Wednesday 12 October 2016

फुर उड़ी जान्दू। Garhwali poem garhwali kavita



पंख होन्दा मेमा त मि फुर उड़ी जान्दू।
अपड़ा रौतेला मुल्कै रौनक देखी आन्दू।।

बिसरान्दु मि वु गौवा ग्वीन्डौ मा अपड़ी खुद।
लगान्दु मातृ भूम्यूं माटौ टीका, खोन्दु अपड़ी सुद।
मगदु मि माफी वे नर्सीग भैरो कि भ्यारी मा।
जगान्दु बत्ती वी देबी मा, ज्वा थरपी च सारी मा।।

कास मि अपड़ी कुल देबी आरती उतारी आन्दू।
अगर पंख होन्दा मेमा त मि फुर उड़ी जान्दू।।

जान्दु निमद्रया छोड़, देखदु वि लिम्बा नरगी डायी।
जैन बाळापन बटि ज्वान होण तक मेरू साथ द्याई।
मालसदु मि फौंगी वींकि, चुमदू वींकि डायी पत्ती।
मरदु अंग्वाळ वि पर, लगान्दु वितै अपड़ी छती।।

कास मि वि डायी मा, झूला झूली आन्दू।
अगर पंख होन्दा मेमा त मि फुर उड़ी जान्दू।।

लगान्दु दाना सहेणो मा, यि जिन्दग्या दुःख सुखा किस्सा।
मागदु दादी खुखली मा मुण्ड धैरी, अपड़ी खुस्या हिस्सा।
भै बन्धु दगड़ी पंचम्या गीत गान्दु, हाथ मा धैरी हाथ।
एगास बगवाळै स्वाई पकौड़ी खान्दु, कबी खान्दु बरत्यूं कू भात।।

कास मि दगड़यो दगड़ी, भैला खेली आन्दू।
अगर पंख होन्दा मेमा त मि फुर उड़ी जान्दू।।

कब सच होलु म्येरू यू सुप्न्यू, कब पूरा होला म्येरा यि अरमान।
कब यि मोह माये गंगा बटि भैर एैकी, पवित्र गंगा मा करलू स्नान।
ये बिधि बिधाता मेतै तुम, अपड़ा चरणु मा जग्गा दिया।
जिंदग्या अन्तिम पड़ाव म्येरू, देब भूमि मा हि हुयां।।

कास मि बाबा बद्री नाथा दरसन कैरी आन्दू।


Garhwali Poem By pardeep rawat Khuded

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