जरा बाटू हिटण अन्क्वे-अन्क्वे की,
जरा समली चलण अन्क्वे- अन्क्वे की।
मायो बाठू भरि चिपलू होन्दू,
प्रेम की झोळवन बी नि उबांदू।
मठु मठु कैकी सरकुण अन्क्वे-अन्क्वे की।
कडू बोली पर तू भलु बोली,
सभ्यूँ मा मायो भेद न खोली।
खैरी बतेली त बते अन्क्वे-अन्क्वे की।
दौ दान बी दे तू सौ सान बी कै,
पर सरि गगरी रीती कैकी न एै ।
मुठ्यूँ बाँटी तू पर अन्क्वे-अन्क्वे की।
दगडी निभै तिन दूर तक,
दुश्मनी बी निभै मील तक।
अपडों की घात पट लग जांदी,
जरा गाळी देली त दे अन्क्वे-अन्क्वे की।
प्रदीप रावत "खुदेड़"
31/08/2017
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