Saturday 5 August 2017

रिखणीखाल...... भाग-3 by Devesh Rawat


अन्य भागों की तरह ही ये भाग भी बड़ा रोचक है परन्तु इस भाग में मै कमियां कम दिखाऊंगा उपाय ज्यादा बताऊंगा जो मै क्षेत्र के हिसाब से उचित समझता हूं। और कुछ लोगों से आप को रूबरू करवाऊंगा। लोगों की समस्या कम और उपाय ज्यादा | कही मेरे पाठक मित्र या कवि मित्र है जो बोल रहे थे कि उपाय क्या है वो बताओ समस्या तो पूरे उत्तराखंड़ में है कहीं कम तो कहीं ज्यादा पर उपाय तो बताएं कोई है क्या। पर उपाय पर बाद में जाऊंगा पहले कुछ बातें वहां के बारे में।

साहित्य-:इस क्षेत्र में साहित्य का भी कुछ खास बोलबाला नही है 1997 में राकेश चमोली जी द्वारा एक नागराजा टोली थियेटर का इस क्षेत्र में 3 महीने का भर्मण हुआ था एक चलता फिरता सिनेमा हॉल लेकर आये थे वो तो तब लोगों ने पहली बार फिल्में देखी बाकी कोई एक फ़िल्म बनी थी 12 साल पहले गढ़वाली में अंछरी जिस के संयोजक बिक्रम आठबाखल थे बस उस के बाद घन्ना भाई एम् बी बी एस बनी थी पन्नु गुसाईं और घनानंद जी द्वारा अभिनीत फिल्म थी ये। बाकी शायद मेरी नजर में तो नही है। वैसे इस क्षेत्र से कुछ गुणी
लेखक हुए है
जैसे-: श्री ख्यात सिंह जी (उनेरी) श्री चिन्मयानन्द जी (आदरसों) श्री मदन मोहन डुकलांण जी (खनेता)
भाई मलय चौहान जी (अंदरसों) श्री धर्मेंद्र सिंह नेगी (चुरानी) श्री बिक्रम आठबाखल (आठबाखल) भाई अंकित रावत (वलसा) श्री गकुल नेगी (चौकड़ी) श्री सुरेंद्र सिंह रावत (टांडियों) श्री विष्णु पाल सिंह नेगी (धामधार) देव सिंह रावत (सिलबेड़ि) राम लाल भारती (आठबाखल) श्री रामलाल जी को ढोलसागर और संगीत बाधक यंत्रों का बहुत गहरा ज्ञान है रामायण और रंचरितमासन का उन्हों ने अच्छा अध्यन किया है। और अब कुछ सालों से नोसिखिया लेखक हम है देवेश आदमी (कोटरी सैण) से। और भी कोई अन्य लेखक होगा तो मेरी वदनसीबी है कि मै उस महान फनकार को जानता नही हूँ या ये समझलो मै अपने क्षेत्र के लोगों से अनभिज्ञ हूँ। पर आज कहाँ कुछ चंद लेखकों पर मुझे गर्व है वहीं पर एक ग्लानि और अफसोस कि बात ये हुई है कि जहां पुरुष समाज में से कुछ लोग निकलें है वहीं महिलाओं ने साहित्य के क्षेत्र में सोचा तक नही। वैसे ये जितने भी लेखक है सिर्फ लेखनी पर ही आश्रित नही है जीविका के अन्य साधन भी है इन के पास।

वैसे मैने या मेरी तरह के किसी ने भी लेखनी के गुण गॉँव में नही सीखी कुछ ब्याकरण का ज्ञान स्कूल से था बाकी महानगरों में लेखकों के साथ सीखी वैसे मेरे हिसाब तो महिला समाज का साहित्यिक क्षेत्र में न आना एक मुख्य कारण ये रहा कि यहां कोई महाविद्यालय नही था, और न पुस्तकालय, तो वह माहौल नही मिल पाया उन को और जब उन की शादी हुई तो वो परिवार में फंस के रह गई। परिवार की जिम्मेदारी और लेखनी का अल्प ज्ञान बस यही वो वजह रही है। थोड़ा शर्म हया भी हम को मार जाती है 18 साल के बाद
तो जाती  समाज-:जाति की बात वैसे नही करनी चाहिए थी पर भारतीय संबिधान में भी जाति के बिना कोई लेख नही लिखा गया था इसी जाति भेद की वजह से संबिधान निर्मात्री कमेटी के 7 सदस्यों में से 6 ने किसी न किसी बहाने से अपना हाथ पीछे  खींच लिया था वो लोग कमेटी में तो थे पर सिर्फ कलम से दस्तख़त करने को बाकी सारा काम भीमराव अंबेडकर जी ने 2 साल 11 महीने 18 दिन में कर दिखाया।
यहाँ कहीं जातीयं है शिल्पकार (औजी,कोली,मिरसि, नाथ,शाह,लोहार) शिल्पकार समाज की पूरे देश की तरह इस क्षेत्र में भी अन्देखी हुई है पर ये सामाज मेरी नजरों में बड़े गुणी है अगर सच्चे मायने ज्ञान की देवी और कला की देवी के कहीं स्थापित हुए है तो शिल्पकार समाज में हुए है इन लोगों के खून में सरलता सजगता ज्ञान कला होती है। ब्राह्मण समाज में (जखमोला,देवरानी,बडोला,मैंदोला,सुन्द्रियाल,भारद्वाज,खुकसाल,चतुरबेदि, ढोंडियाल,उनियाल,जुयाल,थपल्याल) है और क्षत्रिय समाज में यहां सब से ज्यादा जातियों के लोग है पर एक बात जो इस क्षेत्र की अच्छी है वो है कि यहां वैसे भेदभाव प्रदेश के अन्य क्षेत्र की तरह है पर यहाँ ठाकुर या बड़ी जाति पैसों से होता है । वैसे मन ही मन में लोग पैसे वाले को बड़ा आदमी मानते है स्वर श्री भवानी सिंह (आठबाखल) के इस क्षेत्र के अकेले शिल्पकार समाज के प्रत्यक्षी थे जो आजीवन BSP की सीट से चुनाव लड़ते थे पर कभी जीते नही।

रंग मंच औऱ मनोरंजन-: यहाँ लोगों का समय बिताने का मुख्य साधनों में तास खेलना है *(कोटरी सैण, सोली खांद,पानी सैण, गाड़ियों पुक,नोदानु,करतिया,दियोड, धंधार,रिखणीखाल, डाबरी सैण, देवूखाल, खिम्मा
खेत,तकोलिखाल, शिद्ध खाल,किलबो खाल,जाली खान, ढाबखाल, कुलानी खाल,चखोली खाल,घ्वटुला,द्वारी,गाजा,मुछेल गाँव,तिमल सैण, बुंगलगड़ी,सौप खाल,नोदानु,झरत,खदरासी,शिद्धखाल,खालयूं डाँडा,चपडेत,मठाली, कुलानी खाल,लेयर सैण, बराई) इन जगहों पर लोग तास खेलते हुए मिल जाएंगे आप को और ये काम मर्द जात का है औरतों के मुख्य मनोरंजन है-: झुमेलों,थडिया,चोंफ्ला,बाजुबंद और युवा पीढ़ी बॉलीबॉल खेलती है या आठबाखल, कुमालडी, करतिया, जैसी जगहों में फील्ड होने के वजह से क्रिकेट भी खेलते है।
वैसे एक जमाने में इस क्षेत्र में राम लीला मंचन बहुत ज्यादा होता था पर भौतिकता ने भगवान को भी पीछे छोड़ दिया या यूं कहें पलायन की वजह से अब आस्थाओं के मंचन के लिए पात्र नही मिलते है कुछ राम लीला केंद्रों के नाम जो पूर्ण रूप से बंद हो गए (कोटरी सैण सन 2005,आठबाखल सन 2016,गाड़ियों पुलसन  1998,पानी सैण 2010,बडियार गाँव 2009,बड़खेत 2007,सुरमाड़ी 1999, बराई और चाँद पुर 2004,जामरी 2003,मठाली 1997,शिद्ध खाल 1996,जै कोट 1995, मेलधार 2000, करतिया 1999 वैसे करतिया कुमालडी में नाटक मंच होता था रामलीला नही)
पर कुछ सालों से रिखणीखाल बल्ली में रामलीला का मंच हर साल सज रहा है जो अच्छी बात है। बाकी मेरे देखने में सभी जगह मंचों का आयोजन बंद हो गया है क्यों कि एक रामलीला मंचन के लिए 165 कलाकारों की जरूरत होती है संगीतकार,डयरेक्टर और अन्य कार्यकर्ताओं की पर पलायन की आंधी में अब 165 गाँव में भी मिला के 100 लोग नही मिकते है जो है भी उन के पास जीविका से बाहर सोचने का कोई विकल्प नही है।
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सुझाव-:अगर इस छेत्र में अच्छा स्कूल कक्षा 1 से 12 वीं औऱ महाविधालय हो पुस्तकालय हो हॉस्पिटल हो मछली पालन पशुपालन खेल कूद के लिए ब्यवस्था,नदियों से सिंचाई और पीने के पानी की उचित ब्यवस्था महिला मिलन केंद्र जो स्कूल मौजूद है उन के भवन और ब्यवस्था को सुदृढ़ करना रेल मार्ग का निर्माण,बैज्ञानिक खेती करना,खेतों की चकबन्दी,बागवानी,संचार ब्यवस्था ठीक करना सड़कों की मरम्मत दुकानदारों की कमेटी बना के उन को सिखाया जाय कि सभी लोग एक तरह का सामान न बेचो इस से फायदा ये होगा कि लोगों को सभी सामान क्षेत्र में प्राप्त हो जाएगा और जो रोज कोई न कोई दुकान बंद हो जा रहा है उस की समस्या भी खत्म हो जाएगी। वरना हर दिन एक भाई बेरोजगार हुई है और हर दुकान में एक तरह का
सामान होने से दुकारों में सामान सड़ रहा है औऱ कुछ चीजें मिलती ही नही है। नाटक मंचों का आयोजन कवि सम्मेलनों का आयोजन ताड़केश्वर मंदिर नोशेणा देवी मंदिर,ढोंटियाल,ढिमकी भैरव मंदिर,कालिंका मंदिर,बंजादेवी मन्दिर,बूंगी देवी मंदिर,की भब्यता बनाई जाए ये होना बहुत जरूरी है। पर्यटक को बढ़ावा मिलेगा औऱ स्थानीय लोगों को रोजगार क्षेत्र को पहचान और राज्य को राजस्व। इन मंदिरों को प्रिंट मीडिया,सोसल मीडिया और समाचारों में जगह मिकेगी विस्तार से तो लोगों का रुझान बढ़ेगा लोगों को छेत्र के बारे में पता लगेगा। एक बड़े शौभाग्य की बात है कि उत्तराखंड के नक़्शे में इस क्षेत्र  के 2 गाँव के नाम आप देख सकते है (बडियार गाँव और चुरानी) ये अच्छी बात है कि ब्लॉक का कोई गाँव तो नक़्शे में आया वरना हम लापता गंज में जी रहे होते।

वैसे हम को पता है ये सब सपने जैसा है पर सपने साकार उसी के होते है जो सपने देखता है। तो क्या हर्ज है कुछ कुछ सब करेंगे तो सब कुछ मिल जाएगा अपने अपने हिसाब से अपने अपने क्षेत्र में मेहनत करो दिल्ली दूर है पर है धरती पर।
क्षेत्र में जो भी सरकारी विभाग है उन से शहलीनता से जवाब तलब करो उन से पूछों की वजह क्या हुई कि काम नही हो रहा है हॉस्पिटल में दवाई क्यों नही है। खाद बीज विभाग में बीज क्यों नही है नल में पानी क्यों नही है खम्बे पर बिजली क्यों नही है जागरूक होना ही होगा वरना कुछ नही होगा कोई भी सरकार आएगी वो निक्कमी ही होगी पर हम उन से RTI के तहत बात कर सकते है जवाब पूछ सकते है सवालों की झड़ी लगा दो कोई भी अधिकारी अगर अपने काम पर नही है सीधा डी एम, एस डी एम, पटवारी, थानेदार, को सम्पर्क करो। अगर वो भी गायब है तो सी एम, पी एम, को बात करो कोई एक तो सुनेगा पर पहले खुद अच्छा करने की सोचो खुद गाँव में गंदगी नजे फैलाओ शराब का सेवन न करो जिस भाई बहिन को जो ज्ञान है वो उस ज्ञान को नई पीढ़ी को दो जिस के पास पैसा है वो क्षेत्र में कुछ रोजगार उतपन करें खेती करो बागवानी करो पर खाली तास न खेलो जीवन को ब्यर्थ न करो। जारी है..... अगला भाग पढ़ने के लिए ब्लॉग के साथ बने रहे

देवेश आदमी (प्रवासी)
पट्टी पैनो रिखणीखाल
(देवभूमि उत्तराखंड)
फोन-:8090233797

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