Monday 5 December 2016

लेखक - नरेंद्र कटैत # गढ़वाली भाषा की शब्द सम्पदा से गांव की तस्वीर गौं #Garhwali Poem By #PardeepRawat Khuded


गौं फकत एक जगौ नौ नी होंदू। धारा-पन्द्यारा, ओडा-भीटा, उखड़ी -सेरा अर मल्ली-तल्ली सारौ नौ बि गौं नी होंदू। गौं सि पैली जंै चीजौ नौ सबसि पैली औंदू, वो क्वी न क्वी एक मवासू होंदू। वो मवासू तैं जगा मा अपड़ि मौ बणौंदू। फेर वीं मौ की द्वी मौ, द्वी का तीन, तीनै छै, छै कि नौ अर इनि कयि मवासूं कु एक गौं ह्वे जांदू। पर कुल मिलैकि सौ कि नौ , जब मौ च त तब गौं । निथ्र बिगर मौ कु न क्वी गौं ह्वे सक्दू अर न बिगर गौं कि क्वी मौ। मौ बढ़दि-बढ़दि जब कै मौ कु तैं वे गौं मा घस्ण-बस्णू तैं जगा नी रै जांदि त वा मौ कैं हैंकि जगा बसागतौ चल जांदि। वीं जगा मा वा मौ बि एका द्वी, द्वी का चार, चारा-आठ अर देख्द-देख्द एक हैंकु नयू गौं बसै देंदि। अर इनि होंद-कर्द अपड़ि मौ बणौणू क्वी बि मवासू एक गौं लांघी हैंका गौं, एक पट्टी बिटि हैंकि पट्टी अर पट्यूं बिटि परगनौं तक सर्कि-सर्की अपड़ि झोळी -तुमड़ी, अपड़ि बोल चाल, अर अपड़ा रिति-रिवाज बि उकरी ली जांदि।इस लिंक पर देखिये। जगा रे उत्तराखंडवास्यूं जगा रे जाग्रति गीत क्या हलात हो गयी है रमणीय प्रदेश की जरुर सुने।
गौं मा मौ नौ छन चा सौ, सबसि पैली यि पूछे जांदू - क्या च गौं कु नौ? यि जरुरी नी कि कै गौं कु नौ, कै मौ का नौ पर ह्वलु! गौं कु नौ किरमोळी, पुरमुसी, भुतनीसि बि ह्वे सक्दू। ‘रैं गौं’ का नजीक जैकि हमुन एका मनखी तैं पूछी- भैजी ये गौं कु नौ ‘रैं गौं’ किलै प्वड़ि? वेन जबाब दे- भुला! हमारु क्वी पुराणू बल, ए गौं मा ऐ छौ, वेकु यख मन लगी अर वू इक्खि रै बस ग्या। इक्खि रै बस ग्या त गौं कु नौ बि ‘रैं गौं’ प्वड़ ग्या।

खैर यिं बात तैं हम बि मणदां कि बिगर बातौ कै बि गौं कु नौ नी प्वड़ि। ब्वेन जोड़ी त गौं कु नौ बैंज्वड़ि, ब्वेन गोड़ी त बैंग्वड़ि, उज्याड़ खयेगि त उज्याड़ि। इन्नि घिंडवड़ा, सुंगुरगदन्या, मरच्वड़ा, कंडी गौं, कुखुड़ गौं, मसण गौं का नौ मा बि कुछ न कुछ जरूर ह्वलू। अलग-बगला कुछ गौं का नौ त भै- भयूं का सि लग्दन। जन्कि कोट-कोटसड़ा, घुन्न्ना-पसीणा, सीकू-भैंस्वड़ा । यूं गौं अर वूंका नौ का बीच खूनौ सि रिस्ता लग्दू। कयि गौं मा त मौ, नौ छन चा सौ, गौं कु नौ हि रख दिंदन- नौ गौं। सैद, इनि क्वी पट्टी-परगना नी जख एक ना एक गौं कु नौ ‘नौ गौं’ नी। पर सब्बि गौं, ‘नौ गौं’ नीन्। गढ़वाली भाषा की सोशियल मिडिया पर वारयल कविता जो आपने भी जरुर शेयर की होगी।
पैली बाटा फुण्ड क्वी बि पूछ देंदू छौ- भुला कै गौं कु? फट जबाब तयार रौंदू छौ- फलाणा गौं कु। ये जबाब देण पर हैंकु जरुरी सि सवाल पूछै जांदू छौ - कैं मौ कु? यु बि मुख जुबानी सि याद रौंदू छौ - फलाणी मौं कु। इथगा ब्वन पर पुछुण वळै आँख्यूं मा वीं मौ अर वे गौं कि सर्रा तस्वीर सि गर्र घूम जांदि छै। फेर त ब्वन बचल्योणौ एक तार सि जुड़ जांदू छौ । चा वू पुछुण वळू कख्यो बि, किलै नी रै हो। जन्कि, अरे! इना सुणा दि वे गौं कु त वू बि त छौ। अजक्याळ वू कख ह्वलू?
गौं मा जु कुछ बि छौ वो सौब कैदा मा बन्ध्यूं छौ। कैदा सि भैर क्वी नी जांदम छौ। गौं कि सीमा मा कानून त कबि-कबार औंदू छौ। एक न एक छुटा नौनै किलकार्यू नौ गौं छौ। गौं मा एक नागरजा, एक नरसिंग, एक देब्यू थान होंदू छौ। एक औजी मौ, एक ल्वार मौ बि जरुर होंदू छौ। सजड़ाऽ उंद भ्वर्यूं तमाखू क्वी भेद-भौ नि कर्दू छौ। द्यब्तौं छोड़ि ‘आदेस’ देणै बि क्वी हिकमत नी कर्दू छौ। क्वी कैकु गाक नी छौ। हर क्वी अपड़ा काम मा सल्ली अर अपड़ि मरज्यू मालिक छौ। बक्त पर मौ मदद अर धै कु नौ बि गौं छौ। गौं का नजीक बजारै जगा झपन्याळू बौण छौ। इस लिंक पर देखिये । एक ऐसा गीत जिस सुनकर आपको अपने खोये हुए लोग की याद आ जाएगी।
गौं मा क्वी खास अपड़ा छौ चा नी छौ पर गौं कु लाटू-कालू बि अपड़ा छौ। गौं मा खेती पाती समाळ्नू तैं बल्दी बल्द नी होंदा छा। घर गिरस्थ्या काम मा हाथ बंटौणू तैं गोर- बखरा बि होंदा छा। गौं मा एक द्वी हळ्या, एक द्वी ग्वेर, एक द्वी गितेर, एक द्वी मरखोड्या सांड, एक द्वी गळया बळद, एक आत बोड़, द्वी चार बाछी, दस-बीस गौड़ी, पन्द्रा-बीस भैंसा, एक द्वी लेंडी कुकुर अर एक आत खदोळा कुकुर त होंदै होंदा छा। पर गौं मा बारा मौ अर कुकुर अठारा कबि नी ह्वेनि। या बि क्वी कम बात नी छै । एक बात हौर, उड्यार अर खन्द्वार बिटि च्यूंण वळा पाण्या धारौ तैं ‘पणधारु’ ब्वल्ये जांद। पर पंद्यारु एक इनि चीज च जु गौं का बीच साफ पाणी छळकौंदू नजर औंदू छौ।
इस लिंक पर देखिये - गढ़वाली सुपरहिट फिल्म भाग-जोग 
गौं कि किस्मत मा झणी कना गरुड़ रिटनी कि लोगुन मौ बणौणू तैं गौं छोड़ देनी। मौ बण गेनी पर लोग गौं तब बि नी ऐनी। कुछ अज्यूं बि घंघतोळ मा छन कि गौं मा रौं कि नी रौं। पर इन क्वी नी ब्वनू कि चा कुछ बि ह्वे जौ मी गौं छोड़ी नी जौं। पैली बड़ी मौ जाणी फेर वीं मौ का पैथर छुटी मौ। कै बि गौं मा मौ एक छै चा सौ, पर गौं मा क्वी न क्वी त छैं छौ। अब त एक-एक कैकि खाली ह्वे ग्येनि, गौं का गौं।
एक दिन हमारा गौं कि एक मौ कु सबसि दानू मनखी भाभर मा बखरौं चरौंद मिल ग्या। रमारुम्या बादा हमुन पूछी -भैजी! क्य अपड़ा गौं याद नी औणू? वेन जबाब दे- अरे भुला! अपड़ा गौं कै तैं याद नी औलू? एक दौं गौं जाणू पैटी बि छौं पर अधबाटा मा जैकि लौट ग्यों। हमुन पूछी- अधबाटा मा जैकी किलै लौट्यां? वेन बोली- किलै त वूलै लौट्यों अरे! घंघतोळ मा प्वड़ ग्यों कि गौं जौं कि नी जौं? हमुन फेर पूछी- तुम घंघतोळ मा किलै प्वड़यां? दानन् बोली- ब्यटा! एक तिरपां ‘कूंडी’ छौ अर हैंकि तिरपां ‘पाबौ’। घंघतोळ मा प्वड़ ग्यों कि पैली कूंड़ी जौं कि पाबौ? कूंडी मा द्यब्तौ थान अर पाबौ मा रजौ दरबार लग्यूं रौंदू छौ। पैली कूंडी जांदू त रजा नरक्ये जांदू अर पैली पाबौ जांदू त द्यब्तौ असगार खांदू। इलै अधबाटा मा जैकी बि लौट ग्यों।
हमुन् बोली- भैजी! अब न रजा रयूं न द्यब्तौ कि डौर-भौर। चुचैं! अब त ऐ ल्या धौं अपड़ा गौं


लेखक - नरेंद्र कटैत
गढ़वाली व्यंग्यकार 

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