आज के समय में अगर किसी नयी पीढ़ी के युवा जिसकी उम्र लगभग बीस साल के करीब है अगर उन्हें लांग के बारे में पूछा जाये कि लांग क्या है तो शायद ही कोई युवा बता पाए। लांग बद्दी समाज द्वारा गाँव में खेली जाती थी। लेकिन बिगत कुछ सालों में बद्दी सामाज ने गाँव में लांग लगाना बंद कर दिया है। जिसके बहुत सारे कारण है। लांग लगभग बीस फुट बांस के डंडे पर चड़कर खेली जाती थी। इस बांस के डंडे को केवल चारों तरफ से बब्ल्ये की रसियों के सहारे खडा किया जता था इस जमीन में नहीं गाड़ा जाता है। तथा बाँस के डंडे की छोटी धनुष के आकर का बनाया जाता जिसमे बद्दी अपना पेट रखकर चरखी की तरह घूमता है और देवताओं के साथ गाँव से लेकर पट्टी जिला तथा देश के जाने माने लोगों के नाम पुकार कर खंड खेलता है।
जैसे
"माता पार्वती पिता शिवजी जी का खंड बाजे।
तमलाग गाँव की खंड बाजे।
ग्राम पदान की खंड बाजे।
लांग के नीचे गाँव वाले अपने खेतो की मिट्टी रखते है। मान्यता के अनुसार ऐसा करने से खेतों को जंगली जानवर नुकसान नहीं पहुचते है।इस लिंक पर देखिये। जगा रे उत्तराखंडवास्यूं जगा रे जाग्रति गीत क्या हलात हो गयी है रमणीय प्रदेश की जरुर सुने।
बद्दी समुदाय शिवजी का भक्त है। तमलाग गाँव में रहने वाले इस समाज के लोगों का कहना है की जब संसार में हिस्से बांठे जा रहे थे तो शिवजी इस समुदाय का हिस्सा देना भूल गए जब इन लोगों ने शिवजी से कहा की ये हमारे हिस्सा कहाँ है। तब से शिवजी ने कहा आज के बाद तुम मेरे नाम मेरी भक्ति करके अपना जीवन यापन करोगे। उस दिन से यह लोग शिवजी उपासना करके अपना जीवन यापन कर रहे है हालाँकि अब इन लोगों में कई लोग अब नौकरी करने लगे है तथा कुछ बैंड बाजे का काम कर रहे है। संगीत इन लोगों की रगों में बहता है। शायद ही कोई होगा इनके समाज में जिसे संगीत का ज्ञान नहीं हो। ये लोग संगीत में निपुण होते है इन्हें संगीत
विरासत में मिलता है। पहले इस समुदाय के पुरुष सिर पर जट्टा रखने के साथ पगड़ी भी पहना करते थे पर आज के दौर में इनके समुदाय का कोई भी पुरुष जट्टा नहीं रखता है जब इनसे जट्टा नहीं रखने की वजह पूछी गयी तो यह कहते है की जब चौरासी के दंगे हुए थे और जिन लोगों की जट्टा हुआ करती थी उने मारा जा रहा था। इसी डर ने इन्हें अपनी जट्टा कटाने को मजबूर कर दिया। ये लोग सदियों से दौर देश में गठित होने वाली घटना पर गीत बना बनाया करते थे। जो आज के दौर में लगभग समाप्त सी हो गयी है। गढ़वाली भाषा की सोशियल मिडिया पर वारयल कविता जो आपने भी जरुर शेयर की होगी।
गीत बनाते समय यह इस बात का बिशेष ध्यान रखते थे कि उस गीत में गते दिनवार और संवत का जिक्र जरुर आना चाहिए। उस गीत को गाँव-गाँव जाकर बजाय करते थे जिससे गाँव के आम लोगों को देश में घटित होने वाले अच्छी और बुरी घटनाओं का पता चल जाता था। बद्दी जब लांग खेलते है तो अलग अलग स्वांग रच कर मुखोटा नृत्य करते है । इसमें प्रसिद्ध स्वांग शिव पार्वती राधाखंडी है। आज भी इन लोगों ने स्वांग के मुखोटों को संभल कर रखा हुआ है।
आज से करीब पच्चीस तीस साल पहले जब हमारे गाँव में बद्दी समाज द्वारा लांग खेली जाती थी तो लोगों में बड़ा उत्साह रहता था। तथा कुछ बूढ़े लोग लांग लगने पर नाराज भी होते थे। उनका नाराज होने का कारण था। वह कहते है कि जब बद्दी लांग पर चढ़ता है और खंड बाजे कहकर किसी चीज की मांग करता है तो उसे वह चीज देनी पड़ती है नहीं तो देवदोष लगता एक बार की लांग में हमारे गांवों के बदी समुदाय ने गाँव के पास की जमीन की मांग कर दी वह लांग से उतरने को तैयार नहीं हुआ । गाँव वालों को उसकी मांग पूरी करनी पड़ी। तब से लोंगो ने उन्हें गाँव में लांग लगाने से मना कर दिया। हालाँकि उसके बाद भी इस समुदाय ने लांग लगायी पर उनके साथ शर्त रखी गयी थी। कि वह वाजिब मांग ही कहें।इस लिंक पर देखिये । एक ऐसा गीत जिस सुनकर आपको अपने खोये हुए लोग की याद आ जाएगी।
जब यह लांग लगाते है चार पांच रात इनकी पूरी टीम लोगों का मनोरंजन करते है। जब उनसे अब लांग न लगाने का कारण पूछा गया तो इनका कहना है कि अब हमें अपनी माँ बहनों की सुरक्षा का डर सबसे ज्यादा लगता है। फिर आजकल के हमारे बच्चों को यह अच्छा नहीं लगता क्योंकि लोग हमारे समाज की इज्जत नहीं करते है। बद्दी समाज में जब किसी बुजर्ग की मौत होती है ये लोग सारी रात नाच गाना करते है। यह रीत सदियों से चलती आ रही है। ये किसी की मौत पर मातम नहीं मनाते है उसे अंतिम बिधाई ख़ुशी ख़ुशी दी जाती है।
पहले यह लोग गाँव गाँव जाकर रिंगाल की कंधी भी बेचा करा करते है पर अब इस काम को भी बहार से आने वाली कंघियों ने समाप्त कर दिया है। अभी भी कई बुजर्ग गाँव में होने वाली शादियों में ढोलक लेकर बस रीत निभाने के लिए चले जाते है। इनका कहना है की जब तक हम बुजर्ग लोग जिन्दा है हमने तो अपनी बिरती निभानी ही है। क्योंकि कई ऐसे लोग भी है जो इनके दुखो में बहुत काम आये है।
जैसे
"माता पार्वती पिता शिवजी जी का खंड बाजे।
तमलाग गाँव की खंड बाजे।
ग्राम पदान की खंड बाजे।
लांग के नीचे गाँव वाले अपने खेतो की मिट्टी रखते है। मान्यता के अनुसार ऐसा करने से खेतों को जंगली जानवर नुकसान नहीं पहुचते है।इस लिंक पर देखिये। जगा रे उत्तराखंडवास्यूं जगा रे जाग्रति गीत क्या हलात हो गयी है रमणीय प्रदेश की जरुर सुने।
बद्दी समुदाय शिवजी का भक्त है। तमलाग गाँव में रहने वाले इस समाज के लोगों का कहना है की जब संसार में हिस्से बांठे जा रहे थे तो शिवजी इस समुदाय का हिस्सा देना भूल गए जब इन लोगों ने शिवजी से कहा की ये हमारे हिस्सा कहाँ है। तब से शिवजी ने कहा आज के बाद तुम मेरे नाम मेरी भक्ति करके अपना जीवन यापन करोगे। उस दिन से यह लोग शिवजी उपासना करके अपना जीवन यापन कर रहे है हालाँकि अब इन लोगों में कई लोग अब नौकरी करने लगे है तथा कुछ बैंड बाजे का काम कर रहे है। संगीत इन लोगों की रगों में बहता है। शायद ही कोई होगा इनके समाज में जिसे संगीत का ज्ञान नहीं हो। ये लोग संगीत में निपुण होते है इन्हें संगीत
विरासत में मिलता है। पहले इस समुदाय के पुरुष सिर पर जट्टा रखने के साथ पगड़ी भी पहना करते थे पर आज के दौर में इनके समुदाय का कोई भी पुरुष जट्टा नहीं रखता है जब इनसे जट्टा नहीं रखने की वजह पूछी गयी तो यह कहते है की जब चौरासी के दंगे हुए थे और जिन लोगों की जट्टा हुआ करती थी उने मारा जा रहा था। इसी डर ने इन्हें अपनी जट्टा कटाने को मजबूर कर दिया। ये लोग सदियों से दौर देश में गठित होने वाली घटना पर गीत बना बनाया करते थे। जो आज के दौर में लगभग समाप्त सी हो गयी है। गढ़वाली भाषा की सोशियल मिडिया पर वारयल कविता जो आपने भी जरुर शेयर की होगी।
गीत बनाते समय यह इस बात का बिशेष ध्यान रखते थे कि उस गीत में गते दिनवार और संवत का जिक्र जरुर आना चाहिए। उस गीत को गाँव-गाँव जाकर बजाय करते थे जिससे गाँव के आम लोगों को देश में घटित होने वाले अच्छी और बुरी घटनाओं का पता चल जाता था। बद्दी जब लांग खेलते है तो अलग अलग स्वांग रच कर मुखोटा नृत्य करते है । इसमें प्रसिद्ध स्वांग शिव पार्वती राधाखंडी है। आज भी इन लोगों ने स्वांग के मुखोटों को संभल कर रखा हुआ है।
आज से करीब पच्चीस तीस साल पहले जब हमारे गाँव में बद्दी समाज द्वारा लांग खेली जाती थी तो लोगों में बड़ा उत्साह रहता था। तथा कुछ बूढ़े लोग लांग लगने पर नाराज भी होते थे। उनका नाराज होने का कारण था। वह कहते है कि जब बद्दी लांग पर चढ़ता है और खंड बाजे कहकर किसी चीज की मांग करता है तो उसे वह चीज देनी पड़ती है नहीं तो देवदोष लगता एक बार की लांग में हमारे गांवों के बदी समुदाय ने गाँव के पास की जमीन की मांग कर दी वह लांग से उतरने को तैयार नहीं हुआ । गाँव वालों को उसकी मांग पूरी करनी पड़ी। तब से लोंगो ने उन्हें गाँव में लांग लगाने से मना कर दिया। हालाँकि उसके बाद भी इस समुदाय ने लांग लगायी पर उनके साथ शर्त रखी गयी थी। कि वह वाजिब मांग ही कहें।इस लिंक पर देखिये । एक ऐसा गीत जिस सुनकर आपको अपने खोये हुए लोग की याद आ जाएगी।
जब यह लांग लगाते है चार पांच रात इनकी पूरी टीम लोगों का मनोरंजन करते है। जब उनसे अब लांग न लगाने का कारण पूछा गया तो इनका कहना है कि अब हमें अपनी माँ बहनों की सुरक्षा का डर सबसे ज्यादा लगता है। फिर आजकल के हमारे बच्चों को यह अच्छा नहीं लगता क्योंकि लोग हमारे समाज की इज्जत नहीं करते है। बद्दी समाज में जब किसी बुजर्ग की मौत होती है ये लोग सारी रात नाच गाना करते है। यह रीत सदियों से चलती आ रही है। ये किसी की मौत पर मातम नहीं मनाते है उसे अंतिम बिधाई ख़ुशी ख़ुशी दी जाती है।
पहले यह लोग गाँव गाँव जाकर रिंगाल की कंधी भी बेचा करा करते है पर अब इस काम को भी बहार से आने वाली कंघियों ने समाप्त कर दिया है। अभी भी कई बुजर्ग गाँव में होने वाली शादियों में ढोलक लेकर बस रीत निभाने के लिए चले जाते है। इनका कहना है की जब तक हम बुजर्ग लोग जिन्दा है हमने तो अपनी बिरती निभानी ही है। क्योंकि कई ऐसे लोग भी है जो इनके दुखो में बहुत काम आये है।