Friday, 30 June 2017

उठो ये जन नायक # Narendra Singh Negi #




उठो ये जन नायक!
अभी तुम्हे असख्यं स्वर्ण गीत रचने है।
उठो ये जन रत्न
अभी तुम्हारे कंठ से कई देव शब्द सजने है
आखिरी रैबार ! (गढ़वाली कविता) - प्रदीप रावत
तुमने ही संस्कृति को विश्व पटल पर उज्जवल करना है
हमें तो बस आपके पद चिन्हों पर चलना है।
तुम्हे अभी नारी के दर्द को आवाज देना है
तुम्हे अभी नदियों के कल- कल को साज देना है
उठो ये संस्कृति नायक
उठो तुम्हे पहाड़ पुकार रहा है
उठो प्रकृति नायक
कब तकै लुट्दा तुम ये पहाड़ तै, हम बी देखदा जरा ! कब तकै
तुम्हे अभी नई पीढ़ी को लोरी सुनानी है
तुमने अभी फुल देई पर पुष्प टोखरी सजानी है।
तुमने अभी बुढपे के दर्द को गीतों में ढालना है
तुमने अभी भ्रस्ट शासको को गद्दी से उतरना है
उठो ये जन प्रिय
करोड़ों हाथ स्वाथ्य लाभ के लिए उठे है
उठो ये हिम पुत्र
हम तुमारी आवाज सुनने को बैठे है





मेहमान पोस्ट, भारत-नेपाल का सांझा गांव धारचूला:

 

धारचूला, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले में बसा एक बेहद ख़ूबसूरत शहर है. बड़े शहर के रहनेवाले इसे कभी शहर नहीं कहेंगे, क्योंकि न तो यहां बड़े-बड़े शॉपिंग सेंटर है और न ही शहर जैसी सुविधायें. हिमालय की गोद में बसा है धारचूला. स्थानीय निवासियों के अनुसार, किसी ज़माने में इस शहर से कई ट्रेड रूट्स गुज़रते थे. हिमालय की ऊंची-ऊंची पहाड़ियों से घिरा ये एक ख़ूबसूरत सा कस्बा है. धारचूला के निवासी, पहाड़ों के उस पार बसे नेपाल के दारचूला के निवासीयों से काफ़ी मिलते-जुलते हैं. ये जगह पर्यटकों के बीच उतनी लोकप्रिय नहीं है, इसीलिये यहां भीड़ नहीं दिखती.समुद्रतल से 915 मीटर की ऊंचाई पर बसा ये कस्बा ख़ुद में प्रकृति के कई ख़ज़ाने समेटे हुये है.धारचूला दो शब्दों से मिलकर बना है. धार यानि कि पहाड़ी और चूला यानि चूल्हा. ये घाटी चूल्हे जैसी दिखती है, इसीलिये इसका नाम धारचूला है. पूरा पोस्ट इस लिंक पर पढ़िए
 
धारचूला, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले में बसा एक बेहद ख़ूबसूरत शहर हैओम पर्वत को आदि कैलाश, बाबा कैलाश, छोटा कैलाश आदि नामों से भी जाना जाता है. इस पर्वत पर बर्फ़ से ओम की आकृति बनी हुई है. ओम पर्वत के पास में ही पार्वती झील और जोन्गलिन्गकोन्ग झील. ये तिब्बत के कैलाश पर्वत से मिलता-जुलता है. आखिरी रैबार ! (गढ़वाली कविता) - प्रदीप रावत. About Channel - Lokrang TV is Digital TV of the Himalayas exploring the Culture, ..
 

Sunday, 25 June 2017


रविन्द्र थलवाल , नई टिहरी हिदुस्तान
जो गाँव रोजगार न होने के कारण खाली हो गया था । मात्र बारह परिवार ही गाँव में रह गए थे अचानक वहां रोजगार पैदा हो गया हजारों लोग उस गाँव में बतौर पर्यटक आने लगे। ये सब हुआ इन पेंटिंग के माध्यम से खाली पड़े मकानों की दीवारों पर उसी घर की बीती कहानी को दर्शया गया। कि वह घर कैसे था पहले ये है जुनूनी युवक दीपक रमोला जी जो  मुंबई से गाँव जाकर अपने तरीके से रोजगार पैदा कर रहे है।
इस लिंक पर देखिये मौरी मेले का वीडियो, यह मेला छः तक चलता है
पलायन से पहाड़ के गांव वीरान होते जा रहे हैं। इन घरों में कभी जीवन बसता था वह खंडहर हो चुके हैं। चंबा ब्लॉक का सौड़ भी एक ऐसा ही गांव है।
उजाड़ गांव कहे जाने वाले इस गांव में दीपक रमोला ने अब जान भर दी है। यहां हर खंडहर घर की दीवार पर उसकी पुरानी यादें चित्रों के जरिए संजोई जा रही है। मसकद है पलायन को रोकने के साथ ही पर्यटन को बढ़ावा देना।इस लिंक पर देखिये गढ़वाली कविता कब तकै लुट्दा तुम ये पाड़ तै हम बी देख्दा ज़रा

चंबा ब्लॉक का सौड़ गांव कभी 70 से अधिक परिवारों से गुलजार थे, लेकिन अंतरक्षेत्रीय पलायन के चलते गांव में अब 12 परिवार रह रहे हैं। शेष सभी परिवार जड़ीपानी, धनोल्टी आदि सुविधाजनक स्थानों पर बस गए, लेकिन इसी ब्लॉक के कोट गांव निवासी दीपक रमोला ने सौड़ गांव की पुरानी यादों को जिंदा करने का बीड़ा उठाया है। दीपक ने गांव से पलायन कर चुके हर परिवार से संपर्क किया। उनकी गांव की जीवन शैली, शिक्षा, खान-पान, रीति-रीवाज के बारे जानकारी जुटाई।इसके बाद वेबसाइट के जरिए भीति चित्रकारों से गांव के खंडहर घरों की दीवारों पर चित्रकारी के लिए संपर्क किया।
अब तक 80 कलाकार गांव की खंडहर दीवारों को संवार चुके
बकौल दीपक रमोला, करीब 300 भीति चित्रकार ने यहां आने के लिए आवेदन किया। इसमें अब तक 80 कलाकार गांव के खंडहर घरों पर कलाकृति कर चुके हैं। यह काम इसी साल एक जून से शुरू किया था, जो 30 जून तक पूरा होगा। करीब पचास घरों की दीवार पर सुंदर चित्रकारी हो चुकी है। बताया कि हमारा उद्देश्य पलायन को रोकना है। अब इन खंडहर घरों को देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक आने लगे हैं। इससे गांव में रह रहे परिवारों को भी स्वरोजगार मिल रहा है।

इस लिंक पर देखिये गढ़वाली सुपर हिट फिल्म भाग जोग
जहां पहले रेडियो आया, वहां दीवार पर वही दिर्शाता चित्र
खंडहर घरों की दीवार पर चित्रों के माध्यम से कभी यहां रहे लोगों की जीवन शैली के साथ ही गांव का इतिहास भी दर्शाया जा रहा है। एक घर की दीवार पर आकाशवाणी के जरिये समाचार सुनते के कुछ लोग दिखाए गए। बताया गया कि उस घर में सबसे पहले रेडियो आया था। एक दीवार पर पालकी में दूल्हा और डोली पर दुल्हन दिखाई गई। इस घर में दशकों पहले शादी हुई थी। उसी शादी की यह झलकी दर्शाने की कोशिश की गई। गांव में स्कूल जाते बच्चे भी कलाकारों ने चित्रों के माध्यम से दिखाए। एक चित्र में यह भी दिखाया गया कि लंबे समय से गांव में बारिश नहीं हुई। तब लोग ढोल-दमाऊ के साथ मां सुरकंडा देवी पास जा रहे हैं, ताकि बारिश हो।

Wednesday, 7 June 2017

अनूप पटवाल द्वारा एक सार्थक प्रयास


चकबंदी आन्दोलन के कार्यकर्ता अनूप पटवाल ने एक सार्थक प्रयास किया है। उन्होंने अपने गाँव पनाऊँ चोपडकोट थैलीसैंण (राठ ) पौडी, में खाली पड़े बंजर खेतों में किवी और अखरोट के पेड़ लगाकर यह साबित कर दिया है कि अगर इच्छा शक्ति हो तो पहाड़ की खेती लोगों को आर्थिक रूप से सक्षम बना सकती है। अनूप पट्वाल ने अपने खेतो में 300 पौधे किवी के और 150 पौधे अखरोट के अपने खेतो में लगाये है । अनूप पटवाल और उसका भाई इन खेतो की देख रेख करते है।
चकबंदी आन्दोलन के साथ काफी एक्सपर्ट जुड़े है जो ऐसे युवाओ का मार्गदर्शन कर रहे है।

आपको बता दे किवी की भारतीय बाजार में बड़ी तेजी से मांग बढ रही है। एक किलो किवी की पैदावार में तीस रूपये की मेहनत लगती है पर बाजार में यह तिन सौ रुपये किलो बिखता है। कीबी और अखरोट का एक पेड़ पचास से साठ किलो फल उत्पादन देता है।
पौड़ी के चकबंदी जागर यात्रा में भी ऐसे युवाओं को सम्मनित किया गया जो कृषि को अपना रोजगार बना रहे है। तथा उनसे उनके अनुभवों को पूछा गया। खंड्युसैण से आये अनिल रावत ने भी अपने अनुभव लोगो के सामने रखे। अनिल रावत अपने क्षेत्र में मछली पालन के साथ सब्जी उत्पादन भी कर रहे है। आज उनके साथ गाँव के कई परिवार जुड़ गए है। इसके आलवा वह भी किवी अखरोट के पौधे लगाने की जल्द शुरुआत करने जा रहे है। ऐसे युवाओं के सामने पहाड़ में बिखरी जोत भले आड़े आती हो पर इन्होने ये जरुर बता दिया कि पहाड़ रोजगार के साथ अच्छा नाम दाम भी दे सकता है। हाँ ये लोग भी मानते है कि सरकार जितनी जल्दी चकबंदी करेगी उतनी जल्दी पहाड़ के हालत बदलेंगे कई युवा तैयार बैठे है कृषि और बागवानी को अपने रोजगार से जोड़ने के लिए।



गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली

 गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली        गढ़वाली भाषा का प्रारम्भ कब से हुआ इसके प्रमाण नहीं मिलते हैं। गढ़वाली का बोलचाल या मौखिक रूप तब स...