Friday 7 October 2016

किसी ने तो मशाल जलानी ही थी


मैंने या तूने,
किसी ने तो मशाल जलानी ही थी
चिंगारी मन में जो जल रही थी
उसे आग तो बनानी ही थी
मैंने या तूने,
किसी ने तो मशाल जलानी ही थी

मरना तुझे भी है
मरना मुझे भी है
यूं कब तक तटष्ट रहता तू
यूं कब तक अस्पष्ट रहता तू
फिर किस काम की तेरी ये जवानी थी
मैंने या तूने,
किसी ने तो मशाल जलानी ही थी


रो रही धारा है
वक्त तेरे आगे खड़ा है
तय कर
तुझे वक्त के साथ चलना है
या फिर तुझे पीछे रहना है
ये तेरी ही नहीं लाखों युवाओं की कहानी थी
मैंने या तूने,
किसी ने तो मशाल जलानी ही थी

आकांक्षाएं ये तेरी
अति महत्वकांशी है
आसमान में उड़ते भी जमीं पर पावं रख तू
बाज़ी हरे न ऐसा एक दाव रख तू
हारी बाज़ी तुझे बनानी थी
मैंने या तूने,
किसी ने तो मशाल जलानी ही थी

तुफानो के थमने तक सब्र रख तू
ज़िंदा है तो पड़ोस की खबर रख तू
अपने अधिकारों के प्रति मदहोश रहेगा
अपने कर्तब्यों के प्रति कब तक खामोश रहेगा
कुछ तो जिमेदारी तुझे उठानी थी
मैंने या तूने,
किसी ने तो मशाल जलानी ही थी

प्रदीप रावत खुदेड़ 

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