Monday 25 September 2017

“कड़ाली” पर हुई एक रिसर्ज से पता चली अहम् जानकारी


हरिद्वार (महावीर नेगी)। “कड़ाली” जिसे पहाड़ की बिच्छू घास भी कहा जाता है जिसे अक्सर पहाड़ में बच्चों की शैतानी पर उन्हे सजा देने के काम में लाया जाता था। लेकिन बदलते वक्त के साथ पता चला कि कड़ाली न केवल बच्चों की शैतानी को रोकने में काम आती है इसका उपयोग रोजगार के अवसर पैदा करने और पलायन पर लगाम लगाने की भी क्षमता हैं। हरिद्वार के एक छात्र ने अपने शोध में यह साबित कर दिया है कि

कड़ाली का फाइबर अन्य फाइबर के मुकाबले न केवल मजबूत है अपितु यह मानव निर्मित फाइबर से सस्ता भी हैं। मंयक पोखरियाल के इस शोध का प्रकाशन अमेरिका की प्रसिद्व टेलर एंड फ्रांसिस ऑनलाइन में भी प्रकाशित हुआ हैं। शोध में पाया गया कि कंड़ाली का फाइबर ऑटोमोबाइल इंडस्ट्रीज, एयरो स्पेस इंडस्ट्रीज,स्पोर्टस इंडस्ट्रीज,फैब्रिकेटेड स्ट्रक्चर,डोरपैनल,हेलमेट आदि बनाने में सहायक है।

20 सितंबर को अमेरिका की टेलर एंड फ्रांसिस ऑनलाइन में जब कंडाली को लेकर हरिद्वार के छात्र मंयक पोखरियाल का शोध प्रकाशित हुआ तो यह साबित हो गया कि जंगल में पायी अपने आप उगने वाली यह घास कितने काम की हैं। मंयक ने बताया कि उसने कंड़ाली हिमायलन नेट्टल पर 2013 में मास्टर ऑफ़ टेक्नोलॉजी के दौरान शोध शुरु किया था। जिसे करीब 2015 में पूरा कर लिया गया था। उन्होने बताया कि उन्होने अपने इस शोध में पाया कि उत्तराखंड राज्य के मध्य हिमालयी छेत्र में १२००.३००० मीटर पर पाए जाने वाला पौधा कंडाली हिमालयन नेट्ल के फाइबर को हम कम्पोजिट मैटेरियल्स बनाने में इस्तेमाल कर सकते है। यह एक इको फाइबर है जो मानव निर्मित फाइबर से काफी सस्ता आसानी से उपलब्ध ए कम घनत्व वाला बायो डिग्रेडेबल है। इसको पॉल्मर के साथ मिलकर कम्पोजिट बनाया जा सकता है।इसका फाइबर बास्ट फाइबर की केटेगरी में आने वाला सबसे मजबूत फाइबर है

इस शोध में हिमालयन नेट्टल फाइबर को पहले केमिकल ट्रीटमेंट देने के बाद सुखाकर इसको पॉल्मर के साथ रैनफोर्स किया गया। उसके बाद इस पर विभिन परीक्षण जैसे टेंसिलटेस्ट,इम्पैक्टटेस्ट,वियर टेस्ट किये गए जिसमे यह पाया गया की इसको विभिन्न क्षेत्रों जैसे ऑटोमोबाइल इंडस्ट्रीज, एयरो स्पेस इंडस्ट्रीज,स्पोर्टस इंडस्ट्रीज,फैब्रिकेटेड स्ट्रक्चर,डोरपैनल,हेलमेट आदि बनाने में सहायक है।

मंयक ने बताया कि पूर्व में उत्तरखंड के पहाड़ी इलाके जैसे पौड़ी,चमोली और पिथौरागढ़ आदि क्षेत्रों में लोग इसके फाइबर से रस्सी, धागे,बोरे, चटाई व कपडा आदि बनते थे जो जानकारी के अभाव में अब कम हो गया था यह पौधा १२०० मीटर की उचाई से ऊपर प्राकर्तिक रूप से बंजर भूमि, रास्ते एवं सड़को के किनारे स्वतः ही उग जाता है।
पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाने वाला हिमालयन नेट्टल रोजगार देने और पलायन रोकने में सहायक होने के साथ साथ लोगो की आर्थिक स्थिति को सुधारने में सहायक सिद्ध होगा। मंयक ने बताया कि इस शोद्ध में उनके गाइड एवं पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ लालता प्रसाद ए सहायक आचार्य हिमांशु प्रसाद रतूड़ी उत्तराखंड बम्बू एंड फाइबर डेवलपमेंट बोर्ड के मैनेजर दिनेश जोशी, आगाज़ फाउंडेशन के जे0 पी० मैथानी का पूर्ण सहयोग किया।

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