सुरेन्द्र सेमवाल एक ऐसा गायक जो लगातार अपने अच्छे और कर्ण प्रिय गीतों से धीरे धीरे लोगों के दिल में जगह बनाने में सफल हो रहा है। इस बार उनका गीत "माँजी म्येरि" LAXMINARAYAN MUSIC के बैनर तैले रिलीज हुआ है इस गीत में संगीत दिया है मोती शाह जी ने यह माँ को समर्प्रित है जो अपने बच्चो की ख़ुशी के लिए अपना सारा जीवन कष्टमय बना देती है। इस गीत के शब्द हर किसी को पसंद आ रहे है। आपको बता दे की सुरेन्द्र सेमवाल गायक होने के साथ साथ गढ़वाली भाषा के अच्छे गीतकार भी है यही कारण है कि उनकी कलम से निकला हरेक आखर लोगो के दिलो को छूं जाता है। इस से पहले भी उनके कई गीतों ने धूम मचाई हुई है। बिन्दुमती गीत जो सुपर डुपर हिट हुआ था वही "डोबरा चटी पुल" "चकबंदी" और "सुप्न्यो कु उत्तराखंड"जैसे जनसरोकारी गीतों ने यह साबित कर दिया कि वह उत्तराखंड की हालात से चिंतित है और वह अपने गीतों के माध्यम में लोक जागरण करके उन्हें झकझोरने में कोई कसर नहीं छोड़ेगे। इसी जन भावना को देखकर उन्हें गरीब क्रांति आन्दोलन ने दो साल पहले उन्हें देहरादून में मुख्य अथिति बनाकर सम्मानित किया था।
Tuesday 31 October 2017
पहाड़ केवल साइबर मिडिया में आबाद है,
पहाड़ केवल साइबर मिडिया में आबाद है,
सच तो ये है पहाड़ अब पहाड़ में ही बर्बाद है ।
कुछ नुकसान किया पहाड़ में सुआर और बन्दरों ने,
बाकि जो बच गया उसे उजड़ा डाम के थोकदारों ने ।
जब से मनरेगा ने पहाड़ में पसारे है पाँव,
तब से बंजर के बंजर हुए पहाड़ के गाँव।
गाय भैंस है नहीं अब, खेतों में कहाँ खाद है,
सच तो ये है पहाड़ अब पहाड़ में ही बर्बाद है ।
कुछ मिट्टी रेत हडपी पहाड़ की खनन माफियों ने,
बाकि जो बची थी उसे बहाया बरसाती आपदाओं ने।
कुछ हरे भरे जंगल स्वा किये गर्मियों की आग ने,
बाकि जो बचे थे उसे कटवाया भ्रष्ट बिभाग ने।
अपनी सरकार के पास नहीं कोई जवाब है
सच तो ये है...............................
कुछ खून की कमी ने मारा पहाड़ की नारी को ,
कुछ को मारा शराबी मर्द ने
कुछ को इकुलांस के बोझ ने मारा ,
कुछ को मारा स्वीली दर्द ने।
कुछ बच्चों का भबिष्य अन्धकार किया ,
हलधर मास्टर ने ।
बाकि जो बचा था उसे बर्बाद किया ,
अस्पताल में बिन डाक्टर ने ।
मुख्यमन्त्री जी हवा में मंत्री बिदेश की सैर में,
खूब लूट रहे है उत्तराखंड को दोस्तों दिन दोपहर में।
कैसे करे बिकास न नीति है न नीयत है साफ,
जैसा प्रशासन है दोस्तों वैसे हम और आप।
Monday 30 October 2017
उत्तराखंडी संगीत में नया प्रयोगधर्मी अमित सागर garhwali ghazal
उत्तराखंडी संगीत में नया प्रयोगधर्मी अमित सागर ने इस बार गढ़वाली गजल बिधा पर काम किया है उन्होंने उत्तराखंड के कई साहित्यकार द्वारा रचित गजलों को अपनी आवाज दी है, ये उत्तराखंड के संगीत प्रेमियों के लिए अच्छी बात है कि उन्हें पहाड़ी संगीत का अलग रूप, अलग बिधा, नए और पुराने साहित्यकारों द्वारा रचित साहित्य को गयान शैली में सुनाई दे रहा है, जहां एक समय ऐसा आ गया था पहाड़ी संगीत भी धीरे धीरे अपनी फुलड़ होने लगा था पर अभी हाल के दिनों में नए गयाको द्वारा अच्छा संगीत यू ट्यूब के माध्यम से लोगों के बीच आ रहा है और लोग उसे सुन रहे है,
Sunday 29 October 2017
इन नि रुसांदी।। Garhwali Ghazal By Pardeep Singh Rawat # Khuded
खैरी छै त्वे कुछ अगर, मेमा तू बतांदी।
पर तू पट द्वार ढाकी,दग्द्या इन नि रुसांदी।।
एक मन एक ज्यू च हमरु,पीड़ तू नि लुकांदी।
पर पट बात बंद कैकी, दग्द्या इन नि रुसांदी।।
अजमे लेंदी में कुछ त, बात मने बिन्गांदी।
पर छट हाथ छोड़ी तै, दग्द्या इन नि रुसांदी।।
धौ सन्क्वे प्रीत लय लगे, धागु सी नि उल्झांदी।
दांतून कट तोड़ी की, दगद्या इन नि रुसांदी
अखोड़ सी चमलि माया, पर स्यूंण नि गुच्यान्दी।
में जोड़ी पीठ कैकी, दगद्या इन नि रुसांदी।।
छोड़ छोड़ नार हठ तू, इकलांस नि सुवान्दी।
"खुदेड़" खुदमा खुदेणु च, व्हे हौर नि रुवांदी ।।
प्रदीप रावत "खुदेड़"
13/09/2017
Friday 27 October 2017
दर्जी दीदा का ये रैप सॉंग क्यों पसंद आ रहा लोगों को
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गढ़वाली गीत दर्जी दीदा ने जहां पुराणी पीढ़ी के पांव को ताल मिलाने पर विवश किया था, वही आज के दौर में में जब रेखा धस्माना जी ने इस गीत को फिर नए संगीत के साथ गया तो यह गीत एक बार फिर हिट साबित हुआ, लोगों को पुराणी यादें ताजा हो गयी, वही इस सांग का जब रैप वर्जन बिपेंद्र और उपेंद्र बर्थवाल ने गया तो नयी पीढ़ी जो गढ़वाली गीतों को एक नए अंदाज में सुनना पसंद करता है, उनहे यह गीत बहुत पसंद आ रहा है, यह बात इस गीत पर आयी प्रतिक्रया से पता चलता है
Monday 23 October 2017
Wednesday 18 October 2017
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गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली
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