सोमवार, 21 अगस्त 2017

कुमाऊं की इन दो बेटियों ने कैसे बदली पहाड़ी किसानों की जिंदगी आज की मेहमान पोस्ट में पढ़िये NEWS ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया के माध्यम से


यह सच है कि उत्तराखंड की दो बेटियाँ कुशिका शर्मा और कनिका शर्मा ने अपनी अच्छी ख़ासी मोटी तनख़्वाह की नौकरी को तवज्जो ना देकर रुख किया अपने गाँव का। दिल्ली जैसे महानगर की सुख सुविधाएं सिर्फ इसलिए छोड़ दी ताकि पहाड़ों को फिर से जीवन दे सकें। जी हाँ कुशिका और कनिका शहर में रहकर अपनी जिंदगी बड़े आराम से गुजार रही थीं लेकिन उन्होंने अनुभव किया कि रोज की भागदौड़ में वो सुकून नहीं था जो पहाड़ की वादियों में था। दोनों बहनों ने तय किया कि वो सब कुछ छोड़कर उत्तराखंड में बसे अपने गाँव मुक्तेश्वर में जाकर गाँव की प्रगति में अपना योगदान देंगी। परिवार का समर्थन मिला और उन्होंने गाँव जाकर रास्ता चुना ऑर्गेनिक खेती के प्रति जागरूकता लाने का। मुक्तेश्वर जाकर दोनों बहनों ने‘*दयो – द ओर्गानिक विलेज रिसॉर्ट*‘ का शुभारंभ किया और स्थानीय लोगों को जैविक खेती के प्रति जागरूक करने लगी। साथ ही अब दोनों बहनों की कोशिश अपना कार्यक्षेत्र विस्तारित करने की है ताकि उत्तराखंड के अन्य गाँवों को भी जागरूक किया जा सके। साथ वे अब कृषि उत्पादों को बेचने के लिये सप्लाई चेन बनाने की भी योजना पर कार्य कर रही हैं। नीचे के लिंक पर पूरी स्टोरी पढ़िए
 कुमाऊं की इन दो बेटियों ने कैसे बदली पहाड़ी किसानों की जिंदगी, आज के युवा जहाँ एक ओर शहरी चमक धमक से प्रभावित हो रहे हैं और शहरों में बसने की चाह में अपनी जन्मभूमि अपने गाँवों से विमुख हो रहे हैं। आए दिन हम पढ़ते हैं कि उत्तराखंड के गाँवों से निरंतर पलायन हो रहा है, गाँवों में केवल बुजुर्ग शेष रह गए हैं। ऎसे में यदि हम आपको बताये कि आज भी कुछ युवा हैं जो महानगरों की चमक-धमक, अच्छी ख़ासी नौकरी और समस्त सुख सुविधाओं को अलविदा कहकर अपने गाँवों का रुख कर रहे हैं, अपने गाँवों को तरक्की के पथ पर अग्रसर करने के लिए कार्यरत हैं तो आपको विश्वास नहीं होगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली

 गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली        गढ़वाली भाषा का प्रारम्भ कब से हुआ इसके प्रमाण नहीं मिलते हैं। गढ़वाली का बोलचाल या मौखिक रूप तब स...