Tuesday 14 March 2017

पांडववास ने "घुगुती बसुती" और "फुलारी" गीतों के माद्यम से उस वर्ग को वापस अपने पुराने अतीत में पहुँचा दिया है

पांडवास गढ़वाल के एसे गीतों को लोगों तक पहुंचा रहा है जिन्हें नयी पीढ़ी तक पहुँचाना बहुत जरुरी है। भले आज के गायक बहुत कम समय में अपनी पहचान बनाना चाहते हो। इस लिए वह ज्यदातर गीत DJ वाले गाते है । नरेन्द्र सिंह नेगी जी के इस गीत को नये दौर के गायक संगीतकार और फिल्मांकन टीम ने लोगों के सामने परोसा है। नेगी जी के कई ऐसे गाने है जिन्हें सुनकर श्रोता खो जाते है पर जब उनका फिल्मांकन होता था तो गाने की आत्मा मर सी जाती थी। जो शब्द नेगी जी ने गढ़े थे उनके साथ न्याय नहीं हो पता था । पर इस बार लोगों को निराश नहीं होना पड़ा लोगों के अंतरात्मा तक इस विडियो गीत ने जगह बनाने के साथ साथ उन्हें झकझोर कर एक ऐसी चोट की है जब भी श्रोताओं को इस गीत का ध्यान आता है तो वह अंदर ही अंदर रोने लग जाता है। भले उसके चेहरे पर नकली ख़ुशी हो पर अंदर से वह अपने आप अपनी सरकारों को कोसता जरुर है।
पांडववास ने "घुगुती बसुती" और "फुलारी" गीतों के माद्यम से उस वर्ग को वापस अपने पुराने अतीत में पहुँचा दिया है जो उन्होंने गाँव में जीया था। तथा वह रोजगार के लिए अपने गाँव अपने मुल्क को छोड़ कर शहरों की तरफ चले गए थे इन गीतों को नयी पीढ़ी भी हाथो हाथ ले रही है। भले अभी उत्तराखंड के पहाड़ी गाँव में यू tube की पहुँच न के बराबर हो। जिस कारण कई लोग इन गीतों को नये रंग नये फिल्मांकन यू कहें नये आर्ट के साथ हाल फिलाल न सुन सके। पर एक वह वर्ग जो सोशियल मिडिया से जुडा हुआ है उसे इन गीतों ने चिन्तन करने पर मजबूर कर दिया है। कि बिगत 16 सालों में जिस प्रकार से पहाड़ों से पलायन बढ़ा है गाँव के गाँव खाली हो गए है। एक गाँव खाली होने से मतलब उसकी पूरी संस्कृति का खत्म हो जाना। आप शहरों में जितनी मर्जी कोशिश कर लो अपनी संस्कृति को बचाने की संस्कृति को उस रूप में नहीं संजोकर रख सकते जिस प्रकार से गाँवों में होती है। इस पहले भी पांडव वास के कई बेहतरीन गीत बाजार में आये है । रचना गीत ने भी उत्तराखंडी संस्कृति को विश्व पटल पर ले जाने में अहम् भूमिका निभाई थी इस गीत को हिंदी और पहाड़ी फोक को मिलकर बनाया गया था। अपांडव वास टीम ऐसे कई गीतों को लोगो तक लेकर आयेंगे।

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