Friday, 26 January 2018

राहुल सती का कर्णप्रिय आवाज में उत्तरैणी के भव्य आयोजन में लॉन्च हुआ पहला कुमाउनी चकबंदी गीत।

राहुल सती का कर्णप्रिय आवाज में उत्तरैणी के भव्य आयोजन में लॉन्च हुआ पहला कुमाउनी चकबंदी गीत। इस गीत को लिखा है पृथ्वी सिंह रावत जी ने 
जहाँ दिल्ली एनसीआर में उत्तरैणी महोत्सव की धूम मची थी हर संस्था अपने आयोजन को बड़ा बनाने के लिए जी जान से जुटी थी। वहीँ कुछ संस्थाओं ने अपने आयोजन में सामाजिक सरोकारों के मुद्दों को भी प्राथमिकता दी। उत्तराखंड एकता मंच तिमारपुर ने अपने आयोजन में चकबंदी गीत को लॉन्च करने के साथ साथ उस गीत पर एक गीत नाटिका के माध्यम से प्रस्तुति भी दी। कि किस प्रकार से चकबंदी पहाड़ में पलायन रोकने के लिए गेम चेंजर की भूमिका निभा सकती है। इस नाटिका का मंचन किया यंग उत्तराखंड कलब की टीम ने गौरतलब है की राहुल सती एक अच्छा गायक ही नहीं बल्कि वह सामाजिक आन्दोलन में भी बड़े जोश के साथ भाग लेता है। उत्तराखंड एकता मंच दिल्ली के 20 नवम्बर 2016 के आयोजन में भी राहुल ने अपनी बड़ी भूमिका निभाई थी। तब भी उन्होंने समाज को एक जुट एक मुठ करने के लिए अपने गीत के माध्यम से लोगो को जागरूक किया था। 
निचे दिए गये लिंक पर आप इस गीत को सुन सकते है।
 

Tuesday, 23 January 2018

नरेंद्र सिंह नेगी के बाद पौड़ी शहर से अपने गीतों के माध्यम से उत्तराखंड में चमक बिखेरती प्रमिला चमोली, सवाल जवाब में पढ़िए त्तराखंड की उभरती गायिका प्रमिला चमोली से खास मुलाकात


सवाल - प्रमिला जी मै सबसे सवाल जवाब का सिलसिला शुरू करने से पहले ये जानना चाहता हूँ आप का गाँव कहाँ है यूँ कहे ये मेरा पहला सवाल भी है ?

जवाब -  मेरे सुंदर और रमणीय गाँव का नाम Saknyana है पट्टी बाली कंडारस्यूं जिला पौड़ी गढ़वाल में पड़ता है। पर मेरा जन्म पौड़ी शहर में हुआ है। मैंने अपनी शिक्षा भी पौड़ी से प्राप्त की है। पर मै अपने परिवार के साथ गाँव जाती रहती थी सच बोलू !! तो मै अन्य लोगों की तरह अपने गाँव को बहुत प्यार करती हूँ। गाँव में अपनापन  होता है वहां हर चीज के साथ एक अटूट रिश्ता बना रहता है। चाहे वह पेड़ पौधे जानवर। चौक तिबारी खेत धरा पनेरा इन सब के के बिना जीवन नीरस सा लगता है। 

सवाल -भगवान ने आपको इतनी खुबसूरत आवाज दी है । इस  आवाज में जो इतना निखार है क्या इस निखार के लिए आपने संगीत की शिक्षा ग्रहण की है।अगर संगीत सीखा है कहाँ से सीखा है ?

जवाब - नहीं मैंने संगीत की कोई शिक्षा नहीं ली है बस गीतों को सुनकर ही मैंने गाना शुरू किया और बस गाती चली गयी । हाँ रियाज को मैंने अपने संगीत में प्राथमिकता दी है उसी का कारण है कि मै संगीत के इस सफर में मै यहाँ तक पहुंची हूँ। और आगे भी रियाज और अपनी मेहनत के बल पर आगे का सफर तय करुँगी। अगर दो शब्दों में कहूं तो संगीत मेरे लिए गॉड गिफ्ट है। 
सवाल - आज के समय में जहाँ उत्तराखंड संगीत का बाजार लगभग समाप्त सा हो गया है। फिर भी आपने इस अकाल के दौर में अपने आप को स्थापित किया है इसके बारे में आपका क्या कहना ?

जवाब - नही मैंने खुद को स्थपित नहीं किया। मैंने तो बस गीत गाये है और दर्शकों को वह पसंद आये और मेरा हौंसला बढ़ता चला गया। मुझे खुद पता नहीं चला कि मै उत्तराखंड संगीत में लोग और आप जैसे ब्लॉगर मुझे स्थापित समझने लगे है। इससे बड़ी बात क्या हो सकती है कि दर्शकों को मेरी प्रस्तुती पसंद आती है और वह लगातर मुझे सुनते है। 

सवाल - आपके सोशियल मिडिया पर लाखो चाहने वाले है नेगी जी के बाद आप ही जिनके फेसबुक पेज पर इतने लाइक है इस किस रूप में लेती हो आप ?

जवाब - सोशियल मिडिया में जहाँ तक मेरी फ्रेंड फ़ॉलविंग की बात है तो वह मेरे संगीत की वजह से ही बढ़ी है आज मेरे फेस बुक पेज पर नेगी जी के बाद लाखो लाइक है तो उसका कारण ही ये है कि मैंने हमेशा कर्ण प्रिय गीत गए है। जो नव जवानों को पसंद आये कई न कई मै उनके साथ जुड़ने में सफल रही। आज वह मेरे गीतों को सुनते है लाइक करते है शेयर करते है। जिसकी वजह से मेरे गीत बाकी लोगों तक पहुँचते है। ये सब उन सब का बडापन है। मेरी कोशिश होती है मै उनकी अकंक्षाओं पर खरी उतरती रहूँ। 

सवाल - क्या आपको लगता है उत्तराखंड के श्रोता बड़े उदासीन है अच्छे संगीत के प्रति भी उदासीन रहते है ?

मै इस बात को कतई नहीं मानती कि उत्तराखंड के संगीत प्रेमी अच्छे गीतों के प्रति उदासीन है। हाँ अच्छे गीत को प्रसिद्ध होने में थोडा समय लगता है। और जब वह लोगो की जबान पर चढ़ जाते है तो लोग उन गीतों में अपना प्रतिबिम्ब देखने लगते है। उत्तराखंड के श्रोताओं को अच्छे गीतों की परख बहुत अच्छी है। वह जानते है क्या सही है और क्या गलत है। 
सवाल - आप किसे गायक को अपना से प्रेरणा श्रोत मानती हो ?

जवाब - मै अपनी गायिका प्रेरणा स्रोत गढ़ रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी जी को मानती हूँ। मै बचपन से ही उनके गीत सुनते आ रही हूँ। नेगी जी के अलावा मीना राणा जी को भी प्रेरणा के रूप में लेती हूँ। जब इन दोनों लोगो को सुनती हूँ तो मुझे बहुत सकून मिलता है। 

सवाल - उत्तराखंडी संगीत का भबिष्य क्या है आज के दौर में

जवाब - उत्तराखंडी संगीत का भविष्य बहुत उज्जवल है। और ये और ज्यादा उज्ज्वल हो सकता है अगर लोगों का किसी भी रूप में सपोर्ट  हो। हमारे पहाड़ो के संगीत में बहुत ही खूबसूरत बीट्स होती है। मौसम और धुप के संगीत अपना स्वर बदलता है। सुबह की बेला में कुछ और होता है तो धूप खिलते ही कुछ और हो जाता है दिन चढ़ते ही पहाड़ो में लोकसंगीत और भी कर्णप्रिय होता जाता है। वैसे तो हमारा संगीत दुनिया के कोने कोने में पहुँच चूका है पर अभी भी उस तरह नही सुनाई देता है जैसे अन्य राज्यों का संगीत है। पर मुझे पूरा विश्वाश है अगर सभी लोग चाहे वह उत्तराखंड में हो या देश बिदेश में सपोर्ट करें गायकों को तो हमारा संगीत नाद पूरे विश्व में बिख्यात हो सकता है। क्योंकि हमारे पहाड़ों के संगीत में एक अलग तरह का मजा है हर कोई झुमने लगता है। 

सुखी संपन्न गाँव भी हो रहे है वीरान और भुतहा- देवेन्द्र शर्मा की रिपोर्ट साभार- gaonconnection.com


दूर से देखने पर यह किसी आम पहाड़ी गाँव के जैसा ही है। पहाड़ी ढलान पर बसा कियारी, हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले की रोहरु तहसील के जुब्बल-कोटखाई इलाके में स्थित एक छोटा सा गाँव है। हालांकि, यह तथ्य कि कियारी कभी एशिया का सबसे समृद्ध गाँव माना जाता था, उसे गाँवों की पारंपरिक छवि से अलग करता है।
एक समय में देश का सबसे समृद्ध गाँव कहा जाने वाला गाँव आखिर है कैसा ? यह जानने के लिए मैं गाड़ी से निकल पड़ा। कियारी शिमला से करीब 45 किलोमीटर दूर है (कुछ लोग इसे अब दूसरा सबसे अमीर गाँव कहते हैं, पहले नंबर का गाँव भी शिमला में ही है)। गाँव तक पहुंचने वाली सड़क पहाड़ों के बीच से होकर गुजरती है। जैसे ही मेरी कार गाँव के बाजार में पहुंची, मेरी पहली धारणा यह बनी कि वाकई यह अमीर गाँव है। मैंने पहाड़ों में जितने गाँव देखे हैं उनसे इस गाँव का बाजार काफी साफ था। यह बाजार एक पार्किंग में खुलता है जो अपेक्षाकृत साफ-सुथरा था।


गाँव के बुजुर्गों ने मेरा अभिवादन किया। दुआ-सलाम के बाद हम गाँव के अंदर चल पड़े। मैं हैरान था कि गाँव के मंदिर तक जाने वाले रास्ते पर टाइल्स लगी हुई थीं। निश्चित रुप से यह मेरी उम्मीदों से परे था। मुझे आशा नहीं थी कि शहरों की पागल कर देने वाली भीड़ से दूर इस गाँव का यह गलियारा इतना साफ-सुधरा होगा। मैंने एक बागान मालिक सुनील चौहान से पूछा, इस गाँव की समृद्धि का राज क्या है। मुझे उम्मीद थी कि वह बताएंगे कि कैसे गाँव में सेब की खेती से धीरे-धीरे संपन्नता आई। लेकिन उन्होंने मुझे जो बताया मुझे उस जवाब की आशा नहीं थी, सुनील ने कहा, इस गाँव के लगभग 99 पर्सेंट पुरुष सरकारी सेवाओं में हैं। मेरे पिता एक सरकारी स्कूल में अध्यापक थे, मेरे दादा जी भी सरकारी सेवा में ही थे। यही स्थिति गाँव के हर व्यक्ति की है। सरकारी नौकरी की बदौलत उनकी नियमित आमदनी या कहें आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित थी।
ग्राम पंचायत के पूर्व अध्यक्ष देवेंद्र सिंह चौहान ने बात को और स्पष्ट करते हुए कहा, चूंकि गाँव वालों की आय सुरक्षित थी इसलिए उन्होंने जोखिम उठाया और उद्यमिता दिखाई। इसमें कोई शक नहीं है कि सेब की खेती करने से गाँव में अतिरिक्त पैसा आया है, लेकिन इससे पहले भी हम आलू जैसी नकदी फसल करते थे। उस समय औसतन एक शख्स के पास 20 बीघा की जोत थी, जोकि ऊपरी पहाड़ी इलाके के हिसाब से काफी अच्छी मानी जाएगी। लेकिन अब इसमें काफी कमी आई है। उस हिसाब से गाँव के अधिकतर बुजुर्ग काफी पढ़े-लिखे थे, कुछ लोग उस समय लाहौर में पढ़ भी रहे थे। अच्छी शिक्षा और आर्थिक सुरक्षा के चलते उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में आसानी हुई।
उस समय हिमाचल केंद्र शासित प्रदेश होता था। 1962 के बाद ऐसे कई सरकारी सर्वे हुए जिनमें कियारी को एक प्रगतिशील गाँव के रुप में दिखाया गया। इसकी मुख्य वजह यह थी कि गाँव के लोगों की बचतें इतनी ज्यादा हो गईं कि सरकार को गाँव में 1967 में सब-पोस्ट ऑफिस खोलना पड़ा। 1981-82 में कियारी को बचत ग्राम घोषित किया गया, मतलब ऐसा गाँव जहां पोस्ट ऑफिस में बहुत अधिक बचतें हों। मैं पोस्ट ऑफिस भी गया जो बहुत साफ सुथरा और व्यवस्थित था। वहां जगत राम मिले। जगत राम पिछले 39 वर्ष से ग्राम डाक सेवक हैं। उन्होंने कहा, यह पोस्ट ऑफिस आस-पास के 29 गाँवों में अपनी सेवाएं देता है। अब बहुत चिट्ठियां नहीं आती हैं, जो आती हैं वे अधिकतर स्कूलों और बैंकों की होती हैं। गाँव में दो बैंकों की शाखाएं हैं – स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और कोऑपरेटिव बैंक। लेकिन आज भी बैंकों से ज्यादा पैसा पोस्ट ऑफिस में जमा है।
गाँव का भव्य मंदिर भी इस क्षेत्र की संपन्नता का उदाहरण है। इसका जीर्णोद्धार हो रहा है, इसका एक आलीशान हिस्सा तैयार हो चुका है। इसके अलावा गाँव में एक प्राइमरी, मिडिल और हाई स्कूल है। गाँव में सिविल अस्पताल, जानवरों का अस्पताल और टेलिफोन एक्सचेंज है। वास्तव में, गाँव में सभी तरह की जरुरी सुविधाएं पहले से ही उपलब्ध हैं। चौहान कहते हैं, सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे नेपाली मजदूरों के हैं। हमारे बच्चे अधिकतर शिमला में ही पढ़ते हैं।
इसके बाद गाँव के बुजुर्गों से विचार-विमर्श करने के लिए मैं गांव के प्रतिष्ठित निवासी राजेंद्र चौहान के घर पहुंचा। यहां बातचीत में एक नतीजा यह निकला कि संपन्नता के बावजूद गाँव के अधिकतर युवा गाँव से बाहर चले गए हैं। वे शहरों में रहना पसंद करते हैं। जो लोग गाँवों में रहे गए हैं उनमें से अधिकतर इन युवाओं के बुजुर्ग माता-पिता हैं। यह पूछे जाने पर कि क्यों युवा शहरी जीवन के प्रति आकर्षित हैं, राजेंद्र कहते हैं, इसकी एक वजह यह हो सकती है कि गाँवों में रहने वाले युवाओं के लिए सही रिश्ते नहीं मिलते। आप भले ही गाँव में रहकर, सेब की खेती करके एक करोड़ रुपये कमाते हों लेकिन लड़कियों को आपमें कोई रूचि नहीं होगी। वे चाहती हैं कि उनके होने वाले पति शहर में रहकर कोई नौकरी करें, भले ही उनकी तनख्वाह सेब की खेती से होने वाली कमाई का एक अंश भर हो। सवाल उठता है कि गांव में रहने वाली लड़कियां अपने होने वाली पति के बारे मेँ क्या सोचती हैं? वे भी शहरों में रहने वाले लड़कों को ही वरीयता देती हैं।

निश्चित तौर पर यह चिंताजनक बात है। अधिकांश समाजशास्त्री गांवों में अवसर की उपलब्धता न होने को शहरों की ओर होने वाले पलायन के लिए जिम्मेदार मानते हैं। लेकिन मैँने कियारी में जो देखा वह एकदम अजीब था, जहां लोग समृद्ध गांवों को भी छोड़कर जा रहे हैं। असल में, यह प्रवृत्ति हिमाचल प्रदेश की पूरी सेब पट्टी में दिखाई देती है। उत्तराखंड के आर्थिक रुप से असुरक्षित सैकड़ों गांव वीरान पड़े हैं यह बात मेरी समझ में आती है। यह पलायन का सामान्य सा उदाहरण है। लेकिन हिमाचल प्रदेश के समृद्ध, संपन्न गांव भी भुतहा गांव बनते जा रहे हैं, कोई इसकी व्याख्या कैसे करेगा?

साभार - gaonconnection.coom

Monday, 22 January 2018

जानिए पहाड़ के युवा कपिल की कहानी, सभी उत्तराखंडियों को पढ़ना बहुत जरूरी ये नहीं पड़ा तो कुछ नहीं पड़ा - जन तक के सौजन्य से


जन तक के सौजन्य से- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान उत्तराखंड में आकर कहा था पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी कभी उसके काम नहीं आती लेकिन एक युवा ने उनकी इस बात को झुटला दिया है और आज लाखों उत्तराखंडियों के लिए प्रेरणा का कारण बना हुआ है। हम यहाँ बात कर रहे हैं जिला रुद्रप्रयाग के ग्राम सभा टेमरिया-डमार के रहने वाले कपिल शर्मा ने, जो अभी हैं मात्र 26 साल के और इस 26 साल की युवा अवस्था में ही उन्होंने ऐसे कार्य कर दिए हैं जिसके लिए आम आदमी को दूसरा जनम लेना पड़े।
पहाड़ में ये एक आम धारणा है की जहाँ 12वीं कक्षा पूरी हुई, बस उसके बाद अपना बोरिया बिस्तर बांधो और निकल जाओ रोजगार के लिए दिल्ली, मुंबई जेसे महानगरों में रोजगार की खोज के लिए, पर कपिल की सोच कुछ अलग थी वो अपने गाँव में ही रहकर कुछ ऐसा करना चाहते थे कि जिससे यहीं रोजगार हो और लोग उन्हें देखकर वापस फिर अपने पहाड़ों की ओर लोटें, राजकीय इंटर कॉलेज भीरी से 12वीं करने के बाद जब उनके सारे साथी उन्हें छोड़कर बाहर शहरों की ओर जा रहे थे तो वहीँ कपिल ने गाँव में ही रहने का निश्चय किया, और उन्होंने कृषि में व्यवसाय शुरू करने का निश्चय किया, सबसे पहले तो उन्हें अपने घर से ही कड़े विरोध का सामना करना पड़ा क्यूंकि उनके घर वाले इस काम के लिए तैयार नहीं थे, जैसे तैसे उन्होंने अपने घर वालों को इस बात के लिए राजी किया।
आज से लगभग 5 साल पहले उन्होंने अपना कृषि का काम शुरू कर दिया, और उन्हें उस समय इन सभी चीजों का कोई अनुभव भी नहीं था जिसके कारण शुरू के दो साल तो खेतों में इतना भी उत्पादन नहीं हुआ की वो उनसे नए बीज खरीद सकें, आमदनी होना तो दूर की बात है, इस दौरान उनके घरवाले, गांववाले और बाकी लोग उन्हें तरह तरह के ताने देते रहे पर कपिल ने हिम्मत नहीं हारी और वो कृषि से सम्बंधित नयी नयी जानकारियां लेकर कार्य करते रहे, और अब पिछले तीन साल से उनका व्यवसाय सरपट दौड़ता जा रहा है।
इस दौरान उन्होंने अपने पहाड़ में पैदा की जा सकने वाली और भी बहुत सारी चीजों की जानकारी एकत्रित की और कपिल शर्मा यहाँ सब्जियों के खेती के साथ साथ और भी बहुत सारे व्यवसाय शुरू कर चुके हैं| अब हर साल कपिल अपने खेतों में फूलों की खेती भी शुरू कर चुके हैं जिनकी पूरे छेत्र में बहुत मांग रहती है, यहाँ तक कि उनके द्वारा उगाये गये फूलों की डिमांड केदारनाथ मंदिर में भी रहती है और अब हर साल वो वहां भी अपने फूल पहुंचाते है। इसके अलावा कपिल ने अपने खेतों में डेरी व्यवसाय भी शुरू कर दिया है, वहां उन्होंने सबसे पहले गौशाला का निर्माण किया और अब वहां 2 देशी गाय रखी गयी हैं जो प्रतिदिन 20 लीटर से भी अधिक दूध देती हैं। इसके अलावा भी इस पहाड़ी नौजवान ने अपने फ़ार्म में मत्स्य पालन भी पिछले साल से शुरू कर दिया है अब इस काम से भी कपिल की अच्छी खासी आमदनी हो जाती है, और अब वो खुद को ऑर्गेनिक खेती की ओर भी ले जा रहे हैं। इन सब के अलावा भी कपिल अपने क्षेत्र में नवयुवकों को खेती से जुड़ने के लिए लगातार प्रशिक्षण देते आ रहे है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग अपने पहाड़ों की तरफ वापस लौटें।
अगर 3 साल पहले की बात करैं तो जहाँ कपिल सालाना 3 लाख कमा रहे थे तो पिछले 2 साल पहले उनका व्यवसाय 3 लाख से बढकर 5 लाख हो गया था और अगर बात पिछले साल की हो तो वो 7 लाख से उपर जा चुका है और उन्होंने अब इस बार 10 लाख का टारगेट अपने लिए रखा है। इसके साथ साथ पूरे उत्तराखंड के लोग भी उनके इन सारे कार्यों से काफी प्रभावित हो रहे हैं, इसी कड़ी में रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी श्री मंगेश घिल्डियाल जी भी पिछले दिनों उनके फ़ार्म में गये थे और उनके इन सभी कार्यों से काफी प्रभावित नजर आये और उन्होने कपिल शर्मा को ऐसे ही आगे बड़ने को कहा। तो पूरा उत्तराखंड सलाम करता है युवा कपिल शर्मा के इस जज्बे को और उम्मीद करता है कि आने वाले समय बाकी बाकी लोग भी इस काम से जुड़ेंगे और जिससे पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम आ सके।

Wednesday, 10 January 2018

उत्तराखंड एकता मंच द्वारा लगाए बृक्ष पर लगने लगे फल


दिल्ली में रहे रहे लाखों उत्तराखंड़ियों तक पहुँच चुका है उत्तरैणी महोत्सव का पर्व। दिल्ली में उत्तराखंड के लोगों जिन जिन क्षेत्र में बड़ी तादाद में रहते है। उन क्षेत्रो में उत्तरैणी महोत्सव का आयोजन बड़े स्थर पर हो रहा है। जिसमे से 95 प्रतिशत जगह पर दिल्ली सरकार आर्थिक तौर पर मदद दे रही है वही कई जगह छोटे स्तर पर ही सही पर अपने संसाधनों से इस उत्सव को मना रहे है। दिल्ली में निवास कर रहे लाखों की संख्या में पहाड़ के लोगो को कई न कई ये महसूस हो रहा था कि वह अपने त्यौहार के प्रति बहुत उदासीन है। जिस कारण सांस्कृतिक तौर पर वह राष्टीय स्तर पर अपनी पहचान नहीं बना पा रहे है । और वह अपने बच्चो को संस्कृति का यह रंग नही दे पा रहे थे। अब लोगों में अपने त्यौहारों के प्रति जागरूकता का संचार हुआ है उससे यह तो सुनिश्चित हुआ है अगर हमे कोई एक डोर एक सही राह पर ले जाए तो हम सब सकारत्मक सोचकर अपने संस्कृति भाषा और सभ्यता को अलग स्थर देने का जूनून रखते है। जिस प्रकार से संस्थाएं घर घर जाकर लोगो को इस त्यौहार में जोड़ रही है वह काबिले तारीफ है। और साथ में पहाड़ के उन लोगों को भी सम्मनित क्या जा रहा है जो पहाड़ के गाँव में रहकर जमीनी स्थर पर काम कर रहे है। 
जिस बीज को उत्तराखंड एकता मंच दिल्ली ने बोया था आज वह बृक्ष के रूप में खड़ा हो चूका है और अब उस में फल लगने शुरू हो चुके है जिन फलों का आनंद आने वाली पीढ़ी उठाने को तत्पर है। हलांकि इस पर्व को दिल्ली सरकार ने अपना समर्थन देकर इसे सरकारी स्तर पर पहचान दी है। पर अभी भी दिल्ली सरकार से उत्तरैणी के लिए अलग से फंड देने की और उत्तराखंड भाषा अकादमी मांग इस उत्तरैणी में सभी संस्थाएं रख रही है।
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गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली

 गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली        गढ़वाली भाषा का प्रारम्भ कब से हुआ इसके प्रमाण नहीं मिलते हैं। गढ़वाली का बोलचाल या मौखिक रूप तब स...