सिंहावलोकन कविता, काब्य की एक बिधा है। इस प्रकार की कविता में कविता जिस पहले शब्द से शूरु होती है, उसी शब्द से खत्म होती है, तथा कविता की पहली पंक्ति जिस शब्द से खत्म होती है अगली पंक्ति की शुरुआत उसी शब्द से होती है, और ये क्रम आगे की पंक्तियों में भी जारी रहता है।
मेरी इस प्रकार की एक कविता आप लोगों के सामने प्रस्तुत है।
मृगनयनी चित चोर छै तू चंचल स्वाणी,
स्वाणी सूरत मा त्येरि या मायाळी बाणी।
बाणी पर स्वरुं कू साज सरस्वती च लै,
लै पहनी कि जब तिन सोलह श्रृगांर कै।
कैै-कै दिन तक हर्ची रै म्येरि सेणी खाणी,
खाणी कमाणी मा बी गंट्याणू त्येरि गाणी।
गाणी इनि मिन देखी त्वेमा अन्वार फ्योली,
फ्योली सी उदमति तू घसेरुयूँ की छै न्योली।
न्योली सी झीस लग्येगे म्येरा क्वंसा प्राणमा,
प्राणमा बसग्ये जन भौरुं बसी फुल रस खाण।
खाण छै तू रूप रंगे की भली-भली मयेळी,
मयेळी माया जरा पैन्छी देदी हे!बांद दयेळी।
दयेळी छै तू रूपवती गुणवती हे! नृपनयेनी,
नृपनयेनी बणी रै तू सदा म्येरी हे! मृगनयेनी।।
प्रदीप रावत "खुदेड़"
31/08/2017
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