Wednesday, 27 December 2017

❝#लाटू एैना❞ - #गढ़वाली ग़ज़ल Pardeep Singh Rawat Khuded

त्वे   देखणू   च,   त्वे   भलु   कैकी   हेरूणू   च, 
पर   कैमा   कुछ   नि   बोनू   च,   स्यू   लाटू   एैना।।

त्येरि  कतमति  ज्वन्या  राज  जणू  च,  त्वे  पढू  च,
पर कैमा  स्यू  भेद  नि  खोलणू  च,  स्यू  लाटू  एैना।।

लुकी  छुपी  स्याणी  कनू  च,  मन  मा  गाणी  कनू च,
अपड़ी तै जिकुड़ी बात  नि  बोनू  च,  स्यू  लाटू  एैना।।

नटू का  सि नखरा  साणू,  सिंदूरी  का  लटूला  बिराणू,
बंद होंठड्यूँ  का  किस्सा  नि  सुणाणू,स्यू  लाटू एैना।।

हरके  फरक्वे  कि  त्वे  निहारी, वर्षू  त्वे  सजे  संवारी, 
मन मारी  निभाणू  आज  दुन्यदारी  स्यू  लाटू  एैना।।

पीठी  मा काळा  तिले  बिंदी,  नजर  कू  च  त्येरु  टीकू,
देखी बी अनदेखी कै, बडू  सचू  सीधू  स्यू  लाटू  एैना।।

हौर क्या बातो हौर क्या  सुणो  लाज  न  व्हेल्य  लाल,
हौर कुछ भेद भेदौलू एैसू का ये साल  स्यू  लाटू एैना।।

रुप  कि  तै  धूप  देखि  साँची   माये कि लाळ चुवान्दू,
साख्यूँ बटि माये कि आस मा टपरांदू स्यू लाटू एैना।।

#प्रदीप रावत ❝खुदेड़❞
28/12/2017

Saturday, 23 December 2017

रिलीज हुआ पांडवास का नया गीत "शकुना दे"


रचना, टाइम मशीन, फुलारी, के वाद रिलीज हुआ पण्डवास का नया उत्तराखंडी गीत "शकुना दे" गौरतल है कि "शकुना दे" से पहले पण्डवास को हर गीत को लोगों ने तारीफ की थी और लोगों को पण्डवास से हद से ज्यादा  उमीदे है  कि  वह एक और सुन्दर गीत लेकर आएंगे जो उत्तराखंड के संगीत उद्योग में मील का पत्थर सावित  होगा, इस आर पण्डवास कुमाउनी गीत को लेकर दर्शकों के आये है, 

डोला पालकी आंदोलन के जनक जयानंद भारती डॉ विवेक आर्य

गढ़वाल में सवर्णों तथा स्थानीय मुसलमान युवक -युवतियां के विवाह के अवसरों पर डोला-पालकी के उपयोग की परंपरा सदियों से रही है। बारात में डोला-पालकी उठाने का कार्य मुख्यत शिल्पकार ही करते थे। किन्तु सवर्ण समाज ने उन्हें अपने ही पुत्र पुत्रियों के विवाह के अवसर पर डोला-पालकी के प्रयोग से वंचित कर दिया था। शिल्पकार वर वधुओं को डोला-पालकी तथा ऐसी सवारियों पर बैठने का सामजिक अधिकार नहीं दिया गया था। नियम के प्रतिकूल आचरण करने वाले शिल्पकारों को दण्डित किया जाता था।

गढ़वाल में आर्य समाज की स्थापना के प्रारम्भ में गंगादत जोशी (तहसीलदार) जोतसिंह नेगी (सेंताल्मेंट आफसर),नरेंद्र सिंह (चीफ रीडर) आदि प्रबुद्ध लोगों ने आर्य समाज के विचारों को जनता तक पहुँचाने का कार्य किया था। किन्तु असंगठित और कम व्यापक होने के कारण इनके प्रयत्न सीमित क्षेत्र तक ही प्रभाव स्थापित कर सके।

यह वर्ग सवर्णों की अपेक्षा आर्थिक दृष्टि से भी बहुत पिछड़ा हुआ था। 20वीं शताब्दी के नवजागरण के प्रभाओं से उत्पन्न चेतना के फलस्वरूप शिल्पकार नेतृत्व के रूप में जयानंद भारती का आविर्भाव हुआ। सन 1920 के पश्चात जयानंद भारती के नेतृत्व मैं शिल्पकारों की सामजिक,आर्थिक,समस्याओं तथा,उनमें व्याप्त कुरीतियों के हल के लिए संघठित प्रयास किये गए। नेता जयानंद भारती ने सवर्ण नरेंद्र सिंह तथा सुरेन्द्र सिंह के साथ मिलकर शिल्पकारों में व्याप्त कुरीतियाँ दूर करने बच्चों को शिक्षा के लिए स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया।

कुमाऊ में लाला लाजपत राय की उपस्थिति में सन 1913 में आर्य समाज के शुद्धिकरण के समारोह में शिल्पकारों को जनेऊ देने का कार्यकर्म चलाया गया।
शिल्पकारों को जनेऊ दिए जाने के फलस्वरूप गढ़वाल में भी आर्य समाज द्वारा सन 1920 के पश्चात् जनेऊ देने का कार्यक्रम चलाया गया था। शिल्पकारों के मध्य जन-जागरण कार्यक्रम के अर्न्तगत सवर्णों के एक वर्ग विशेष द्वारा शिल्पकारों के साथ संघर्ष की घटनाएं इस तथ्य की ओर संकेत करती है कि रूढिवादी व्यक्ति समाज मैं परिवर्तन में अवरोधक बन गए थे।

गढ़वाल में ईसाई मिशनरियों के कारण निर्बल शिल्पकार वर्ग में धर्मांतरण की बढती रूचि बढ़ना एक बड़ी चुनौती थी । फलस्वरूप आर्यसमाज द्वारा ईसाई मिशनरियों के कुचक्र को रोकने के लिए शिल्पकारों के मध्य उनके सामाजिक, आर्थिक पिछडेपन को दूर करने के लिए प्रयत्न किये गए। इन प्रयासों में 1910 में दुग्गाडा में पहला आर्य समाज का स्कूल स्थापित किया गया था। तत्पश्चात 1913 में स्वामी श्रद्धानंद द्वारा आर्य समाज का स्कूल प्रारंभ किया गया। गढ़वाल में आर्य समाज से इन प्रारम्भिक प्रयत्नों से एक ओर जहाँ आर्य समाज के कार्य क्षेत्र में अपेक्षाकृत वृद्धि ही वही दूसरी ओर शिल्पकार में शिक्षा के प्रति रुझान भी बढ़ा। इससे शिल्पकारों के ईसाईकरण के प्रयास शिथिल पड़ने लगे। शिल्पकारों में अशिक्षा कितनी थी इसका अनुमान इसी तथ्य से चलता है कि प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व तक गढ़वाल में एक भी शिल्पकार इंट्रेस परीक्षा उतीर्ण नहीं था।

गढ़वाल मेंआर्य समाज को विस्तार देकर शिल्पवर्ग की सहानुभूति अपने पक्ष में करने के उद्देश्य से आर्य प्रतिनिधि सभा के उपदेशक सन 1920 में गढ़वाल के प्रमुख नगरो कोटद्वार,दुगड्डा,लेंसिदौन,प ोडी,श्रीनगर में भेजे गए। इनमें गुरुकुल कांगडी के प्रचारक नरदेव शास्त्री जी प्रमुख व्यक्ति थे। गढ़वाल में आर्य समाज के आन्दोलन के रूप में गाँवों तक पहुँचने के उद्देश्य से नगर-कस्बों के पश्चात् चेलू सैन,बीरोंखाल,उदयपुर,अवाल्सु ं,खाटली,रिन्ग्वाद्स्युं आदि ग्रामीण क्षेत्रों में आर्य समाज की शाखाएं और विद्यालय आदि स्थापित कर ईसाई मिशनरी की चुनौती को स्वीकार किया गया।

1920 में आर्य समाज के तत्वावधान में अकाल राहत व शैक्षणिक कर्यकर्मों के प्रारम्भ होने के पश्चात् शिल्पकारों को सवर्णों के समान सामजिक अधिकार दिलाने के उद्देश्य से उनका जनेऊ संस्कार भी आर्यसमाज द्वारा आरंभ किया गया। इस प्रकार सन1924 में जयानंद भारती के नेतृत्व में डोला-पालकी बारातें संगठित की गई। इस प्रयास में कुरिखाल तथा बिंदल गाँव के शिल्पकारों की बारात ने डोला-पालकी के साथ कुरिखाल से बिंदल गाँव के लिए प्रस्थान किया। मार्ग में कहीं भी सवर्णों के गाँव नहीं पड़ते थे।

कुरिखाल के कोली शिल्पकार भूमि हिस्सेदार होने के कारण अन्य शिल्पकारों की तुलना में संपन्न थे। दूसरी ओर उन्नी व्यवसाय के कुशल शिल्पी के रूप में इनके कुटीर उद्योग भी समृद्ध थे। इस स्थिति का लाभ उठाकर जातिवाद को चुनौती देने के उद्देश्य से आर्य समाजी नेताओं के संरक्षण में डोला-पालकी बारात निकाली गई। किन्तु एक घटना के अनुसार दुगड्डा के निकट चर गाँव के संपन्न मुस्लिम परिवार के हैदर नामक युवक के नेतृत्व में हिन्दू सवर्णों द्वारा जुड़ा स्थान पर शिल्पकारों की बारात रोकी गई। तत्पश्चात डोला-पालकी तोड़कर बारातियों के साथ मार- पीट की गयी। प्रशासन के हस्तक्षेप किये जाने के उपरांत भी चार दिन तक बारात मार्ग में ही रुकी रही। ऐसी अनेक घटनाएं उस काल में हुई। आर्य समाज के प्रभाव में आकर जब जब दलितों ने डोला-पालकी में नवविवाहितों को बैठाने का प्रयास किया तब तब उनके साथ मारपीट और लूटपाट की गयी। ऐसा व्यवहार दलितों की सैकड़ों बारातों के साथ हुआ। भारती जी न केवल संघर्ष के मोर्चे पर खड़े हुए बल्कि अदालतों में भी वाद दायर किये।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दलित शिल्पकारों के हक़ में फैसला दिया गया। लेकिन सवर्णों का अत्याचार रुका नहीं। जयानंद भारतीय ने सत्याग्रह समिति बना कर इन अत्याचारों के विरुद्ध लड़ाई जारी रखी। देश के बड़े नेताओं गोविन्द बल्लभ पन्त, जवाहर लाल नेहरु और महात्मा गांधी को भी उन्होंने इन अत्याचारों से अवगत कराया गया। गांधी जी को पत्र लिख कर,उन्होंने आग्रह किया कि गढ़वाल में शिल्पकारों की बारातों पर अत्याचार बंद होने तक वे व्यक्तिगत सत्याग्रह पर रोक लगा दे। गांधी जी ने भारतीय जी के पत्र को गंभीरता पूर्वक लिया और गढ़वाल में हरिजनों के उत्पीड़न बंद होने तक व्यक्तिगत सत्याग्रह पर रोक लगा दी। अखिल राष्ट्रीय स्तर पर डोला-पालकी के लिए यह संघर्ष किया गया।

अंत में अनेक प्रयासों जनजागरण के पश्चात शिल्पकारों को अपना हक आर्यसमाज ने दिलवाया। डोला-पालकी आंदोलन लगभग 20 वर्ष तक चला। इस आंदोलन के प्राण जयानंद भारती थे। एक निम्न शिल्पकार परिवार में जन्म लेकर जयानंद भारती ने स्वामी दयानंद के समानता के सन्देश को जनमानस तक पहुँचाने के लिए जो संघर्ष किया। यह अपने आप में एक कीर्तिमान है।

आज हमारे देश की दलित राजनीति में जयानंद भारती और आर्यसमाज के दलितौद्धार के कार्य को पुनः स्मरण तक नहीं किया जाता। केवल डॉ अम्बेडकर और ज्योतिबा पहले के प्रयासों का स्मरण किया जाता हैं। कारण वोट बैंक की राजनीती है। आईये हम उन महापुरुषों के योगदान से समाज को अवगत करवाये।
डॉ विवेक आर्य

Friday, 22 December 2017

उत्तराखंड के ग्राम सिरवाना रिखणीखाल ब्लॉक पौड़ी गढ़वाल मूल निवासी अजय मदद के लिए सोशियल मिडिया आगे आया


19 दिसबर को दिल्ली में उत्तराखंड के ग्राम सिरवाना रिख णी खाल ब्लॉक पौड़ी गढ़वाल मूल निवासी अजय डीटीसी बस की टक्कर से बुरी तरह घायल हो गया था । जिसे मैक्स आस्पताल में भर्ती किया गया था अब आर एम् एल में शिप्ट कर दिया है दिल्ली सरकार के कहने से , जैसे इस खबर का पता रिखणी खाल महोत्सव वाट्सअप ग्रुप को लगी उन्होंने तुरंत लोगो से अजय की मदद करने का आग्रह किया और कुछ लोग अजय की मदद के लिए आस्पताल पहुँच गये तथा कुछ लोगो ने सोशियल मिडिया के माध्यम से आर्थिक मदद करने के लिए लोगों से अपील की, देखते देखते लोग अजय की मदद के लिए आगे आने लगे और अपने छोटे छोटे आर्थिक सहयोग से अजय के चाचा के अकाउंट में पैसे डालने शुरू कर दिए। गाँव से भी रिखणी खाल मार्किट के लोगों ने एक बहुत बड़ी राशि एकत्र करके अजय की मदद की। और आज इतनी रकम इकठ्ठा हो गयी कि हम कह सकते है कि अब अजय के इलाज में कोई कमी कसर नही रहेगी। हालाँकि अभी रिखणी खाल की टीम दिल्ली के उप मुख्यमंत्री से मिलकर आयी दिल्ली सरकार ने अजय के इलाज का पूरा खर्चा उठाने की जिमेदारी ली है और आश्वासन दिया है अगर अजय को बड़े आस्पताल में शिफ्ट करना पड़े तो उसका खर्चा भी सरकार उठाएगी।

जहाँ कुछ ग्रुप लोगों को लड़ाने का कार्य करते है वही रिखणीखाल महोत्सव ग्रुप ने यह साबित कर दिया कि सोशियल मिडिया का उपयोग अगर अच्छे काम के लिए किया जाये तो समाज में बदलाव आ सकता है।
गौरतलब है की रिखणीखाल में 2018 के मई महीने में तीन दिनों का एक बहुत बड़ा महोत्सव होने जा रहा है जिसका मूल मकसद ही लोगों के जनजीवन में बदलाव लाना है। इस महोत्सव में उत्तराखंड के आलवा देश की कई जानी मानी अलग अलग क्षेत्र की हस्तिया भाग ले रही है। इसमें कई कम्पनियां रोजगार देने के लिए इसका हिस्सा बनने जा रही है। यह महोत्सव अन्य महोत्सव से अलग होगा। यहाँ नाच गाना कम सामाजिक साहित्य स्वरोजगार और लोगों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता लाना मूल मकसद है।

Monday, 18 December 2017

❝टल्खी❞


फोटो - दिनेश कंडवाल 

ज्यू प्राण से ज्यदा प्यारी च त्वे स्या टल्खी,
दुन्यादारी से ज्यदा न्यारी च त्वे स्या टल्खी।

त्येरा मुंडे कि सौ शान च त्येरि स्या टल्खी,
त्वे कु आन बान सम्मान च त्येरि स्या टल्खी।

काम धाण मा त्वे दगड़ा च त्येरि स्या टल्खी,
खाण कमाण मा त्येरा दगड़ा च स्या टल्खी।

बरखा भिगई निवति सुखाई त्येरि स्या टल्खी,
कमर मा बंधी रंग मा डुबाई त्येरि स्या टल्खी।

स्वामी से ज्यदा ख्याल मा रखि च स्या टल्खी,
हमेशा लोखू का सवाल मा रखि च स्या टल्खी।

खौळा मेंळो मा त्येरु श्रृंगार सजांदी स्या टल्खी,
ब्यौ बरात मा हल्दी सी निखार लांदी स्या टल्खी।

मैत्यूँ कि दान मा दिई त्वे तै स्या प्यारी टल्खी,
दग्द्यों कि मगज लगे दिई त्वे स्या दुलारी टल्खी।

भै- भूलों का याद मा रंगी च त्येरी स्या टल्खी,
चचि बोड्यों का लाड मा रंगी च त्येरि स्या टल्खी।


प्रदीप रावत ❝ खुदेड़❞
01/12/2017

सर पर रखने की चदररी  को ❝टल्खी❞  का जाता है 

Sunday, 17 December 2017

उत्तराखंड के तीन और लाल लेंगे देश की सुरक्षा में अहम् जिम्मेदारी-मदन जैड़ा



मदन जैड़ा एनडीए सरकार में उत्तराखंड के अधिकारियों को सेना एवं शासन में अहम पदों की जिम्मेदारी दी जा रही है। थलसेना के प्रमुख बिपिन रावत हैं। अब नए साल में तीन लेफ्टिनेंट जनरलों को सेना में अहम जिम्मेदारी दी जा रही है। नए साल में ये तीन वरिष्ठ अधिकारी अपनी नई जिम्मेदारी संभालेंगे।सेना में डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशन (डीजीएमओ) का पद अहम होता है। अभी लेफ्टिनेंट जनरल ए. के. भट्ट डीजीएमओ हैं। जो मूलत: उत्तराखंड के पौड़ी जिले के निवासी हैं। लेकिन उन्हें अब दूसरी अहम जिम्मेदारी दी जा रही है। वे 15 कार्प के कमांडर बनाएं जाएंगे। इस कार्प का मुख्यालय श्रीनगर में है। पाकिस्तान के खिलाफ अब तक हुए सभी युद्धों में अहम भूमिका निभाने वाली यह कार्प उत्तरी कमान की सबसे महत्वपूर्ण कार्प मानी जाती है। भट्ट जल्द इसके कमाडर का कार्यभार संभालेंगे।सेना से जूड़े सूत्रों के अनुसार, नए डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान होंगे। वे भी पौड़ी जिले के मूल निवासी हैं। चौहान अभी 3 कार्प कमॉडर हैं। इस कार्प का मुख्यालय दीमापुर है जो पूर्वोत्तर से जुड़े अहम मुद्दों को देखती है। सूत्रों के अनुसार इस महीने के तहत तक लेफ्टिनेंट जनरल चौहान नए डीजीएमओ के रूप में कार्यभार संभाल सकते हैं। उत्तराखंड मूल के तीसरे बड़े अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल जे. एस. नेगी हैं जो अभी 2 कार्प के कमांडर हैं। इसका मुख्यालय अंबाला में है। उन्हें स्ट्रैजिक फोर्सेज कमांड का कमांडर बनाया जा रहा है। यह कमान वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में सृजित हुई थी जिसे स्ट्रैजिक न्यूक्लीयर कमांड के रूप में भी जानते हैं। इस कमांड के जिम्मे न्यूक्लीयर वैपन और इससे जुड़ी रणनीति होती है। यह न्यूक्लीयर कमॉड अथॉरिटी का हिस्सा होती है। बता दें कि पौड़ी जिला वर्तमान सेना प्रमुख का गृह क्षेत्र भी है। खास बात यह है कि तीन अधिकारी गोरखा रेजिमेंट से हैं। सेना प्रमुख भी गोरखा रेजिमेंट से हैं।उत्तराखंड के लोग अहम पदों पर: सेना प्रमुख बिपिन रावत और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल उत्तराखंड से हैं। हाल में पूर्व नौसेनाध्यक्ष डी. के. जोशी को अंडमान-निकोबार का उपराज्यपाल बनाया गया है। रॉ प्रमुख, कोस्ट गार्ड के प्रमुख भी उत्तराखंड से हैं। हाल में प्रदीप सिंह खरौला को एयर इंडिया का सीएमडी बनाया गया है, वे भी उत्तराखंड के हैं।

Friday, 15 December 2017

❝त्येरि स्य दथुड़ी❞ - गढ़वाली ग़ज़ल (एक घसेरी के जीवन में दथुड़ी का क्या महत्व होता है इस ग़ज़ल में पढ़िए)

एक घसेरी के जीवन में दथुड़ी का क्या महत्व होता है इस ग़ज़ल में पढ़िए  

मन मा बसी करछ्य रोपी त्येरि स्य दथुड़ी,
पैथरा पयाळी संधणे बेंडिन बणी त्येरि स्य दथुड़ी।।

छुणकोण सजी मैत बटि अयि त्येरि स्य दथुड़ी,
कुळे का क्वीलों तचि हथड़ोन थेंचि त्येरि स्य दथुड़ी।।

करड़ा लोखरन गढ़ी धार चढ़ी त्येरि स्य दथुड़ी
डडवार दे कि मिली पैलुड़ी न बंधी त्येरि स्य दथुड़ी।।

डैबरा लुकायी पतरोवा छिनायी त्येरि स्य दथुड़ी,
डंडकोरन छुड़ायी स्वामी मँगायी त्येरि स्य दथुड़ी।।

एक हत्या बणायी जिकुड़ा लगायी त्येरि स्य दथुड़ी,
तै बिगर त्येरि दुन्या नि प्राणू से प्यारी त्येरि स्य दथुड़ी।।


प्रदीप रावत ❝खुदेड़❞
15/12/2017

गौरा देवी पर आधारित गीत नाटिका Gaura Devi was an India Chipko activist in the Himalayas























गौरा- हाथ  जोड़ी  या  गौरा  बिनती  कनि  च,
         न  काटा  यूँ  डाळयूँ  तै  हाथ  जोणी  च
         यू डाळी छन ये पाडों कू भोळ और आज,
         यूँ का प्रति सुरक्षित च  या  धरती आज 


अधिकारी - बाठू रोक न  गौरा  तू  डाळी  कटण  दी,
                  सरकरी हुक्म च वे तै हम तै मनण दी 


गौरा - प्यार से  बौनू  छौ   प्यार  से  तुम  सुण ल्यावा,
          जन तुम  ऐ  छा  वुनि  वापस  तुम  बौडी जवा 
          डाळयूँ समणी जाण से पैलि हमसे लण पोड़लू,
          डाळयूँ कटण से पैली यी गौरा तै कटण पोड़लू 
          यूँ तै सैंती पाळी  हमन  अपड़ा  नोन्यळ  जन,
          प्राण  त्यागी त बी हमुन डाळयूँ कि रक्षा कन


अधिकारी- तिल सामान छै तू गौरा  त्येरि क्या  औकात  च,
                 घार चूलू चौका कैर तू त्येरि बस कि नि बात च 


गौरा - काट द्योलू मि मार द्योलू थमेळी  म्येरा हाथ च,
          तिलु रौतेली बण जौलू मि या पाड़े  नारी  जात च
          चला दीदी भूल्यूँ यूँ डाळयूँ पर तुम  चिपकी जवा,
          यी धरती का दुश्मनू तै तुम पाड़ बटि दूर भगावा
          यूँ  का   प्रताप   से   बौग्णीन   यू   गंगा   जमना,
          यूँ  का   प्रताप   देखि   धरती  मा  बसंत   हमना


अधिकारी - मान  जा  गौरा  तू  बात अबी बी  बक्त  च,
                  प्रशासनो  कू  अयू  ऑडर  शक्त  च 


गौरा - जा बोल दिया वे मंत्री  मा ,
          पाड़ मा कै तिलु रौतेल्यूं जन्म लियेल 
          चिपकी गेन डाळयूँ पर,
          चिपको आन्दोलन स्यून चलेयेल 
          अगेलू हमनू जग्येल, 
          आग अब सरा पाड़ देश मा लगेली  
          चिपको आन्दोलन कि क्रांति ऐगी,
          अब यू पर्यवरण बिरोधी सरकार जगेली 

          
          प्रदीप रावत ❝खुदेड़❞
          14/12/2017

गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली

 गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली        गढ़वाली भाषा का प्रारम्भ कब से हुआ इसके प्रमाण नहीं मिलते हैं। गढ़वाली का बोलचाल या मौखिक रूप तब स...