Thursday 6 October 2016

ब्वारि ऐसी चााहिए मुझे Garhwali Poem


























ब्वारि ऐसी चााहिए मुझे
जो अंग्रजी के साथ गढ़वाली में भी बच्याती हो
घास काटने के साथ फेसबुक भी चलाती हो
केवल टीबी पर न चिपकी रहे, गोणी बंदर भी भगाती हो
ब्वारि ऐसी चााहिए मुझे, जो सबको भाती हो

ब्वारि ऐसी चााहिए मुझे
पिज्जा चोमिन के साथ प्यळयो छछेंडू भी बनाती हो
करवा चौथ न सही पर एगास बग्वाल जरूर मनाती हो
चाइनीज लड़ी के साथ कडवा तेल का दीया भी जलाती हो
ब्वारि ऐसी चााहिए मुझे जो सबको भाती हो,

ब्वारि ऐसी चााहिए मुझे
जींस टॉप के साथ बाजू बंद भी लगाती हो
नौनो को अंग्रजी के साथ गढ़वाली भी सिखाती हो,
चेतन भगत शैक्सपियर के साथ पहाड़ी साहित्य पढ़ाती हो,
ब्वारि ऐसी चााहिए मुझे जो सबको भाती हो

पंजबी गीतोंके साथ गढ़वाली गीतों पर सब को नाचाती हो
मुझे देख के न सही पर जेठणा जी को देख कर शरमाती हो,
हिंदी गीतों के साथ नेगी जी के गाने भी गुनगुनाती हो,
थैली के दुध के भरोंसे न रहकर गौड़ी भी पिजाती हो,
ब्वारि ऐसी चााहिए मुझे जो सबको भाती हो,

शैर घुमने का शौक हो पर गाँव मे गाय भी चराती हो,
चटि पटि खाणे के साथ ढबाड़ी रोटि भी पकाती हो,
खदर की धोती के साथ धूप चश्मा भी लगाती हो
ब्वारि ऐसी चााहिए मुझे जो सबको भाती हो

हम उमर लोगों को हैलो दाना सयेणो को सेवा लगाती हो
जादा गरा न सही पर डांडे से लकड़ा भी लाती हो
ऊंच बिचार हो उसके भले कैसी भी कद काठी हो
चकडे़तू के लिए चकड़ेत हो लाटो के लिए लाटी हो
ब्वारि ऐसी चााहिए मुझे जो सबको भाती हो,

हैरी मरच सी जरा तीखी भी हो
खटटे के लिए खटी, अछों के लिए फीकी हो
मयाळु हो गयाळु हो न गोरी न चिटी हो
बस दगड़यों मनै की मीठी हो,
प्रदीप सिंह रावत "खुदेड़"
दिनॉक - 12- 10-2015

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