Thursday 9 March 2017

साहित्यकार चिन्मय जी की पैली बरसी पर द्वी सब्द


जब तक लोक साहित्ये य छतरी रालि तब तक चिन्यम जी कि याद बि बरोबर औणी आली !!
दुन्या मा औणु अर दुन्या बिटि जाणु परमेसुरा हथ मा च। पर औण अर जाणा बीच जाण वळू हमारा बीच अपड़ि ज्वा छाप छोड़ जांदु, वांकि भरपै हमारि भरसक कोसिसा बाद बि नि ह्वे सक्दि। बस, जब-जब तौं पि़त्र्वी याद औंदि त तौं पि़त्र्वा ऐथर हम गौ बंध ह्वे जंदां। चेतन चोळा छोडुण सि पैली तौं पि़त्रू बिटि ज्वा सीख अर आसिरवाद मिली, वां खुणी एक बार न बल्कि बार-बार इस्मरण कनू हम अपड़ु फर्ज समझ्दां।

आज सि ठीक साल भर पैली ठेठ गुजराता छोड़ बिटि साहित्य स्यवा मा लग्यां, छुटा भुला गीतेश नेगीन् फोन पर जब य खबर सुणैं कि ‘साहित्यकार चिन्मय सायर अब हमारा बीच नीन’। गीतेशा यूं सब्दू पर बिस्वास नी ह्वे। फौरन सायर जी का मोबैल लम्बर 9634670194 पर वूं तैं टटोळनै कोसिस कै। अपड़ा मन मा सोची कि उन्नै बिटि हमारा बीच घुलीं-मिलीं आवाज सुणैली- हलो! भुला ऽऽ ! अर मि तपाक ‘ भाई साब ऽऽ नमस्कार!!!’ ब्वनू तयार रवूं। पर उन्नै बिटि वूंकि गम्भीर आवाजै जगा, वूंकि ब्वार्या ब्वल्यां यूं सब्दू पर मन मारी बिस्वास पक्कू कन प्वड़ि- ‘ससुर जीन् दस मार्च द्वी हजार सोळौ तैं आखिरी सांस ले।’ यिं खबर सूणी तैं गीतेशा फोन कन्ना बाद धुकधुक्या जु बादळ कट्ठा ह्वे छा वू छांटा ह्वे छा वु दिल मा गैरु घौ कैकि चिन्मय जी की फकत याद छोड़ गेनी। एक इना बग्त पर जब्कि हमारि भाषा अपड़ी जगा बणौणू तैं छटपटौणी च, चिन्मय सायर जना बड़ा साहित्यकारो हमारा बीच बिटि जाणू, हमारा साहित्यो भौत बड़ु नुकसान ह्वे।
चिन्मय सायर जी कि साहित्यिक जात्रा वूंका सुरेन्द्र सिंह चैहान मूल नौ बिटि सुरु होंदि। पर भरसक कोसिसा बाद बि सुरेन्द्र सिंह चैहान बिटि चिन्मय सायर बण जाणा हालात कबि मालूम नि ह्वे सक्नी। जथगा बार पूछी, हंस्दि-हंस्दि टाळ गेनी। पर इथगा सब्बि जणदन कि 17 जनवरी उन्नीस सौ अड़तालिसा,ै पौड़ी जनपद, रिखणी खाल बिलौका अन्दरसौं नौ का गौं मा, मयाळू मां चन्दा देब्या कोख बिटि खुशहाल सिंह चैहान जी का गुठ्यार मा आपौ जलम ह्वे।
पढ़ै-लिखै कि बुन्याद गौं का नजीकै इस्कूल मा प्वड़ि। अगनै एम.ए. तक स्या पढ़ै-लिखै, छोरा-छापर्यू जन ठोकर खै-खै मिली। लुपड़ा उमुरौ कुछेक बग्त, बाॅम्बै मा बि काटी। घौर ऐकि द्वी बार मास्टरी छोड़ी। पर आखिरी मा मास्टरी मा ही सकून मिली। सन् द्वी हजार आठ मा हैड मास्टरी बिटि रिटैर होणा बाद हौळ-तांगळ अर पुगड़ा-पटळौं कि धाण दगड़ा साहित्य स्यवा मा जुट्यां छा। गौं मा कम्प्यूटर बि रख्यूं छौ त दूर आपस मित्रू दगड़ा ब्वन- बच्याणू मौबैल बि। पर बिस्वास कबि बि कैका मुंड मा नी ढोळी। हाथन ही तमाम चिट्ठी पत्री लेखणा रैनी। चिन्मय जी की चिठ्यूं का ऐंच ‘शब्द संधान’ नौ का द्वी सब्द पढ़दि बिथेक कबीरौ खाकू दिमाग मा ऐ जांदू छौ।
दरसल, चिन्मय जी हमारि लिख्वार बिरादर्या वीं सोच का अग्ल्यार छा जौं सदानि यू पक्कू बिस्वास रै कि हमारा गौं-गौंळौं की भाषन् ही हिन्दी भाषा मजबूत ह्वे। इलै गौं-गौळौं की यिं भाषा तैं बचैण जरुरी च। पर हमारि अजक्यालै लोक भासै दसा अर दिसा देखी चिन्मय जी खुस नी छा। आपन एक चिट्ठी मा अपड़ि य पिड़ा इन लेखी- ‘अफसोस च! लेख्ण वळौं कु ना,.....बल्कण वूं कु तैं, जु गढ़वाळि ह्वेकि बि गढ़वळि पढ़ण-लेख्णै नी जण्दन। य सिख्ण समस्या समझ्दन। एक जगम बेधड़क लेख्यूं बि च कि-
लोग/ब्वे ;भाषा,जन्मभूमि, राष्ट्र।’
ैडुण सि बढ़िया
कटाणा छन.....
अर/म्यार लाटा
टै लटकै/ झटकाणा छन!!!
चिन्मय जीन् हिन्दी अर गढ़वाळि द्वी भाषौ मा खूब लेखी। गढ़वळि कबिता ‘पसीनै खुसबू’, ‘तिमलाऽऽ फूल’, ‘मन अघोरी’ अर ‘औनार’ किताब्यूं मा सुनागण जन चमकिणी छन। अन्धविस्वास पर यिं चोट देखा-
म्यर मुल्कौ जगरी
रात हूंण पर/लगांद रांसा
अर, फजल हूण से पैल
से जांद
लोग खुस छन कि/ यनम मवसि ह्वे जांद।
अजक्याळै भाग दौड़ वळि जिन्दगी पर चिन्मय जी की नजर देखा दि-
खाणा छल, पींणा, हंसणा छन / रूंणा छन
पण, ऐ जिन्दगी त्वे थैइ, क्वी-क्वी जींणा छन।
कबितौं मा मजबूत पकड़ होणा बाबजूद बि चिन्मय जी छर्क्या कब्यूं का जना लटका-झटकों सि दूर रैनी। एक-आत बार कबि मंच पर गै बि ह्वला पर वुन अफु तैं वे खांचा मा फिट नि समझि। प्रसिध्यू तै सौल-दुसाला ओडुण सि बढ़िया वून अपड़ा काम मा मग्न रैकि सिद्ध होण सहि समझी।
चिन्मय जी हलन्त, नवल, दुदबोली, बाल प्रहरी, शैलवाणी, हिमशैल मा चिन्मय जी बरोबर लेखणा रैनी, छपणा रैनी। गढ़वाळि मा नप्यां-तोल्यां सब्दू दगड़ा जु भौ चिन्मय जी का लेख्यां मा देख्ण मा मिल्दू, वू हौरि कक्खि खुज्योण पर्बि नि मिल्दू। इन ब्वन मा बि क्वी बड़पन्नै नी कि चिन्मय जीन् जु बि लेखी, दमदार लेखी। मन लगै कि लेखी। गैरा मा झांकी न, गैरा मा उतरी लेखी।
चिन्मय जी कु योगदान कुछैक पन्नो मा समेटणू सौंगु नी। द्वी किताब पे्रस मा छै। अज्यूं बि चिन्मय जी, थकी नी छा। वूं सि, अबि बि भौत उम्मीद छै। पर बिधातन अपड़ि हठपनै कु जु सांसू दिखै, वांकि उम्मीद, कै तैं बि, कतै नी छै।
चिन्मय जी आखिरी तक अपड़ि लोक माटि मा डट्यां रैनी। कक्खि उड-फुड भागी नीन्। यु ये लोक माटा दगड़ा चिन्मय जी कु गैरु पिरेम भौ हि छौ कि पराण बि वूंन अपड़ा माटा मा हि त्याग्नि। म्यरा मोबैल मा चिन्मय जी कु लम्बर आज बि मौजूद च। पर यिं बात जाणी-सुणी हौरि बि खुसि होंदि कि वे ही लम्बर बिटि वूंकि कुटुम्बदार्या बि हम दगड़ा अपड़ैसा तार जोड़ी रख्यां छन।
साहित्य तैं अगर हम एक छतरु माण ल्यां त् इन समझा कि चिन्मय जी का जाणन् छतरै एक सीक सि टूट ग्या। पर चिन्मय जीन् अपड़ा ठोस कामा बदौलत, ये छतरा तैं अपड़ि तिरपां बिटि जु बल अर टिकणै सामर्थ दे, वां तैं सब्दू मा बंधणु बड़ू मुस्कल च। फिर्बि इथगा जरूर बोल सक्दां कि जब तक लोक साहित्ये य छतरी रालि तब तक चिन्यम जी कि याद बि बरोबर औणी राली !! बरोबर औणि राली!!


श्रदांजलि सुमन
नरेन्द्र कठैत जी की तरफ बटि
10 मार्च 2017



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