गुरुवार, 21 सितंबर 2017

आज की हलात को बयां करती है मधुसुधन थपलियाल जी की ये ग़ज़ल,

कोच यू जू हमते गोरु कि तरौ हक़ाणु चा 
खाल्ये कि सुख्यूं पराळ दूध घ्यू चाणु चा 








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