शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

मेरा स्वळा रूप रंग का छापा छपे ग्येन सैरा पाड़ मा, उर्वर्शी रौतेला Garhwali poem

फोटो- उर्वर्शी रौतेला
मेरा स्वळा  रूप रंग का  छापा छपे ग्येन सैरा पाड़ मा,
सभी अलज्या छन म्यारा स्वळा  रूप रंगा  जंजाळ मा।

ककड़ी सी कुंगली गात  मेरि ,गंजेळी मुठठी जन कमर च,
गैरी मायादार आॅँख्यी छन मेरि, अभि त बाळी उमर च।
हाथ्यू मा चुड़ी बजदिन मेरि खन-खन,
खुटयू मा झवरी बजदीन मेरि छम-छम।
मेरा स्वळा  रूप रंग का  छापा छपे ग्येन सैरा पाड़ मा,
सभी अलज्या छन म्यारा स्वळा  रूप रंगा  जंजाळ मा।

मेरि ज्वनि मा आयू बसग्याली मौयार च,
चैतरफ फैलाई मेरि अपड़ी माया बयार च।
नरंगी सी रसीली जुबान मेरि यूं ओंटयूडयू मा,
चाॅदी की मुरखी झलकणी मेरि यू कनदूड़यू मा।

क्वी थेकळी  लगाणू च अगाश मा, क्वी उपाड़ी लाणू च,
मे पाणा का खातिर हर क्वी  तिमलामा फूल खिलाणू च।
मेरि माया की घूंघराळी लटल्यू मा व्हेगेन सब घैल,
हर क्वी बणणू च अब अपडा मनमा  सुप्न्यों का महैल।

हर अखर मा बस  सभ्यूं तै अब मेरू नौ दिखेणूचा,
विन्या मेरि  झळक दिख्या न खयेणू न सियेणू च।
मेरि माया का फूल खेलाणा छन सबि ज्युकुडिया उपवन मा,
मेरि तसवीर बसाई च सभ्यू की अपड़ा कुंग ळा  मन मा।

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