग गयी। मैं वहाँ पैसे कमाने नही गयी थी मै वहाँ के लोगो की मानसिकता बदलने गयी थी। लोग यह सोचे कि एक लड़की आती है और यहाँ से पाँच लाख कमाकर चली जाती है। तो हम क्यों नही कमा सकते। मै लोगो को हिट करने गयी थी। जिसमें मुझे सफलता हाथ लगी। हलांकि वहाँ मुझे काफी मुशकिलों का सामना भी करना पड़ा पर मैने हमेशा चुनौतियों से पार पाना सीखा हैं। और अगर यही काम मैं देहरादून अपने घर पर ही रहकर कर रही होती तो शायद आज मुझे कोई नही जानता। आज हर रोज मेरी देहरादून वाली यूनिट में अस्सी नब्बे लोग मशरूम के बारे में जानने और सीखने आते हैं ज्यादातर लोगा इसमें पहाड़ो से होते है। अपनी देहरादून वाली यूनिट में मैने एक आदमी को रखा है जो मशरूम के बारे में जानने वालों को पूरी जानकारी देता है। मैने जिन-जिन लोगो को ट्रेनिग दी है अब मै उनके गाँवों में जाकर उनके पूरे सैटप को लगाती हूँ और वह लोग अपने खुद के पच्चीस तीस हजार के इंवेस्टमेंट से मशरूम उत्पादन कर रहे है वह लोग सौम्या फूड से ही जुड़े हुऐ है।
इस लिंक पर सुनिए -किस दौर से गुजर रहा है अपना उत्तराखंड सुनिए उत्तराखंडी जाग्रति गीत
प्रश्न - उत्तराखंड सरकार से कोई मदद मिली ? 
उत्तर - मुझे सरकार से किसी प्रकार मदद की जरूरत नही हैं। अब मैं इतनी सक्षम हो गयी हूँ कि अपनी उत्पादन के लिए खुद बाजार उपलब्ध कर सकती हूँ। मैं देश की बड़ी मंडियों में भी मशरूम बेचने को तैयार हूँ। मैं पूरी योजना के साथ में आगे बढ़ रही हूँ। मुझे अभी तक सरकारों को बीच में रखने की जरूरत ही नही पड़ी। अगर मै सरकार को इस मिशन में शामिल भी करती भी हूँ तो सरकार सब्सिडी देगी। और एक बार लोगों को सब्सिडी की आदत पड़ जाती है तो उसके बाद मेहनत कोई नही करता। लेकिन जब किसी भी काम में लोगों की जेब से पैंसा लगता हैं तो वह पूरी लगन से काम करते है। अभी तक मैने केवल सरकार से ट्रेर्निग के लिए मदद ली है। जहाँ पहले मशरूम ट्रेर्निग औफिस माहिने में लागों को साल भर में एक बार ट्रेर्निग देता था वही वह अब माहिने में दो तीन बार आम लोगों को ट्रेनिग  दे रहा।
इस लिंक पर देखिये एक सुंदर गढ़वाली खुदेड गीत। आपको अपनों की याद आ जाएगी
प्रश्न - अगर आपसे कोई मशरूम उगाने की ट्रेर्निग लेता है तथा जो मशरूम उत्पादन वह करेगा उसके लिए बाजार आप उपलब्ध कराओगे; या उन लोंगों को ही इसकी ब्यवस्था करनी पड़गी ?
उत्तर - अभी तक मुझे उन्हे मार्किट उपलब्ध कराने की जरूरत ही नही पड़ी क्योंकि उनक द्वारा उत्पाद की गयी मशरूम वही आस पास की मार्किट मे ही कंज्यूम हो जाती है। जहाँ तक ट्रेर्निग की बात है तो मैं पै्रटिकल कराती हूँ। जब मेंरे यहाँ मशरूम का उत्पादन होने वाला होता है तब मै उन लागों को प्रैटिकल कराती हूँ हाँ, उससे पहले उन्हे सरकार के ट्रेर्निग सेंटर भेजती हूँ कि पहले एक हफ्ता मशरूम के बारे में पढ़कर आओं। जब लोग वहाँ से मशरूम की बेसिक ए, बी, सी, डी, सीखकर आते है। उसके बाद मैं लोगों को कैट, मैट, बैट, पढ़ाती हूँ । रोज आते है लोग जब तक एक फसल पूरी नही हो जाती। उसके बाद हम पहाड़ो मे उत्पादन शुरू करते है मै तीन दिन उनके साथ रहती हूँ 18 घंटे हम काम करते है एक -एक चीज मैं उन्हे बताती हूँ।

प्रश्न - आपने पहाड़ की पुरानी परंपरा को जीवित रखते हुऐ मशरूम के सुख्से बनायें इसका रिजल्ट कैसा रह बाजार में।क्या लोग इसकी मांग कर रहे है ?
उत्तर - हाँ, इस वाली मशरूम का सुख्सा बनता हैं। सुख्सा छः माहिने साल भर तक खराब नही होता हैं। इसकी भी बाजार में बहुत मांग हैं। सुख्से की डिमांड आसपताल में सबसे ज्याद हैं जब इस मशरूम को सनडॉई किया जाता है तो इसमें विटामिन डी, आ जाता है। विटामिन डी घुटनों के जोड़ों के दर्द के लिए बहुत ही फायेदमंद होता हैं। इसलिए डाॅक्टर मरीज को मशरूम का सुख्सा खाने को कहते हैं।
प्रश्न - आप किस प्रेरणा स्रोत मानती है ?
उत्तर - मैं किसी को प्ररेणा सो्रत के रूप में नही मानती। हकीकत यह कि मुझे पहाड़ों का दर्द देखा नही जाता। मैं जब भी पहाड़ आती मुझे यहाँ सकुन और शान्ति तो मिलती पर मेरे मन मेें यह दर्द जरूर रहता कि पहाड़ रोजगार से वंचित क्यों हैं। क्या यहाँ रोजगार पैदा नही किया जा सकता। सच कहूँ तो मुझे पहाडों से ही मशरूम उगाने की प्रेरणा मिली हैं। मै जब दिल्ली में थी तो मै देखती हमारे लोग इतने सुंदर वातावरण को छोड़कर वहाँ पाँच छः हजार की नौकरी कर रहे है। न जाने किन-किन परेशानी में अपनी जिंदगी जी रहे है। मुझे लगता था कि हम पहाड़ो में रहकर भी कुछ ऐसे काम कर सकते है जिससे यहाँ रोजगार पैदा हो सकें। लोगों को यही रोजगार मिलें जिससे वह आराम से अपनी जिंदगी को जी सके। बस जरूरत थी तो इच्छा शाक्ति की जो मैने दिखाई।
प्रश्न - भविष्य में आपकी क्या क्या योजनाएं है क्या मशरूम के अलावा किसी और क्षेत्र में काम करना चाहती है ?
उत्तर - मैं इसकी बहुत सारी किस्म की खेती करना चाहती हूँ। अभी तो मेरी बस यह शुरआत भर हैं। मैं चाहती हू कि पहाड़ो मे हर तरफ मशरूम ही मशरूम दिखें। मै अमूल डेरी की तरह इस काम को करता चाहती हूँ। मै ऐसी भी मशरूम पैदा करना चाहती हूँ जिसकी बाजार में कीमत पंद्रह हजार से लेकर बीस हजार प्रति किलो हैं।

प्रश्न - पहाड़ के जंगलों में बरसात के समय में बहुत  जंगली मशरूम उगती है उस मशरूम के बारे में आपकी राय क्या हैं ? 
उत्तर - मुझे जंगली मशरूम के बारे में कोई खास जानकारी नही है। जिस मशरूम को मै उगाती हूँ वह पूरी तरह से लैब में जांची परखी जाती है। सालो साल की रिसर्च के बाद बड़े बडे़ वैज्ञानिक इसके बीज तैयार करते है उसके बाद इसे हम लगाते हैंें। यह पूरी तरह से सांइसिटपिक होती है। इसकी हमें सत प्रतिशत गाॅरंटी मिलती है कि यह किसी भी प्रकार से स्वायस्थ के लिए असुरक्षित नही होती।
प्रश्न - समय और उत्पादन के साथ आप मशरूम की खेती में कैसे बदलाव करोगी क्या मशरूम के बायो-प्रोडक्ट बनाने की योजना है ? 
उत्तर - मैं काफी बडे बडे वैज्ञानिक के संपर्क में हूँं जो समय≤ पर मेरा मार्ग दर्शन करते रहते हैं मैं उनसे मशरूम के बारे में सलाह लेती रहती हूँ अभी हमारी योजना है कि हम विदेशो में खासकर जर्मनी और यू एस में इस मशरूम को हिमालयन मशरूम के नाम से एक्सर्पोट करना चाहते हैं जिसके लिए हमारी रूप रेखा बन रही है। मेरे साथ पूरी टीम काम कर रही है। वैसे हम इसके बायों-प्रोडक्ट पर भी काम करना चाहते है मशरूम के बाय-प्रोडक्ट भी बनाये जाते हैं जैसे सूप पाउडर, मुरब्बा आचार शैम्पू कंडीशनर बिस्कुट बहुत सारे प्रोडक्ट बनाये जाते हैं ।
प्रश्न - पहाड़ की महिलाओं को क्या संदेश देना चाहती है। और साथ में उन युवाओं को जो रोजगार के लिए पहाड़ से बाहर जा रहे है ?
उत्तर - मैं लोगों से बस यही कहना चाहती हूँ अब आपको बाहर शहरों में जाने की जरूरत नही है बस आप अपने आस-पास नजर घुमायें आपको बहुत सारा रोजगार नजर आ जायेगा। मेरे साथ जुड़ये मशरूम की खेती किजिये इसमें आपको कोई नुकसान नही है बस फायदा ही फायदा। जहाँ अभी तक आपकी फसलों को बंदर सुअर नुकसान पहुंचाते थे आपकी पूरी मेहनत पर पानी फेर देते थे। मैं आपकी मेहनत को सही राह दूँगी। आप घर बैठे बैठे आपने बच्चो की देखरेख भी कर सकते हो और पाचस साठ हजार सालना कमा सकते हो। बस थोडा़ सी जागरूकता की कमी हैं एक बार लोग जागरूक हो गये तो सबका भबिष्य सुनहेरा हो सकता है। मै उन युवाओं को कहना चाहती हूँ कि अपने आप को पहचानों ये भेड़ चाल मत चलों । अपना खुद का ब्यवसाय करों। आज की तारीख में मेरे साथ कई लड़के आपनी नौकरी छोड़कर मशरूम का उत्पादन कर रहे हैं

Friday, 26 August 2016

गर प्रकृति को निहारना है तो, The goal is to behold nature,


फोटो  मयंक डोभाल 

गर प्रकृति को  निहारना है तो,
चले आना मेरे पहाड़ |
गर प्रकृति को बिचरना है तो,
चले आना मेरे पहाड़ |

कुछ कायेद, कुछ कानून के साथ,
मौन होकर
चले आना मेरे पहाड़,

बिना नशा किये हुए,
क्योंकि यहाँ आने के बाद,
खूबसूरत नज़रों का नशा तुम पर छा जाएगा |

गर प्रकृति के साथ जीना है तो,
चले आना मेरे पहाड़ |
गर शुद्ध जल पीना है तो
चले आना मेरे पहाड़ |

शहर की तपिश को छोड़कर,
सारे काम क्रोध से मुहं मोड़कर |
चले आना मेरे पहाड़ |
गर प्रकृति को  निहारना है तो,

Thursday, 25 August 2016

Garhwali Song Bhooli Bisri Singer – Prem Singh Gusain

Garhwali Song Bhooli Bisri Singer – Prem Singh Gusain Music – Sanjay Kumola Lyrics – Atul Gusain ”jakhi” Recording – Sagar Sharma Editor – Garhwali Brothers MUSIC ON GARHWALI BROTHERS ENTERTAINMENT PVT.LTD

Tuesday, 16 August 2016

अब की राखी में मेरे भैया!














अब की राखी में मेरे भैया!
उत्तराखंड को अपनी बहन बना लेना,
अपनी बहना को बस एक ही तोहफा देना।

आजा घर लौटकर मुझे उजाड़ने से बचा ले,
मानव विहीन हो रही हूँ मैं!
मेरे आँगन में फिर किलकारियाँ गुंजाले।
बंजर हो गये है खेत खालियान मेंरे,
इन्हे फिर फसलों से सजा ले।
अब की राखी में मेरे भैया!
उत्तराखंड को अपनी बहन बना लेना,
अपनी बहना को बस एक ही तोहफा देना।
इस लिंक पर देखिये नरेंद्र सिंह नेगी जी
नया गीत जो जल्द आपके बीच आने वाला है
आजा भैया मेरे इन खेतों में हल चला ले,
आकर फिर गाँव में फिर चैपाल सजा ले।
खाली हो गयी है गाँव की स्कूल,
आकर अपने बच्चों को इसमें पढ़ा ले,
टूट चुके है घर तेरे आकर इन्हे बना ले।
अब की राखी में मेरे भैया!
उत्तराखंड को अपनी बहन बना लेना,
अपनी बहना को बस एक ही तोहफा देना।
इस लिंक पर देखिये फ्युलोडिया ओर्जिनल गीत
बहुत दिनों से पूजा नही की है तुमने,
आकर इष्ट देव की पूजा थाल सजा लेना।
नेताओं ने लुट डाला है मुझे !
इन्हे सत्ता से हटा लेना,
सो रहे है जो लोग उन्हे आकर जगा देना,
अब की राखी में मेरे भैया!
उत्तराखंड को अपनी बहन बना लेना।
अपनी बहना को बस एक ही तोहफा देना

तेरी बहना अस्पताल में स्वीली पीड़ा से मर रही है,
इस अस्पताल में डाक्टर बुला लेना।
गलत राह में निकल पड़े है जो बच्चे मेंरे,
आकर उनके बचपन को लौटा देना।
कहीं दूर न निकल जायें वह,
आकर उन्हें सही राह पर लौटा देना।
अब की राखी में मेरे भैया!
उत्तराखंड को अपनी बहन बना लेना।
अपनी बहना को बस एक ही तोहफा देना
इस लिंक पर देखिये गढ़वाली कविता कब
 तकै लुट्दा तुम ये पाड़ तै
यही मेरी राखी का सच्चा उपहार होगा,
यही भैया का अपनी बहन के लिए सच्चा प्यार होगा ।।

Thursday, 11 August 2016

Narendra Singh Negi Garhwali Singar
























तान सेन सी आपै आवाज,
बैजू बाअरा सी आपमा साज।
बिराजमान आपका कंठ मा साक्षत सुरों की देवी,
आप छा गढ़ रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी।

कलम आपमा बांसे च, माटे च स्याई,
लेख्दी च जबवा, बण जांदी सोने लिखाई।
जब भी आपन भ्रस्टाचार पर कलम चलयी,
तब तब आपन सरकारू की जड़ हिलायी।

न आप देव छा, न देवता, न छा भगवान,
बस हम जन छन आप भी इन्सान।
अपड़ी कलम ते आपन कभी बँधी नीच,
कलम कभी कैका अधीन रखी नीच।

मनमा आपका मात्रभूमि दुर्दशे पीड़ा च,
अपड़ा ही लुटणा छन, मनमा ही गिला च।
पहाड़ मा स्थान आपो जन ऊँचू आगाश,
लेखनी आपै जन हैंरू भैरू बस्ग्याल चौमास।

आप केवल गीत गायक निछा,
अपितु पहाड़ै संस्कृति छा।
आप केवल पिता, पुत्र, न,
अपितु पूरी प्रकृति छा।

आप दाना मनख्यूं ते सांस छा,
आप दीदी भुल्यू की आस छा।
आप जवनू कू हौंसला छा,
नौन्यवू ते संस्कारू कू घोसला छा।

आप सिपै कू ते वीर रस छा, 
संसार मा गढ़वालो कू यश छा।
आप हैंसण छा, आप ख़ुशी छा,
पहाड़ दुःखी त आप दुखी छा।

आप केवल कवि न, कवेन्द्र छा,
आप केवल शब्द न, शब्देइंद्र छा।
धन्यभाग हमरा!
जू हमन देवभूमि मा जन्म ल्याई,
आप जन सरस्वती पुत्र यी धरती मा पायी।
आपै प्रेरणान मेरा हाथू मा कलम पकड़ाई,
मे जन अनाड़ी ते द्वी आखर लिखण सिखाई।


प्रदीप रावत (खुदेड़)

Friday, 5 August 2016

मेरा स्वळा रूप रंग का छापा छपे ग्येन सैरा पाड़ मा, उर्वर्शी रौतेला Garhwali poem

फोटो- उर्वर्शी रौतेला
मेरा स्वळा  रूप रंग का  छापा छपे ग्येन सैरा पाड़ मा,
सभी अलज्या छन म्यारा स्वळा  रूप रंगा  जंजाळ मा।

ककड़ी सी कुंगली गात  मेरि ,गंजेळी मुठठी जन कमर च,
गैरी मायादार आॅँख्यी छन मेरि, अभि त बाळी उमर च।
हाथ्यू मा चुड़ी बजदिन मेरि खन-खन,
खुटयू मा झवरी बजदीन मेरि छम-छम।
मेरा स्वळा  रूप रंग का  छापा छपे ग्येन सैरा पाड़ मा,
सभी अलज्या छन म्यारा स्वळा  रूप रंगा  जंजाळ मा।

मेरि ज्वनि मा आयू बसग्याली मौयार च,
चैतरफ फैलाई मेरि अपड़ी माया बयार च।
नरंगी सी रसीली जुबान मेरि यूं ओंटयूडयू मा,
चाॅदी की मुरखी झलकणी मेरि यू कनदूड़यू मा।

क्वी थेकळी  लगाणू च अगाश मा, क्वी उपाड़ी लाणू च,
मे पाणा का खातिर हर क्वी  तिमलामा फूल खिलाणू च।
मेरि माया की घूंघराळी लटल्यू मा व्हेगेन सब घैल,
हर क्वी बणणू च अब अपडा मनमा  सुप्न्यों का महैल।

हर अखर मा बस  सभ्यूं तै अब मेरू नौ दिखेणूचा,
विन्या मेरि  झळक दिख्या न खयेणू न सियेणू च।
मेरि माया का फूल खेलाणा छन सबि ज्युकुडिया उपवन मा,
मेरि तसवीर बसाई च सभ्यू की अपड़ा कुंग ळा  मन मा।

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Tuesday, 2 August 2016

मै नारी हूँ ! I am Woman! Garhwali poem

मै नारी हूँ !


                          मैं केवल मूरत नही, मै नारी हूँ !
                          मैं भोली सूरत नही, मैं चिंगारी हूँ !
                          मुझे घर की चार दिवारों में मत बाँधों
                          कोमल भले हूँ पर मेरी शक्ति को कम मत आँकों।
                          मैं केवल मूरत नही, मै नारी हूँ !
                          मैं भोली सूरत नही, मैं चिंगारी हूँ !

                          बुलंद करने दो मुझे भी अपनी आवाज को,
                          बीर रस के स्वर में बजाने दो मुझे अपने साज को।
                          मैं गौरा हूँ, मैं तीलू हूँ, मैं ही टिंचरी माई हूँ,
                          अपनी लोहे की जंजीरों को काटने मैं आयी हूँ।

                          इतिहास सक्ष्य हैं !
                          मैने अंदोलनों में शिरकत की है जब-जब,
                          विजय सुनिश्चित हुई इस धरा पर तब-तब
                          आज हमारे भय से हिमालय शिखर पिघल पड़े है,
                          आज हम फिर अपने घरों से निकल पड़े है।

                          ये समस्त पहाड़ मुझसे है !
                          ये समस्त बहार मुझे से है !
                          मैं ही पहाड़ की दुशवारियों को पार करूँगी,
                          मै ही पहाड़ की कठिनाओं को तार-तार करूँगी।
                          मैं केवल मूरत नही मै नारी हूँ !
                          मैं भोली सूरत नही ? मैं चिंगारी हूँ !

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गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली

 गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली        गढ़वाली भाषा का प्रारम्भ कब से हुआ इसके प्रमाण नहीं मिलते हैं। गढ़वाली का बोलचाल या मौखिक रूप तब स...