खैरी छै त्वे कुछ अगर, मेमा तू बतांदी।
पर तू पट द्वार ढाकी,दग्द्या इन नि रुसांदी।।
एक मन एक ज्यू च हमरु,पीड़ तू नि लुकांदी।
पर पट बात बंद कैकी, दग्द्या इन नि रुसांदी।।
अजमे लेंदी में कुछ त, बात मने बिन्गांदी।
पर छट हाथ छोड़ी तै, दग्द्या इन नि रुसांदी।।
धौ सन्क्वे प्रीत लय लगे, धागु सी नि उल्झांदी।
दांतून कट तोड़ी की, दगद्या इन नि रुसांदी
अखोड़ सी चमलि माया, पर स्यूंण नि गुच्यान्दी।
में जोड़ी पीठ कैकी, दगद्या इन नि रुसांदी।।
छोड़ छोड़ नार हठ तू, इकलांस नि सुवान्दी।
"खुदेड़" खुदमा खुदेणु च, व्हे हौर नि रुवांदी ।।
प्रदीप रावत "खुदेड़"
13/09/2017
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