Monday 7 August 2017

रिखणीखाल...... भाग-4 by Devesh Rawat


प्रणाम मैं देवेश आदमी ग्राम सभा कोटरी सैण पट्टी पैनो रिखणीखाल आप को फिर से रिखणीखाल की यात्रा पर ले जाता हूँ सर्वप्रथम सभी पाठकों से माफी मांगता हूं कि मेरे रिसर्च के मुताबित आप अपना मत Gk न बना देना मैने जो तथ्य पेश किए है वो सब मैने लोगों से एकत्रित किये है कुछ सरकारी कुछ गैर सरकारी आंकड़ें है इन में कुछ कमियाँ भी हो सकती है। तो चलो सफर में रिखणीखाल................
 
है इस छोटे से क्षेत्र  मे इक्यासी ग्राम प्रधान (ग्राम सभा, तेईस क्षेत्र  पंचायत सदस्य और एक ब्लॉक प्रमुख है  वर्तमान में श्रीमती लक्ष्मी देवी जी W/o सतेन्द्र सिंह जी (धेड़गाँव) से ब्लॉक प्रमुख है।

आप लोगों के सामने रिखणीखाल एक बहुत बड़ा बिषय लेकर फिर हाजिर हूँ ये एक ऐसा बिषय है जिस को लोग लगभग कन्त्युरा राज से सुलझा रहे है बात ईशा शदी से पहले की है पर उतनी दूर की बात आज के भौतिक सभ्य और चलायमान जिन्दगी जीने वालों के समझ में नही आएगी कोई 80 साल पुराना जन्तु समझ भी लेगा पर उन के पास फेशबुक या व्हाट्सएप कहाँ है माफ करना जन्तु इस लिए बोला क्यों कि नई पीढ़ी के लिए बूढ़ा आदमी जन्तु के समान है अगर उस बूढ़े की पेन्सन है तो नारंकार,धामदयौ या भैरव के समान है वरना जन्तु ही है।
मै देवेश आदमी आप को पद यात्रा करवाता हूँ रिखणीखाल पर आज का बिषय मै मनोरंजन और क्षेत्र की संस्कृति से जोड़कर लाया हूँ। इस से पहले भी मैने 3 लेख रिखणीखाल के पोस्ट किए थे पर बहुत लोगों ने उन को अपना नाम दे दिया 5 साल के गहन शोध के बाद लिखा गया है ये सब मेरे द्वारा इस वजह से अब लेखकों और पाठकों की राय से अपने नाम को मुझे बार बार आप को बताना पड रहा है।

जैसे कि पूर्व में मैने बताया था इस क्षेत्र  की समस्या  पर आज कुछ रोचक पहलू।  
 
मेले
मेले इस क्षेत्र में बहुत होते है जैसे-: बैसाख 3 गते बूंगी देवी (बूंगी देवी नैनीडांडा में है) और ढोंटयाल (गाड़ियों पुल) जेठ 2 गते छोटा ताड़केश्वर सांदड धार,जेठ 2 गते ताड़केश्वर धाम,कठुल्या,जेठ 8 गते मुछेल गाँव , जेठ 10 गते माला बास (माला बास में लगभग 10 ग्राम सभा का समसान घाट है) जेठ 11 गते मंजुली जेठ 12 गते देवू खाल,गुंडल खेत और शिमला सैण,जेठ 13 सिरौणा डगु और नोशेणा देवी,अंगणी सैण (पानीसेन) जेठ 14 गते खनेता, ढोंटयाल गाडियों पुल के पास शिरवाणा डगु, कठुल्या सारी वैसे एक बात औऱ है ढोंटयाल शिद्ध पीठ महादेव का है और 2 महीने में यहाँ 2 बार मेला लगता है बैशाख में शिव अवतारी पशुपति नाथ की और दूसरी बार रुद्रवतारी शिव की। उल्लेखनीय है कि किसी जमाने में जब गोठ होते थे तो पैनो ग्राम वाशी बैशाख 2 गते से ही गोठ लगाना सुरु करते थे और मंगसीर अमावशि यानि दीपावली के दिन अपने मवेशियों को घर लाते थे।पर अब न मवेशी है न मवशी (परिवार)। 18 गते जेठ मुँडेणा सारी 15 मई तिमल सैण महादेव, जेठ महीने का पहला सोम्बार बंजा देवी का मेला इस देवी पर तल्ला पैनो वालो की बड़ी आस्था है किसी भी शुभः कार्य में माता का आशिर्बाद लेना नही भूलते लोग। नोशेना देवी ,भोना देवी, बंजादेवी, बूंगी देवी को इस छेत्र के लोग बहिनें मानते एक बात की समानता है इन सब मंदिरों में वो ये कि इन मंदिरों के पास एक सुरंग है जो इन मंदिरों को जोड़ती है और चंडी घाट हरिद्वार निकलती है) जेठ 20 गते कार्तिकेश्वर क्त्याड नदी के किनारे जवड़ी रौला,जेठ 16 गते कालिंका देवी दियोड पुल,3 गते जेठ भोना देवी भवन यह छेत्र वैसे रिखणीखाल में नही आता पर शरहदें एक ही है। *खेती,सिंचाई और इतिहास-:* खेती के हिसाब से बात करूं तो मुझे 200 साल पीछे का इतिहास देखना पड़ा कुछ स्थानीय लोगों से बात की मैने जैसे-: श्री उम्मेद सिंह (चेरियों) श्री चन्दन सिंह रावत (कोटरी) 104 साल उम्र श्री जूठा सिंह (बडियार गाँव) श्री गबर सिंह (गाड़ियों) श्री गबर सिंह (जुई) श्री त्रिलोक सिंह (लेकुली) श्री दाता राम (बएला) श्रीमती मखुली देवी (कोटरी) और मेरे गाँव में एक दादा जी थे जिन का देहांत 11/02/2011 को हुआ था नाम था श्री नंदन सिंह रावत (ज्याठा) 89 साल की उम्र में उन्हों ने ये कहानी मुझे बताई थी और श्री ख्यात सिंह चौहान जी (अंदरसों) वालों की किताब में भी इस का कुछ कुछ उल्लेख हुआ है बाकी जानकारी बाकी इतिहास कुछ मैने रिखणीखाल के 2003 में खण्ड बिकाश अधिकारी श्री राणा जी ने प्राप्त किया।
कुमाऊ के रास्ते गढ़वाल पर अपना आधिपत्य स्थापित करने जब पृथ्वी नारायण साह आये तो उन का रात्रि विश्राम इसी क्षेत्र कुमालडी में हुआ था। 25 sep 1768 पृथ्वी नारायण साह नेपाल राजा थे। और उन्हों ने इस क्षेत्र को अपनी राजधानी बनाने की बात भी की थी पवित्रधाम ताड़केश्वर भगवान में उन की अटूट आस्था तब जगी जब उन्हें यहाँ सक्षात शेषनाग के दर्शन हुए। सन 1935,40 तक धौला उडेरी के गुफा में कुछ पांडुलिपि थे कुछ कपड़े पर और कुछ पागजों पर लिखा इतिहास था पर कालांतर में ये कहाँ गई ये भी एक रहस्य है (धौला उडेरी एक पवित्र गुफा है मुड़ियापानी के जंगलों में) कभी किसी जमाने में जंगलों में कोज लकड़ी के चिरान करने ठाट में जाते थे तब लोग इस धौला उडेरी की शरण में रहते थे ईस्ट देव जी तरह बिश्वास था लोगों को इस देव गुफा में।
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बात उस जमाने की है जब अंग्रेजी शासक और नेपाल के राजाओ के बीच में एंग्लो नेपाली युद्ध हुआ 1803 में ओर 1815 में सुगौली संधि हुई थी। और उसी दौरान 1803 की है जब गोरखा आक्रमण चरम पर था और गोरखाओं ने समूचे गढ़वाल पर आक्रमण किया था तब मात्र 39 गढ़ थे गढ़वाल में बाकी के 13 गढ़ नेपाल में थे वैसे जानकारी के लिए बता दूं कि,,कि नेपाल के 13 जिले भारत के अधीन अभी भी है वो 13 जिल्ले कुमाऊ,और टिहरी जिले में है अभी बात 1814 से 16 की है अंग्रेजों के साथ सीमा संधि के हिसाब से भारत में नेपाल का कुछ हिस्सा है तब नेपाल।में शाह खानदान का राज था और टिहरी रियासतें भी शाह खानदान के अधीन थीं ।
और उसी दौरान 1803 में गोरखाओ के दूसरी बार आक्रमण ने हम लोगों को अनजाने में खेती का एक तरीका सिखा दिया । वो मौसम बरसात का था धान मंडवे की खेती थी उस वक़्त सिंचाई का कोई साधन नही था तो बिना पानी वाले अनाज बोते थे सभी और (उपराद, उखिड़ी) की खेती में मंडवा धान झंगोरा उडद गहत की खेती थी गोरखाओ ने उन मे हल चला दिया ताकि सब भूखे मर जाये लोग बिन अनाज मर जाये पर उन के जाने के कुछ वक्त बाद लोगों ने उस खेती को सँजोया तो कुछ समय पश्चात वो खेती इतनी फलदाई हुई कि लोगों ने उसी तरीके से हर साल खेती करनी सुरु कर दी।
अगर मैं अपने गाँव कोटरी की बात करूं तो एक मात्र पानी की नहर है जो छाड़ियानी गिजार और बडियार गाँव की शरहद से आता है समूचे कोटरी ग्राम सभा को पानी की पूर्ति करता है। माला बास धामधार से आने वाली नहर धामधार, सिमल खेत,ढिगी चौड, झरत,गोलीचोड,रथुवा ढाब, छार गड्डी, करतिया,नोदानु, को पानी की आपूर्ति करता है पर सिर्फ बरसात के दिनों में बाकी के दिनों में बड़ी मेहनत है पानी की पूर्ति करने यहाँ के लोग संयुंक्त में सिंचाई करते है 8km लम्बी नहर में सब ग्राम सभा के हिसाब से सिंचाई करेंगे तो सही है वरना किसी के खेत में पानी नही पहुंच पाता। खदरासी में सिंचाई के पानी की बहुत दिक्कत है जब कि ये गॉँव मंदाल नदी के सब से करीब है पर 200mtr उपर इस लिए खदरासी का पानी कालयों और लुंठिया से आता है। पातल,उपगाँव, सिलगांव,द्वारी,गवाणा, सौंफ खाल,तेला गाँव,मैला गांव,रोनेड़ी,सकनेड़ी, डबराड,भंडू खाल,हड़पाल,चेबड़,चैड, मर गॉँव, जलेबी गॉँव, डल्ला, बिष्णु गळ्या,कलोनी, के लिए फील गुड की ब्यवस्था नही है कुछ कुछ लोगों के प्रयास से बना भी है पर वो काफी नही है। या फिर उस पर पानी की पर्याप्त मात्रा नही है ये जितने भी गॉँव है पहाड़ी है। दुर्गम इलाके है इन गाँव को प्रदेश के हिस्सों से जोड़ने के लिए सड़क मार्ग अब कुछ साल पहले बना है पर बरसात के दिनों में वो भी क्षतिग्रस्त रहता है कच्चा सड़क मार्ग है और नया भी है।

क्षेत्र जयकोट,चुरानी,कलवाड़ी,चौकडी, वालों की खेती नयार नदी के किनारे से लगी है खेती उपजाऊ है नयार नदी के डेल्टा से बनी हुई जमीन है ये 1775 और 1813 के आपदा के वक्त ये डेल्टा बना था। पर आज इस जगह खेती नाम मात्र का है जय कोट तो उस क्षेत्र का भाबर (तराई छेत्र) था पर पलायन और अनदेखी बदहाली से बन्जर पड़ी है। यहाँ भी फीलगुड की कोई सुविधा नजर नही आती है किसी जमाने में 1990 से 2000 तक तो कुछ खेती अच्छी थी यहाँ पर अब हिरोली,किनगोड़ी,गाजर घास उगा है। ह्युंदी,वलसा सिरवाना, में खेती दूर है पर लोग अभी हिम्मत कर रहे है खेती करने की। पाँच गाँव एली गाँव,पिपला सारी, कंडिया, पडेर गाँव,बामसु, गुनेड़ी,किमाड,सिरस्वाडि, गोंछेणा, सीधी,हिटोली, जोशी डाँड़,बल्ली, मेंदनी,में खेती थोड़ा ठीक है पर सिंचाई का साधन नही है। जंगली जानवरों का आतंक है। खिंकर्यों,टांड़यों,चिमना, द्योखर,ढुङ्गदार,मलाण,नावे तल्ली(नाड़ गाँव) लयकुली,बमण खोल,टकोली,किलबो, सुन्दरोली, किमगांव, ढिमकी,मंजखोला,सिलबेड़ि,सुलमोडी, रेवा,खांदवारी,पटेर खिल,उनेरी,ढाबखाल, घोटला,सिनोला,सोली,पलिगांव, अंदरसों, तल्ला मल्ला खनेता,रोता, नुनेरा,बसे,मज्याडी, बुलेखा,भुजकाली,ये गाँव जितने बड़े है उतनी बिरानियाँ सड़क मार्ग न होने और पलायन की वजह से।

सन 1970 से 1980 के दशक में मध्य इस छेत्र को अभूतपूर्व, अबिष्मरणीय, अतुल्य दो सौगाते मिली वो थी सड़क और बिजली तब के ठेकेदारों में श्री मात सिंह श्री जैन लाला मंगत सिंह,श्री केदार सिंह श्री अनसूया भारद्वाज जी इस छेत्र के ठेकेदार थे दिगड्डा से रथुवाढाब गाड़ियों पुल कोटरी सैण पानी सैण होते हुए गाड़ी रिखणीखाल पनास दुनाव होते हुए बीरोंखाल जाती है। दूसरी रोड़ दुगड्डा से चुंडाई सिसलडी चखोली खाल से देवूखाल में मिलती है। छेत्र में बिजली की समस्या उतनी नही जितनी अन्य भौतिक जरूरतों की है देवूखाल में बिधुत सबस्टेशन बन जाने से जयहरीखाल से आने वाली 11000 वाल्ट की योजना से क्षेत्र को अतिरिक्त सबिधा प्राप्त हुई है। वैसे देवूखाल ताड़केश्वर तक तो प्रथम गवर्नल जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स 20 ऑक्टूबर 1773 से 1 फ़रवरी  1785 तक रहे वो भी इस क्षेत्र में आये थे।फिर 9 वें वाइसरॉय द लॉर्ड मिंटों 31 जुलाई  1807 से 4 oct 1813 तक रहे वो भी इस क्षेत्र का दौरा कर चुके थे। और अंतिम बार भारतीय संघ में गवर्नल जनरल विकांट माउंटबेटन 15 अगस्त 1947 से 21 जून 1948 तक ने भी इस क्षेत्र का दौरा किया था।
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